‘फारूख अब्दुल्ला ने कब हमारी परवाह की, जो हम उसकी रिहाई पर खुश हों’ – J&K के स्थानीय लोग

फारूक अब्दुल्ला (फाइल फोटो)

सात महीने बाद हुई फारुख अब्दुल्ला की रिहाई से जम्मू-कश्मीर के लोग खुश नहीं हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोई खुशी की बात नहीं है। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने अपनी नजरबंदी से रिहाई के बाद गुप्कार रोड स्थित अपने आवास के बाहर इंतजार कर रहे मीडियाकर्मियों से शुक्रवार को कहा, ”मैं आजाद हूँ… मैं आजाद हूँ।

शुक्रवार को जब अब्दुल्ला 7 महीनों बाद अपनी पत्नी मौली और बेटी साफिया के साथ बाहर आए तो मीडिया के सामने बात करते हुए सहज दिखाई दिए। जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा पीएसए हटाया जाना लोगों के लिए एक कौतूहल का विषय रहा, जिसके तहत फारुख अब्दुल्ला पिछले 7 महीनों से अपने ही घर में नजरबंद थे।

मीडियाकर्मियों के अब्दुल्ला के आवास पर पहुँचने से पहले तक वहाँ मौजूद स्थानीय लोग और पुलिसकर्मी फारुख की रिहाई की खबर से बेखबर थे। इसी बीच वहाँ मौजूद पुलिस के एक अधिकारी ने पत्रकारों को अब्दुल्ला के आवास से पीछे की ओर हटाते हुए कहा, “हमें उनके नजरबंदी आदेश के निरस्त होने की जानकारी नहीं थी, अगर हमें पहले से पता होता तो हम मीडियाकर्मियों को अब्दुल्ला के आवास के इतने नजदीक आने ही नहीं देते।”

इसके बाद स्थानीय निवासियों ने अपने घरों के बाहर हँगामा होता हुआ देखकर इसके कारणों के बारे में जानना शुरू किया। जानकारी मिलते ही नेशनल कॉन्फ्रेस के कुछ समर्थक भी मौके पर पहुँच गए। इनमें से एक पार्टी के हल्का अध्यक्ष मोहम्मद हुसैन ने कहा “मैं अपने नेता की एक झलक देखना चाहता हूँ। मैंने पिछले कई महीनों से उन्हें नहीं देखा है।” इसी बीच पुलिस ने दो समर्थकों को संदिग्ध दिखाई देने पर हिरासत में ले लिया, हालाँकि दोनों को थोड़ी देर बाद ही छोड़ दिया गया।

वहीं फारुख अब्दुल्ला की सात महीने बाद हुई रिहाई के बाद भी अधिकांश स्थानीय लोग उत्साहित नहीं दिखे। पास में खड़े एक रिक्शा चालक ने कहा कि ये कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि फारुख अब्दुल्ला ने स्थानीय निवासियों की कभी कोई परवाह ही नहीं की है।

वहीं मौजूद एक युवा कद्दावर नेता फारुख की रिहाई से असहमत दिखा और अपना नाम न छापने की शर्त बोला “उनको राजनीति से दूर होने के लिए यह अच्छा समय है क्योंकि अब उनके करने के लिए कुछ नहीं बचा है और सब कुछ अब लेफ्टिनेंट गवर्नर के हाथ में है।” उत्तरी कश्मीर के निवासी जावेद अहमद ने कहा, “अब्दुल्ला की रिहाई का कश्मीर में जश्न मनाने का कोई औचित्य नहीं है, क्या वह अब आजादी की माँग रख पाएँगे, जिसको नेशनल कॉन्फ्रेस वर्ष 1953 से उठाती रही है।”

दरअसल, घाटी में अनुच्छेद-370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने के बाद अगस्त 05, 2019 को फारूक अब्दुल्ला को उनके ही घर पर नजरबंद किया गया था। करीब 7 महीने बाद सरकार ने उनकी नजरबंदी को खत्म किया है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के कुछ प्रावधानों को निष्क्रिय करने और विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद से घाटी में किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए वहाँ के स्थानीय नेताओं को नजरबंद कर लिया गया था। इनमें फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन सहित कई अन्य नेता शामिल थे।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया