सालों से कॉन्ग्रेस करती आई है देश के लोगों की संपत्ति छीनने की कोशिश, मनमोहन सिंह की सरकार के समय भी रचा गया था षड्यंत्र: सैम पित्रोदा का आइडिया नया नहीं

लोगों की संपत्ति लेने पर कॉन्ग्रेस 2011 से लगी

कॉन्ग्रेस नेता सैम पित्रोदा के ‘विरासत कर (Inheritance Tax)’ वाले बयान पर काफी बवाल हो गया है। आम जनता से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके लिए उनपर निशाना साधना शुरू कर दिया है। पार्टी की मंशा पर इतने सवाल उठ गए हैं कि कॉन्ग्रेसियों ने सामने आकर सैम पित्रोदा के बयान के खिलाफ ही सफाई देनी शुरू कर दी है। ऐसे दिखाया जा रहा है जैसे विरासत के बँटवारे की बात उनकी पार्टी ने नहीं उठाई, जबकि हकीकत यह है कि जो आज सुर सैम पित्रोदा के मुँह से निकले, वो कॉन्ग्रेस पार्टी 10-12 साल से गुनगुना रही है, बस किसी का ध्यान इस पर पहले नहीं गया था।

इंटरनेट पर यदि सर्च करके देखें तो पता चलेगा कि एक व्यक्ति विशेष की संपत्ति का कुछ हिस्सा उसके मरने के बाद सरकार को देने पर चर्चा कॉन्ग्रेस 2011 से करने को आतुर है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब, यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम इस पर चर्चा चाहते थे अब सैम पित्रोदा हैं जिन्हें कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता अपना गुरु मानते हैं।

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मीडिया रिपोर्ट्स देखें तो साल 2011 से 2014 के बीच में कई बार ये मुद्दा उठाया गया था। कभी देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के नाम पर तो कभी देश के गरीबों की चिंता करने के नाम पर। आज भी ये मुद्दा इसी आड़ में उठाया गया है। लेकिन इसके तहत होना क्या है वो जान लीजिए।

अभी के समय में अगर एक व्यक्ति अपने जीवन भर में 10 लाख पूँजी इकट्ठा करता है तो उस पूँजी पर उसके उत्तराधिकारी का अधिकार होता है लेकिन अगर ये कर लागू होता है तो व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पूँजी उत्तराधिकारी को आधी ही मिलेगी और आधी सरकार को चली जाएगी।

साल 1953 से साल 1985 तक ऐसा कानून भारत में लागू भी था जिसे एस्टेट ड्यूटी कहा जाता था। इसका उद्देश्य आर्थिक असमानता को दूर करना था। हालाँकि, जब इससे ऐसा नहीं हुआ और जटिलताएँ बढ़ती गईं, उसके बाद इस कानून को समाप्त कर दिया गया। खुद तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने इस पर राय दी थी कि यह समाज में संतुलन लाने और धन के अंतर को कम करने में विफल रहा। अब उसी कानून की चर्चा दोबारा कॉन्ग्रेस पार्टी कर रही है।

बता दें कि विरासत कर का कॉन्सेप्ट कई देशों में चल रहा है। लेकिन कितना कारगर है ये नहीं कहा जा सकता। जापान में सरकार को 55% टैक्स जाता है, साउथ कोरिया में 50%, जर्मनी में 50 %, फ्रांस में 45%, इंगलैंड में 40%, यूएस में 40%, स्पेन में 34 %, आयरलैंड में ये टैक्स 33% है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया