राहुल गाँधी ने जिस मुस्लिम लीग को बताया ‘सेकुलर’, उसकी जड़ें जिन्ना की पार्टी में; संविधान में शरिया के पैरोकार: जानिए IUML का इतिहास

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) 10 दिन की अमेरिका यात्रा पर हैं। इस दौरान उन्होंने गुरुवार (1 जून 2023) को वाशिंगटन के नेशनल प्रेस क्लब में सवालों का जवाब देते हुए अजीबोगरीब दावा किया। भारत के विभाजन में अहम भूमिका निभाने वाली पार्टी मुस्लिम लीग को उन्होंने सेकुलर यानी धर्मनिरपेक्ष (Muslim League secular) करार दिया।

राहुल गाँधी से पूछा गया था, “आपने हिंदू पार्टी भाजपा का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के बारे में बात की। लेकिन जिस केरल से आप सांसद थे, वहाँ कॉन्ग्रेस मुस्लिम पार्टी मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन में रही है।” इस सवाल के जवाब में राहुल गाँधी ने कहा, “मुस्लिम लीग पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष पार्टी है, मुस्लिम लीग में कुछ भी गैर धर्मनिरपेक्ष नहीं है। मुझे लगता है कि आपने मुस्लिम लीग के बारे में नहीं पढ़ा है।”

यूँ तो राहुल गाँधी विवादित और ऊलजलूल बयानबाजी के लिए ही पहचाने जाते हैं, लेकिन मुस्लिम लीग का इतिहास देखते हुए उनका बयान हैरान करने वाला है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) का दावा है कि देश की आजादी के बाद साल 1948 में उसकी स्थापना हुई। लेकिन सच्चाई यह है कि IUML पाकिस्तान के संस्थापक और इस्लामवादी मोहम्मद अली जिन्ना की ऑल इंडिया मुस्लिम लीग (AIML) की एक शाखा ही है। 

विभाजन के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग को पाकिस्तान में मुस्लिम लीग और भारत में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के रूप में स्थापित किया गया था। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) अपनी वेबसाइट पर दावा करती है वह धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन ऐसा कई बार सामने आया है कि जब इस पार्टी ने खुलकर इस्लामवाद का समर्थन किया है।

मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के एक अलग देश की माँग का पुरजोर समर्थन किया था। इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की भावनाओं और इरादों को स्वतंत्र भारत में जीवित रखने के लिए मार्च 1948 में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का जन्म हुआ।

मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग से अलग होने के बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के पहले अध्यक्ष मुहम्मद इस्माइल ने भारत विभाजन आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। यही नहीं, वह बँटवारे और इस्लामवादियों के लिए अलग देश बनाए जाने का समर्थक था। यहाँ दिलचस्प बात यह है कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को ‘धर्मनिरपेक्ष पार्टी’ बताने का दावा करने वाले मुहम्मद इस्माइल ने संविधान सभा में भारतीय मुस्लिमों के लिए शरिया कानून को बनाए रखने की वकालत की थी।

भारत विभाजन के बाद मुस्लिमों की पहली राजनीतिक पार्टी आईयूएमएल के संस्थापक अध्यक्ष मुहम्मद इस्माइल ने मोहम्मद अली जिन्ना के विचारों की तरह दावा किया था कि वह और उनकी पार्टी भारत के मुस्लिमों की एक मात्र हितैषी पार्टी है। देश की आजादी के बाद कॉन्ग्रेस ने सियासी फायदे के लिए मुस्लिम लीग से भले ही हाथ मिला लिया, लेकिन कभी जवाहर लाल नेहरू ने जिन्ना की मुस्लिम लीग से गठबंधन करने से इनकार कर दिया था। कॉन्ग्रेस की अवसरवादिता के नापाक मंसूबे के चलते ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसी इस्लमावादी पार्टी को मुस्लिमों के हितों की रक्षा करने के नाम मजहब की राजनीति करने का सबसे बड़ा सहारा मिला।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का नाम केरल में सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने के मामले में भी सामने आया था। जस्टिस थॉमस पी जोसेफ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2003 में केरल में हुए मराड नरसंहार की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में आईएमयूएल भी शामिल थी। जस्टिस जोसेफ आयोग की रिपोर्ट में मराड नरसंहार को ‘इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकी संगठनों की सांप्रदायिक साजिश’ बताया गया था। इसके अलावा, साल 2017 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने हिंसा के मामले की जाँच करते हुए एक नई FIR दर्ज की थी। इस FIR में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं पीपी मोइदीन कोया और मोईन हाजी को दंगों के लिए फंडिंग करने, साजिश रचने में संलिप्त पाया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया