राहुल के इस्तीफ़े को लेकर संशय बरक़रार, राज्य के नेताओं में आपस में ही सिर-फुटव्वल

राहुल गाँधी को लेकर अभी भी संशय बरक़रार

कॉन्ग्रेस पार्टी में रार बढ़ती ही जा रही है और इसका सबसे बड़ा कारण है राहुल गाँधी की अध्यक्षता पर संशय के बादल का छाना। मीडिया में आई कई ख़बरों का न तो अब तक राहुल ने खंडन ही किया है और न ही हामी भरी है। जहाँ कई दिनों तक वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलने से आनाकानी करते रहे, वहीं अब वह अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे पर हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पार्टी का आंतरिक संगठन बड़े कलह के दौर से गुजर रहा है और पार्टी अध्यक्ष राहुल पद पर बने रहेंगे या नहीं, इसकी अनिश्चितता के कारण नेतागण आपस में ही सिर-फुटव्वल कर रहे हैं।

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अगर राहुल गाँधी अपना इस्तीफ़ा वापस नहीं लेते हैं तो स्थिति और विकट हो सकती है। वहीं दूसरा धरा ऐसा भी है, जिसके मानना है कि पार्टी में बड़े बदलाव ज़रूरी हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने सार्वजनिक रूप से साफ़-साफ़ कहा है कि राहुल को अपने इस्तीफ़े को लेकर अनिश्चितता ख़त्म करनी चाहिए। वरिष्ठ नेतागण राहुल को पार्टी के राज्यस्तरीय संगठन में बदलाव करने की सलाह दे रहे हैं। वीरप्पा मोइली ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा:

“राहुल गाँधी को अब फ़ैसला लेना चाहिए। यह पार्टी के अध्यक्ष पद को छोड़ने का समय नहीं है। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि इंदिरा को भी 1977 में ऐसे वक़्त का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने आगे बढ़ने का फ़ैसला लिया। उन्हें पार्टी की कमान संभालनी चाहिए, राज्यों की यूनिटों के विवादों के निपटारे करते हुए संगठन की दिशा तय करनी चाहिए।”

17 जून से संसद का सत्र शुरू हो रहा है। ऐसे में, अगर तब तक पार्टी अध्यक्ष को लेकर संशय समाप्त नहीं होता है, तो संसद में विपक्ष की एकता को गहरा धक्का लगेगा। एक बैठक के दौरान वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद की मौजूदगी में हरियाणा के कॉन्ग्रेस नेताओं के बीच आपस में तू तू-मैं मैं हुई। महाराष्ट्र में कई कॉन्ग्रेस नेताओं ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया है। कर्नाटक में कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन के ख़राब प्रदर्शन के बाद राज्य के सत्ताधारी गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। निर्दलियों को अहम पद देकर डैमेज कण्ट्रोल की कोशिश हो रही है।

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पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के पर कतरना शुरू कर दिया है और उनका मंत्रालय बदलने के बाद उन्हें मंत्रिमंडलीय समितियों में भी जगह नहीं दी गई। भोपाल में ख़ुद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की बुरी हार हुई और मुख्यमंत्री कमलनाथ के सहयोगियों के ठिकानों पर आईटी विभाग की छापेमारी के बाद कॉन्ग्रेस की राज्य यूनिट में संकट का माहौल है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया