बचकाना हरकत, रिमोट कंट्रोल मॉडल, चापलूसों की मंडली… राहुल गॉंधी के 2013-2022 तक की ‘राजनीति’ का गुलाम नबी आजाद ने 5 पन्नों में किया पोस्टमार्टम

राहुल गाँधी और गुलाम नबी आजाद (फोटो साभार: हिंदुस्तान)

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार (26 अगस्त 2022) को पार्टी छोड़ दिया। उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। वे काफी समय से पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे।

पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लिखे अपने त्याग-पत्र में गुलाम नबी आजाद ने कहा कि उन्होंने इंदिरा गाँधी से लेकर सोनिया गाँधी तक के नेतृत्व में काम किया और पार्टी की मजबूती में हर तरह का योगदान दिया। हालाँकि, आजाद ने त्याग-पत्र में राहुल गाँधी को अपने निशाने पर रखा।

राहुल गाँधी को लेकर गुलाम नबी ने लिखा, “दुर्भाग्य से राहुल गाँधी की राजनीति में प्रवेश के बाद, खासकर जनवरी 2013 में आपके (सोनिया गाँधी) द्वारा उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाने के बाद उन्होंने पार्टी में पहले से मौजूद परामर्श लेने के मैकेनिज्म को ध्वस्त कर दिया। सभी वरिष्ठ एवं अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया गया और चाटुकारों की अनुभवहीन नई मंडली पार्टी को चलाने लगी।”

गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इस अपरिपक्वता का सबसे बड़ा उदाहरण राहुल गाँधी द्वारा सार्वजनिक रूप से सरकारी अध्यादेश को फाड़ना था। उन्होंने कहा, “यह अध्यादेश कॉन्ग्रेस कोर ग्रुप से बनाया गया था, जिसे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने पारित किया था और बाद में राष्ट्रपति ने इसे अनुमोदित किया था।”

गुलाम नबी आजाद ने कहा कि राहुल गाँधी की इस ‘बचकाना’ हरकत ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार की गरिमा को विकृत कर दिया। उन्होंने कहा कि इस एक गलती ने साल 2014 के लोकसभा चुनावों में यूपीए की हार में महत्वपूर्ण निभाई। दक्षिणपंथी दलों और कुछ कॉरपोरेट ने इसे मुद्दा बनाया।

गुलाम नबी यहीं नहीं रूके। उन्होंने सोनिया गाँधी को याद दिलाया कि सीताराम केसरी को कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी के दो-दो चिंतन शिविरों में कुछ सिफारिशें की गई थीं। इसके अलावा, साल 2013 के जयपुर शिविर में भी उन्होंने कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ मिलकर कुछ सिफारिशें पेश की थीं, जिसे कॉन्ग्रेस वर्किंग ग्रुप ने भी पारित किया था। इन सभी सिफारिशों को कभी लागू नहीं किया गया। यहाँ तक 2013 के जयपुर शिविर में की सिफारिशों को साल 2014 से पहले लागू किया जाना था, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया।

गुलाम नबी ने अपने त्याग-पत्र में कहा कि इन सिफारिशों को लागू करने के लिए वह सोनिया गाँधी और पार्टी के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से कई बार मिले, लेकिन उनकी बातों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया।

उन्होंने कहा, साल 2014 के बाद से आपके (सोनिया गाँधी) और राहुल गाँधी के नेतृत्व में पार्टी दो लोकसभा चुनावों में अपमानजनक तरीके हारी। 2017-2022 के बीच 49 विधानसभा चुनावों में से 39 में पार्टी की हार हुई। पार्टी केवल चार विधानसभा चुनाव जीत पाई।”

उन्होंने कहा, “साल 2019 के चुनावों के बाद पार्टी की स्थिति और बदतर हुई। उसके बाद आवेश में आकर राहुल गाँधी ने पद छोड़ दिया और आपने (सोनिया गाँधी) अंतरिम अध्यक्ष का पदभार सँभाला। तीन साल बाद भी आप इस पद पर बनी हुई हैं। यूपीए सरकार की सबसे बुरी दुर्गति ‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’ के कारण हुई, जो पार्टी में भी लागू कर दिया गया।”

राहुल गाँधी को निशाने पर लेते हुए उन्होंने पत्र में सोनिया गाँधी को कहा, “आप तो नाममात्र की प्रमुख हैं, जबकि पार्टी से संबंधित सारे महत्वपूर्ण निर्णय राहुल गाँधी और यहाँ तक कि उनके सिक्योरिटी गार्ड और निजी सहायक (PA) द्वारा लिए जाते हैं।”

गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि जब अगस्त 2020 में पार्टी के अंदर जारी घमासान को लेकर उन्होंने और उनके साथ 22 अन्य वरिष्ठ नेताओं ने हाईकमान को लिखा तो ‘चापलूसों की मंडली’ ने उन पर हमले शुरू कर दिए। उन्होंने कहा कि चापलूसों की इस मंडली का उत्साहवर्धन राहुल गाँधी और पार्टी के कुछ महासचिव करते रहे।

उन्होंने कहा कि देश भर पार्टी के किसी भी स्तर पर कोई चुनाव नहीं होता और चापलूसों को पद पर बैठा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि पार्टी की स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दलों के लिए राजनीतिक जगह बची रह गई है।

बता दें कि गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार (26 अगस्त 2022) को कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी को 5 पन्नों का इस्तीफा भेजा है। इसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर संजय गॉंधी तक का जिक्र है। गुलाम नबी ने पत्र में सोनिया गाँधी को ‘रबर स्टांप’ की तरह बताया है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया