रोशनी घोटाला में महबूबा मुफ्ती का नाम: जम्मू में सरकारी जमीन कब्ज़ा कर बनाया गया PDP का दफ्तर, CBI कर रही जाँच

PDP की मुखिया महबूबा मुफ्ती भी रोशनी भूमि घोटाले में फँसीं

रोशनी लैंड स्कैम में अब जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और PDP की मुखिया महबूबा मुफ्ती का नाम सामने आ रहा है। ये लैंड स्कैम अपने-आप में प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। गरीबों को शासित जमीन मुहैया कराने और प्रदेश में बिजली लाने के लिए जिस कानून को बनाया गया था, जम्मू कश्मीर के नेताओं ने उसका जम कर फायदा उठाया और अकूत धन-संपत्ति अर्जित की। जबकि जनता गरीब ही बनी रही।

इस घोटाले की जाँच CBI ने अपने हाथों में ली हुई है। अभी तक के जाँच में कई खुलासे हुए हैं और इन सब के तार जम्मू कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों से जुड़ रहे हैं, जिनमें से एक फारूक अब्दुल्लाह का नाम पहले ही सामने आ चुका है। ‘न्यूज़ 18’ की खबर के अनुसार, अब पता चला है कि महबूबा मुफ्ती की पार्टी PDP ने जम्मू के संजवान क्षेत्र में तीन कनाल सरकारी भूमि पर अवैध रूप से कब्ज़ा जमा लिया।

इसके बाद इस जमीन पर पार्टी के दफ्तर का निर्माण कराया गया। इसी ऑफिस के पहले फ्लोर पर विवादास्पद नेता राशिद खान ने डेरा जमा लिया। जिस समय ये सब हुआ, उस वक़्त राज्य में मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार थी। 2 बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे सईद काफी विवादित नेता थे और उनके केंद्रीय गृह मंत्री रहते ही घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था। उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा सीएम बनी थीं।

PDP के नेता चौधरी तालिब हुसैन ने भी जम्मू डिविजन के चन्नी रामा इलाके में दो कनाल सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कब्ज़ा जमा रखा है। उन्होंने रोशनी एक्ट का सहारा लेने की जहमत तक नहीं उठाई और सीधा भूमि कब्ज़ा डाली। वो बलात्कार के भी आरोपित हैं और उन्हें अप्रैल 2019 में खुद महबूबा मुफ्ती ने अपनी पार्टी में पूरे गर्मजोशी के साथ शामिल किया था। उन्हें आदिवासियों के अधिकार के लिए लड़ने वाला बता कर उन्होंने ऐसा किया।

‘न्यूज़ 18’ की खबर में एक CBI अधिकारी के हवाले से दावा किया गया है कि गुजरे जमाने की फ़िल्मी हस्तियाँ फिरोज खान और संजय खान की बहन दिलशाद शेख ने भी राजधानी श्रीनगर में 7 कनाल सरकारी जमीन पर कब्ज़ा जमा लिया। दिलशाद ने जमीन को नियमित करने के लिए राशि भी नहीं जमा कराई लेकिन रोशनी एक्ट का इस्तेमाल किया। इसी तरह एक अन्य PDP नेता असलम मट्टू ने भी राजधानी में भूमि कब्जाई।

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उन्होंने भी इसके तहत जमा कराई जाने वाली रकम नहीं दी। जम्मू-कश्मीर के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद के परिवार के एक सदस्य ने भी इस एक्ट का गलत तरीके से फायदा उठा कर सरकारी भूमि पर कब्ज़ा किया। फारूक अब्दुल्लाह ने दावा किया था कि अवैध रूप से कब्ज़ा की गई सरकारी जमीन के बदले चुकाई गई रकम से राज्य में बिजली आएगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

सीएम फारुक अब्दुल्ला सरकार द्वारा 2001 में लाई गई इस स्कीम के तहत 1990 से हुए अतिक्रमणों को इस एक्ट के दायरे में कट ऑफ सेट किया गया था। सरकार का कहना था कि इसका सीधा फायदा उन किसानों को मिलेगा, जो सरकारी जमीन पर कई सालों से खेती कर रहे है। लेकिन नेताओं ने जमीनों पर कब्जे जमाने का काम शुरू कर दिया। वर्ष 2005 में तब की मुफ्ती सरकार ने 2004 के कट ऑफ में छूट दी। उसके बाद गुलाम नबी आजाद ने भी कट ऑफ ईयर को वर्ष 2007 तक के लिए सीमित कर दिया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया