उत्तर-पूर्व की सभी सीटों पर हारी कॉन्ग्रेस, तेलंगाना में टक्कर में ही नहीं: उधर चमके CM हिमंता, इधर BJP को मिला बड़ा चेहरा

भारत में हर चुनाव के बाद शीर्ष नेतृत्व की विश्वसनीयता बनती-बिगड़ती है (फाइल फोटो)

भारत में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते हैं। आजकल गाँव के चुनाव से लेकर राज्यों तक के चुनाव परिणाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की हार-जीत पर कड़ा विश्लेषण किया जाता है। कॉन्ग्रेस तो वैसी भी डूबती हुई पार्टी है, लेकिन गाहे-बगाहे कभी एकाध सीट जीत कर मीडिया को ये चलाने का मौका दे देती है कि राहुल गाँधी ‘लौट आए’ हैं। आइए, ताज़ा उपचुनाव के परिणामों को देखते हैं और इसका विश्लेषण करते हैं कि किसको खुश होना चाहिए और किसे दुःखी।

उत्तर पूर्व: असम सहित 4 राज्यों में भाजपा और उसकी सहयोगी दलों का क्लीन स्वीप

असम में पिछले मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का कार्यकाल भी अच्छा रहा था और अब फायरब्रांड नेता के रूप में हिमंता बिस्वा सरमा अपनी विश्वसनीयता व लोकप्रियता साबित कर रहे हैं। असम में 5 सीटों पर उपचुनाव हुए और उन सभी पर भाजपा व उसकी सहयोगी पार्टी को जीत मिली है। कॉन्ग्रेस के लिए यहाँ से काफी बुरी खबर आई है, क्योंकि वो सभी सीटों पर लड़ी थी और पिछली बार के मुकाबले इस बार हर सीट पर जीत का अंतर ज्यादा रहा। पूर्वी असम कभी उसका गढ़ हुआ करता था, आज वहाँ भी दुर्गति हुई। मुख्यमंत्री सरमा ने भी कहा है कि लोकसभा चुनवोंसे भी ज्यादा अंतर से इस बार जीत मिली है।

भाजपा ने तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और उसकी सहयोगी पार्टी ‘यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल (UPPL)’ ने 2 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। बोडोलैंड प्रदेश में उसे दो सीटें लड़ने के लिए दी गई थीं। भाजपा के जिन तीन उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, वो तीनों किसी अन्य दल से आए थे। इनमें से दो कॉन्ग्रेस छोड़ कर आए थे तो एक ने ‘ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट’ छोड़ कर कमल छाप का दामन थामा था। जोरहाट जिले मरियानी सीट पर रूपज्योति कुर्मी ने 62.38% वोट पाए, जो इस चुनाव का सर्वाधिक है।

ये नागालैंड की सेमा पर ही स्थित इलाका है, ऐसे में इस जीत का असर वहाँ भी पड़ेगा। इसी जिले के थौरा से सुशांता बोरगेहेन ने 61.99% वोट पाए। कोकराझार के भवानीपुर में फणीधर तालुकदार को 56.41% मत प्राप्त हुए। मरियानी और थौरा – ये दोनों ही सीटें पूर्वी असम में हैं। थौरा में तो कॉन्ग्रेस मात्र 6.65% वोटों पर सिमट गई। पश्चिमी असम के तमलपुर विधानसभा क्षेत्र में भी 5.41% वोटों के साथ कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन धड़ाम से गिरा। गोसाईगाँव में वो 20.58% वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही।

अब 126 सदस्यीय असम विधानसभा में भाजपा की 62 सीटें हो गई हैं और उसकी सहयोगी UPPL की 7 सीटें। मेघालय में पहले मॉरिंगकैंग (Mawryngkneng) और राजबाला विधानसभा सीटों पर कॉन्ग्रेस का कब्ज़ा था, लेकिन पार्टी ने अब ये दोनों गँवा दिए हैं। मौफ्लँग सीट पर भी उसे हार का सामना करना पड़ा। एउजेनेसन लिंगदोह यहाँ से विजयी हुए, जो भारत के लोकप्रिय फुटबॉलर रहे हैं। वो UDP विधायक इसके सन्न के बेटे हैं, जिनके निधन से ये सीट खली हुई थी।

इस तरह अब वहाँ NPP के पास 23 और UDP के पास 7 विधायक हैं। ये दोनों ही भाजपा के गठबंधन का हिस्सा हैं। मिजोरम के ट्युइरियल सीट पर MNF ने कब्ज़ा जमाया। कॉन्ग्रेस यहाँ तीसरे स्थान पर रही। पहले इस सीट पर जोरम्स पीपल्स मूवमेंट का कब्ज़ा था। इसी तरह नागालैंड के शमतोर-चेस्सोर विधानसभा सीट पर बिना चुनाव के ही भाजपा की सहयोगी पार्टी NDPP की जीत हुई थी। इस तरह उत्तर-पूर्व अब पूरी तरह ‘कॉन्ग्रेस मुक्त’ होने की ओर अग्रसर है।

तेलंगाना में भाजपा का शानदार प्रदर्शन, दक्षिण में मजबूत

इसी तरह तेलंगाना में भाजपा और सत्ताधारी TRS के बीच दिन भर काँटे की टक्कर चली। अंत में करीमनगर के हुजुरबाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के एटला राजेंद्र ने जीत दर्ज की। उन्होंने अपनी पत्नी जमुना के साथ काउंटिंग सेंटर जाकर जीत का सर्टिफिकेट प्राप्त किया। वो कभी मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के करीबी और उनकी सरकार में मंत्री रहे हैं। ये लड़ाई दोनों के कद के बीच एक टक्कर भी थी। 22 राउंड की गिनती के बाद TRS के गिल्लू श्रीनिवास यादव को उन्होंने 23,855 वोटों से हराया।

भाजपा उम्मीदवार को जहाँ 1,06,780 वोट मिले, TRS को 82,712 मत प्राप्त हुए। उत्तर पूर्व की तरह यहाँ भी कॉन्ग्रेस की बात न ही की जाए तो अच्छा है, जो तीसरे स्थान पर रही। पार्टी को 3012 वोटों से संतोष करना पड़ा और उसकी जमानत जब्त हो गई। इससे न सिर्फ ये पता चल रहा है कि राज्य में मुख्यमंत्री KCR की सरकार के विरुद्ध असंतोष बढ़ रहा है, बल्कि हुजुरबाद में कभी नगण्य रही भाजपा के कैडर में भी अब इजाफा होने लगा है।

इससे पहले करीमगंज की सभी 7 सीटों पर TRS ने कब्ज़ा जमाया था। 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तो इसी सीट पर भाजपा को मात्र 1683 वोट मिले थे। ये नोटा को मिले 2867 वोटों से भी कम था। हालाँकि, 119 सदस्यीय विधानसभा में 103 सीटें लेकर सत्ता में TRS पर इस हार-जीत से कोई गणितीय फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, भाजपा अब जनता के मन में ये बताने में कामयाब रहेगी कि राज्य में मुख्य विपक्ष वही है, कॉन्ग्रेस पार्टी नहीं। इसी तरह पिछले साल नवंबर के डुबक्का उपचुनाव में भाजपा के माधवेनेनी रघुनन्दन राव ने जीत दर्ज की थी।

उससे भाजपा को काफी प्रोत्साहन मिला था। ये चुनाव भाजपा और उसके उम्मीदवार के कद, दोनों का था। कॉन्ग्रेस ने 2018 के चुनाव में इस सीट से 61,000 वोट प्राप्त किए थे, लेकिन उसके उम्मीदवार ने पाला बदल कर TRS ज्वाइन कर लिया और यहाँ उसे ढंग का उम्मीदवार तक नहीं मिल पाया। TRS ने अपने छात्र विंग के मुखिया श्रीनिवास यादव को यहाँ उतारा था, लेकिन लड़ाई राजेंद्र और KCR – दो चेहरों के बीच थी। इस साल जून में भाजपा में शामिल हुए राजेंद्र 2003 से ही TRS में थे और 6 बार विधायक रहे थे।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया