दलित, महिला या नाबालिग का जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर होगी 2 से 7 साल की सजा

हिमाचल में अब धर्मांतरण पर 5 साल की कैद (प्रतीकात्मक चित्र)

हिमाचल प्रदेश में अब जबरन धर्मांतरण पर रोक लगेगी। इस बिल को बृहस्पतिवार (अगस्त 29, 2019) को हिमाचल प्रदेश के CM जयराम ठाकुर ने सदन के पटल पर रखा था। मानसून सत्र के दौरान शुक्रवार (अगस्त 30, 2019) को सदन में धर्म की स्वतंत्रता विधेयक-2019 को पारित कर दिया गया। शुक्रवार को विपक्षी दल कॉन्ग्रेस के विरोध के बीच पारित कर दिया गया है।

चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि नया कठोर कानून इसलिए जरुरी हो गया था क्योंकि खासकर रामपुर और किन्नौर में जबरन धर्मांतरण बढ़ता जा रहा है। यह विधेयक हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2006 का स्थान लेगा। नए कानून के तहत सात साल तक की कैद का प्रावधान है, जबकि पुराने कानून में तीन साल की कैद की सजा की व्यवस्था थी। अलग-अलग वर्गों और जातियों के लिए यह प्रावधान किए गए हैं।

यह विधेयक बहकाने, जबरन, अनुचित तरीके से प्रभावित करने, दबाव, लालच, शादी या किसी भी धोखाधड़ी के तरीके से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाता है। यदि कोई भी शादी बस धर्मांतरण के लिए होती है तो वह इस विधेयक की धारा 5 के तहत इसे अमान्य माना जाएगा।

इस विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कॉन्ग्रेस विधायक आशा कुमारी, सुखविंदर सुखु, जगत सिंह नेगी और एकमात्र माकपा विधायक राकेश सिंह ने कुछ प्रावधानों में बदलाव की माँग की। सुखु के सुझाव पर जवाब देते हुए ठाकुर ने कहा कि 13 साल पुराना कानून इतना प्रभावी नहीं था। क्योंकि पुराने कानून में महज आठ धाराएँ हैं, तथा उसमें करीब दस और धाराएँ जोड़ना बेहतर नहीं होता।

मूल धर्म में वापसी के लिए कोई शर्त नहीं

इस विधेयक के अनुसार, अगर कोई शख्स अपना मजहब बदलना चाहता है तो उसे कम से कम एक महीने पहले जिलाधिकारी को लिखकर देना होगा। उसे यह बताना होगा कि वह स्वेच्छा से ऐसा कर रहा है। धर्मांतरण कराने वाले पुरोहित/पादरी या किसी धर्माचार्य को भी एक महीने पहले इसकी सूचना देनी होगी। अपने मूल धर्म में वापस आने वाले व्यक्ति पर ऐसी कोई शर्त नहीं होगी। अगर दलित, महिला या नाबालिग का जबरन धर्मांतरण कराया जाता है तो दो से सात साल तक की जेल की सजा मिल सकती है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया