रेल बजट को लेकर TMC के डेरेक ओ ब्रायन ने संसद में फैलाया झूठ, रेल मंत्रालय ने किया बेनकाब

डेरेक ओ ब्रायन और पीयूष गोयल

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) में शामिल होकर भाषण देते हुए तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने यूनियन बजट की आलोचना की और इसे दृष्टिकोण रहित बताया। उन्होंने कहा, “भारत का पहला पेपरलेस बजट 100 फ़ीसदी विज़नलेस बजट भी है। इस फर्जी बजट की नीति है भारत को बेचना।” 

ब्रायन का कहना था कि सरकार ने रेलवे, हवाई अड्डे और बंदरगाह बेच दिए हैं। इसके अलावा उन्होंने भारतीय रेलवे की कार्यप्रणाली पर भी कई आलोचनात्मक टिप्पणी की। उन्होंने भारतीय रेलवे पर पश्चिम बंगाल में 31 परियोजनाओं को आश्रय देने का आरोप लगाया। इसके अलावा कई परियोजनाओं को एसपीवी (SPV) मॉडल के अंतर्गत लेकर आने की भी आलोचना की, जिसमें राज्य सरकार भी हितधारक (stakeholder) बन जाती है। टीएमसी सांसद के मुताबिक़ रेलवे संघीय ढांचे (federalism) के मामले में असफल रहा है। क्योंकि एसपीवी प्रणाली के तहत राज्य सरकार को परियोजना का 50 फ़ीसदी खर्च उठाना होता है। जबकि इसके पहले तक परियोजना का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती थी। 

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मोदी सरकार के रेलवे बजट को आम बजट मिलाने के फैसले को लेकर टीएमसी सांसद ने कहा कि अब कोई अलग रेलवे बजट नहीं है।

रेल मंत्रालय ने ब्रायन की बातों का करारा जवाब देते हुए मंत्रालय द्वारा लिए गए फैसले की वकालत की। इस मुद्दे पर जारी किए गए बयान में रेलवे मंत्रालय ने कहा कि अब रेलवे के खर्च आम बजट के साथ पेश किए जाते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि रेलवे के संसाधनों में कटौती की जाती है। मंत्रालय का कहना है कि बजट विलय के फैसले ने रेलवे को सरकारी नीतियों के केंद्र में लाया है और अधिकांश क्षेत्रीय आवंटन सुनिश्चित किए हैं। बयान के मुताबिक़, “विलय के फैसले की वजह से मल्टी मोडाल ट्रांसपोर्ट प्लानिंग (multi modal transport planning) में मदद मिली है। जो 1.07 लाख करोड़ रुपए की मदद से स्पष्ट है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 53 फ़ीसदी अधिक है।” 

पश्चिम बंगाल को नज़रअंदाज़ करने के आरोपों का जवाब देते हुए मंत्रालय ने जानकारी दी। जिसके मुताबिक़ पश्चिम बंगाल में आधारभूत संरचना और सुरक्षा परियोजनाओं के अंतर्गत 2021-22 में 6636 करोड़ का बजट जारी किया गया है जो कि अभी तक का सबसे बड़ा बजट है। यह पिछले साल की तुलना में 26 फ़ीसदी ज़्यादा है और 2009-14 की तुलना में लगभग 51 फ़ीसदी ज़्यादा है।

पश्चिम बंगाल के लिए जारी की गई परियोजनाओं की जानकारी देते हुए मंत्रालय ने बताया कि प्रदेश को 53 परियोजनाएं दी जा रही हैं। जिसमें से 34 का टोकन आवंटन पूरा हो चुका है। इसमें से कुछ परियोजनाएं 45 साल पुरानी, लगभग 1974-75 के बीच की हैं जिन्हें भूमि अधिग्रहण, प्रदेश सरकार या स्थानीय कारणों के चलते टाला जा रहा था। अब इनके लिए धनराशि का आवंटन इनकी प्रगति और प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। इसलिए अब एक परियोजना में किसी तरह की समस्या आती है तो मंत्रालय उसके लिए धनराशि आवंटित नहीं करेगा।   

इसके अलावा मंत्रालय ने कुछ परियोजनाओं के लिए एसपीवी प्रोजेक्ट लागू करने का कारण भी बताया है। फ़िलहाल कुछ परियोजनाओं का खर्चा केंद्र सरकार ही उठाती है और कुछ को तमाम कारणों की वजह से एसपीवी के दायरे में रखा गया है। यह मॉडल रेलवे में संसाधनों की बढ़ोतरी करने के लिए तैयार किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि एसपीवी की मदद से राज्य सरकारों को आर्थिक निर्णय लेने में मदद मिलेगी और उनकी भागीदारी बढ़ेगी। 

राज्य सरकारें भी ऐसे प्रोजेक्ट चाहती हैं जो जनता की माँग पर आधारित होते हैं। ऐसे प्रोजेक्ट नहीं चाहती हैं जो रेलवे के लिए फ़ायदेमंद होते हैं। एसपीवी प्रणाली के तरह राज्य सरकारों को परियोजनाओं का चुनाव करने की आज़ादी होगी और निजी सहायता, मुफ़्त ज़मीन और वायबिलीटी गैप फंडिंग (Viability Gap Funding) की मदद से बेहतर बनाने का विकल्प होगा। 

इन परियोजनाओं के लिए रेलवे मंत्रालय मुफ़्त ज़मीन और 50 फ़ीसदी खर्च की साझेदारी के विकल्प पर विचार कर रहा है। इसकी वजह से परियोजना में शामिल हित धारकों में समन्वय स्थापित होगा और प्रोजेक्ट के लिए अतिरिक्त फंड की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा रेल मंत्रालय ने उस आरोप को भी खारिज कर दिया है कि मंत्रालय ने पिंक बुक जारी नहीं की है। मंत्रालय के मुताबिक़ यह 3 फरवरी को जारी की गई थी और पब्लिक डोमेन पर मौजूद है। 

दरअसल, रेल मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से पहले ही निवेदन किया था कि वो भूमि अधिग्रहण, अतिक्रमण हटाने और क्षेत्रीय समस्याओं का जल्द से जल्द निस्तारण करे। जिसकी वजह से रेलवे के लगभग तीन दर्जन प्रोजेक्ट रुके हुए हैं लेकिन ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं की है। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि वह ममता बनर्जी से निवेदन करना चाहते हैं वह प्रक्रिया आगे बढ़ाते हुए प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन प्रदान करें।

रेल मंत्री के मुताबिक़ राज्य सरकार की वजह से इन परियोजनाओं में समय लग रहा है, पहले वामपंथी सरकार और अब तृणमूल सरकार। 45 वर्ष पुरानी परियोजनाएं रुकी हुई हैं। पहले रेल मंत्रालय ने बिना ज़मीन और फंड्स की उपलब्धता देखे प्रोजेक्ट आवंटन कर दिया था। इसकी वजह से रेलवे के बहुत से प्रोजेक्ट रुके हुए हैं। लेकिन अब प्रक्रिया बदल चुकी है, अब रेलवे सिर्फ तब प्रोजेक्ट शुरू करता है अगर उसके पास ज़मीन होती है। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया