‘अखंड बंगाल चाहते थे नेताजी सुभाष के बड़े भाई, लेकिन कॉन्ग्रेस ने विभाजन के लिए किया वोट’: शरत चंद्र बोस के पोते का खुलासा – नेहरू ने भी किया था विरोध

तृणमूल कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद सुगत बोस (फाइल फोटो, साभार: DNAIndia)

तृणमूल कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद सुगत बोस ने कहा है कि उनके दादा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत बोस ‘अखंड भारत में अखंड बंगाल’ चाहते थे। उन्होंने यह भी कहा कि कॉन्ग्रेस विधायकों को बंगाल विभाजन के लिए वोटिंग करने के लिए मजबूर किया गया था।

TMC नेता सुगत बोस ने PTI को एक इंटरव्यू दिया है। इसमें उन्होंने कहा, “पश्चिम बंगाल के विधायकों ने बंगाल विभाजन के पक्ष में मतदान किया था। कॉन्ग्रेस आलाकमान ने उन्हें विभाजन के पक्ष में मतदान करने का आदेश दिया था। इसीलिए, कॉन्ग्रेस विधायकों ने बंगाल विभाजन के पक्ष में वोटिंग की थी। हिंदू महासभा का सिर्फ एक विधायक था। इसलिए यह सीधे तौर पर कॉन्ग्रेस का फैसला था।”

सुगत बोस ने आगे कहा है, “एक तरह से कॉन्ग्रेस ने बंगाल विभाजन के पक्ष में वोटिंग करने का फैसला पहले ही कर लिया था। वास्तव में जब 3 जून, 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन का ऐलान किया था, तब कॉन्ग्रेस ने 15 जून को ही उस ऐलान को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद 20 जून को वोटिंग हुई तो कॉन्ग्रेस के विधायकों ने बंगाल विभाजन के पक्ष में वोटिंग कर दी।”

उन्होंने आगे कहा कि कॉन्ग्रेस विधायकों के पास अपने हिसाब से वोटिंग करने की आजादी नहीं थी। क्योंकि, कॉन्ग्रेस ने पश्चिम बंगाल बनाने के लिए और मुस्लिम लीग ने पूर्वी पाकिस्तान बनाने के लिए व्हिप जारी कर दिया था। सुगत बोस ने यह भी कहा, ‘‘हमारे सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने अखंड भारत में अखंड बंगाल का सपना देखा था। लेकिन दुर्भाग्य से 1946 में दो समुदायों के बीच संबंध बिगड़ गए और विभाजन की बातें जड़ें जमाने लगीं।”

सुगत बोस ने आगे कहा कि हालाँकि समस्या सिर्फ दो समुदायों के बीच की नहीं थी, बल्कि समस्या उन लोगों ने पैदा की जो अंग्रेजों द्वारा तैयार की गई योजनाओं के हिसाब से भारत चाहते थे। 1 जून को गाँधीजी ने सुगत बोस के दादा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाई शरत बोस को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था कि सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू के साथ अखण्ड बंगाल को लेकर बात की थी। लेकिन दोनों ने ही इसका विरोध किया था।

उन्होंने यह भी कहा कि शरत बोस ने बंगाल एवं भारत की एकता को संजोकर रखने की हर संभव कोशिश की। उन्होंने ‘अखंड भारत में अखंड बंगाल’ के लिए अपनी योजना के बारे में वल्लभभाई पटेल को एक पत्र भी लिखा था। इस पत्र में उन्होंने द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत को धता बता दिया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया