भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था: मेघालय उच्च अदालत

Pic credit: The Conversation

मेघालय उच्च अदालत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित सभी सांसदों से अपील किया है कि पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, गारो, खासी और जयंतिया लोगों को भारत में रहने की इजाजत दी जाये और उन्हें भारतीय नागरिकता देने के लिए कानून बनाया जाये।

बार एंड बेंच की वेबसाइट के अनुसार अधिवास प्रमाण पत्र से सम्बंधित मामले में फैसला देते हुए न्यायाधीश सुदीप रंजन सेन ने कहा:

“हम सबको पता है कि भारत विश्व के सबसे बड़े देशों में से एक था और उस समय पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का कोई अस्तित्व नहीं था। ये सभी एक ही देश के अन्दर हुआ करते थेऔर हिन्दू साम्राज्य द्वारा शासित थे लेकिन मुगलों ने आक्रमण कर देश के विभिन्न भागों पर कब्जा किया और शासन करने लगे। उस समय उनके द्वारा जबरन कई लोगों का धर्म-परिवर्तन कराया गया।”

उहोने आगे कहा:

“उसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से अंग्रेज भारत में आये और उन्होंने यहाँ शासन करना शुरू कर दिया और भारतियों को प्रताड़ित करने लगे जिसके कारण स्वतंत्रता अभियान की शुरुआत हुई और अंततः 1947 में भारत आजाद हुआ। भारत का विभाजन हुआ जिसमे एक देश भारत कहलाया और एक को पकिस्तान नाम दिया गया।”

जस्टिस सेन ने अपने फैसले में आगे कहा:

“यह एक निर्विवाद तथ्य है कि देश के विभाजन के समय लाखों सिखों और हिन्दुओं का नरसंहार किया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया और कईयों का बलात्कार किया गया जिसके कारणवश उन्हें अपनी जिंदगी और इज्जत की रक्षा करने के लिए अपने पूर्वजों की संपत्ति को छोड़ कर भारत में शरण लेने को मजबूर होना पडा।”

“पकिस्तान ने खुद को एक इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया लेकिन भारत, जिसे धर्म के आधार पर विभाजित होने के कारण एक हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था- एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा।

अदालत ने ये भी साफ़ किया कि वो भारत में कई पुश्तों से रह रहे मुस्लिम नागरिकों के विरुद्ध कतई नहीं हैं। जस्टिस सेन ने कहा कि भारत में रह रहे और भारतीय कानून का पालन कर रहे मुस्लिम नागरिकों को भी शांतिपूर्वक तरीके से यहाँ रहने का पूरा अधिकार है। इसके अलावे अदालत ने सरकार से सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक सामान कानून बनाने की भी अपील की।

अदालत ने ये भी कहा कि भारत को आजादी अहिंसा से नहीं बल्कि रक्तपात से मिली और इस रक्तपात के पीड़ित हिन्दू और सिख रहे। अदालत के अनुसार सिखों के लिए तो सरकार द्वारा पुनर्वास की व्यवस्था की भी गई लेकिन हिन्दू तो उस से भी वंचित रहे। अदालत ने जोर देकर कहा कि किसी को भी भारत को इस्लामिक देश बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए वरना ये भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए क़यामत का दिन होगा।

अदालत ने नरेन्द्र मोदी सरकार पर भरोसा जताते हुए कहा कि पीएम इस मामले की गंभीरता को समझते हैं और वो उचित निर्णय लेंगे। साथ ही अदालत ने ये भी आशा जताया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी देशहित में लिए गए निर्णय का समर्थन करेंगी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया