शिवसेना किसकी? उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की लड़ाई संवैधानिक पीठ के हवाले, 25 अगस्त तक चुनाव आयोग को फैसला करने से SC ने रोका

शिवसेना चुनाव चिह्न से लेकर दल-बदल का मामला: उद्धव ठाकरे-शिंदे विवाद पर SC

महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पाँच जजों की बड़ी बेंच को सौंप दिया है। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सेना बनाम शिवसेना विवाद में उद्धव और शिंदे गुटों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर 7 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसे संविधान पीठ को सौंप दिया।

बता दें कि शिवसेना के 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया है। इसके अलावा शिवसेना के चुनाव चिह्न को लेकर शिंदे और ठाकरे गुटों के बीच झगड़ा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई गुरुवार (25 अगस्त, 2022) को होगी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, “मामले में गुरुवार को संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें और पीठ शुरुआत में निर्वाचन आयोग की कार्यवाही से संबंधित चुनाव चिह्न के संबंध में फैसला करेगी। और पहले निर्णय लिया जाएगा कि क्या चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगानी है?”

बता दें कि कई संवैधानिक मुद्दे, विशेष रूप से 10 वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) से संबंधित मुद्दे भी याचिकाओं में शामिल हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 10वीं अनुसूची पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है। वहीं स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की शक्तियों को भी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ परिभाषित करेगी।

रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में CM एकनाथ शिंदे ने दलबदल, विलय और अयोग्यता से जुड़े कई संवैधानिक सवाल उठाए हैं। जहाँ इस मामले को प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को संविधान पीठ के समक्ष याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। वहीं निर्वाचन आयोग को शिंदे गुट की उस याचिका पर कोई आदेश पारित नहीं करने का निर्देश दिया जिसमें शिंदे गुट ने कहा था कि उसे असली शिवसेना माना जाए और पार्टी का चुनाव चिह्न आवंटित किया जाए।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि नेबाम राबिया के फैसले की समीक्षा करने की भी जरूरत है। दरअसल, नेबाम रेबिया के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि स्पीकर के लिए दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करना संवैधानिक रूप से अनुचित था, जबकि अध्यक्ष के कार्यालय से अपने स्वयं के निष्कासन के लिए संकल्प की सूचना लंबित थी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया