मानहानि मामले में राहुल गाँधी को राहत नहीं, 2 साल की सजा सूरत कोर्ट ने रखी बरकरार: ‘हर चोर का मोदी सरनेम क्यों’ कहने पर ठहराए गए थे दोषी

राहुल गाँधी को 2 साल की सजा (फाइल फोटो)

काॅन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) को सूरत की सेशन कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। 20 अप्रैल 2023 को कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसका मतलब है कि मानहानि मामले में उनकी दो साल की सजा बरकरार रहेगी। साथ ही उनकी संसद सदस्यता भी बहाल नहीं होगी। अब इस मामले में राहत के लिए उन्हें हाई कोर्ट जाना होगा।

काॅन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को सूरत की सेशन कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। 20 अप्रैल 2023 को सेशन कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। याचिका में उन्होंने मानहानि मामले में 2 साल की सजा पर रोक की गुहार लगाई थी। राहुल गाँधी ने 2019 में कर्नाटक की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है’। इसके बाद बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ केस दर्ज कराया था। सूरत की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इसी साल 23 मार्च को काॅन्ग्रेस नेता को इस मामले में 2 साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता भी चली गई थी।

13 अप्रैल 2019 को राहुल गाँधी ने कहा था, “नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी इन सभी के नाम में मोदी लगा हुआ है। सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों लगा होता है।” इस बयान के बाद भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ सूरत में मामला दर्ज कराया था। राहुल गाँधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज करवाया था, जो आपराधिक मानहानि से संबंधित है। करीब 4 साल बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट ने राहुल गाँधी को दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी। हालाँकि उन्हें तुरंत जमानत देते हुए ऊपरी अदालत में अपील के लिए 30 दिनों का समय दिया था।

मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सत्र न्यायालय में अपील दायर की गई थी। इसकी पहली सुनवाई पर राहुल दलबल के साथ कोर्ट पहुँचे थे। पहली सुनवाई पर सेशन कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए 10 अप्रैल तक मानहानि मामले में सभी पक्षों से जवाब दाखिल करने को कहा था।

सेशन कोर्ट में राहुल गाँधी की तरफ से दी गई दलीलों में से एक में कहा गया था कि न्यायाधीश को उनके कद को उचित श्रेय देना चाहिए था। राहुल गाँधी ने अपने सब्मिशन में कहा था, “उम्मीद की जाती है कि ट्रायल जज दो साल की सजा देने के परिणामों से अवगत होंगे, अर्थात् अनिवार्य अयोग्यता को लेकर। इस तरह की अयोग्यता एक ओर मतदाताओं के जनादेश की अस्वीकृति और दूसरी ओर राजकोष पर भारी बोझ डालती है। इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि जज सजा के आदेश में इस प्रकृति के परिणाम का उल्लेख करेंगे।”

दरअसल, राहुल गाँधी का कहना था कि न्यायाधीश ने उन्हें जो सजा सुनाई वह लोकतंत्र के खिलाफ था, क्योंकि इससे राहुल गाँधी को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिए। न्यायाधीश को इस परिणाम के बारे में ‘जानना’ चाहिए था। राहुल गाँधी का तर्क यह कहने जैसा था कि एक उद्योगपति को उचित सजा नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे उसके व्यवसाय को नुकसान होगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया