₹50 लाख देकर हड़प ली ₹2000 करोड़ की संपत्ति, सोनिया-राहुल के पास 76% शेयर: आसान शब्दों में समझिए ‘नेशनल हेराल्ड’ का ‘खेला’

'नेशनल हेराल्ड' मामले में राहुल गाँधी से ED की पूछताछ (फाइल फोटो)

प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उनके बेटे व कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को पूछताछ के लिए समन भेजा। जहाँ सोनिया गाँधी फ़िलहाल अस्पताल में भर्ती हैं, देश में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के शक्ति प्रदर्शन के साथ राहुल गाँधी ED के दफ्तर में पेश हुए। आइए, हम आपको समझाते हैं कि ये नेशनल हेराल्ड मामला है क्या और गाँधी परिवार व कॉन्ग्रेस पार्टी पर कौन सी वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप हैं।

सबसे पहले इस मामले में जिन टर्म्स का बार-बार इस्तेमाल हो रहा है, उसे समझ लेते हैं। जैसे, AJL के बारे में आप सुन रहे होंगे। AJL का अर्थ है – एसोसिएट जर्नल लिमिटेड। ये वही प्रकाशन कंपनी थी, जो ‘नेशनल हेराल्ड’ नामक अख़बार निकालती थी। इस अख़बार की स्थापना खुद स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी, जो कई दफे कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। AJL में न सिर्फ जवाहरलाल नेहरू, बल्कि 5000 स्वतंत्रता सेनानियों को शेयरधारक बनाया गया था।

राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली स्थित ITO में इसका पंजीकृत मुख्यालय हुआ करता था। अब दूसरा टर्म जो आप सुन रहे होंगे, वो है – YIL, यानी यंग इंडिया लिमिटेड। ये वो कंपनी है, जिसकी स्थापना 2010 में की गई थी। सोनिया गाँधी और उनके बेटे राहुल गाँधी इसके 76% शेयरों का स्वामित्व रखते हैं, अर्थात मेजोरिटी शेयर्स उनके पास हैं। बाक़ी के 24% शेयर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा और पूर्व केंद्रीय मंत्री ऑस्कर फर्नांडिस के पास थे।

ये दोनों ही कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता हुआ करते थे, जिनका अब निधन हो चुका है। मोतीलाल वोरा AJL के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हुआ करते थे। वो AICC (ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी) के कोषाध्यक्ष भी रहे हैं। साथ ही ‘यंग इंडियन’ में भी उनके पास 12 शेयर्स थे। इसी तरह ऑस्कर फर्नांडिस भी AJL और YIL के डायरेक्टर रहे थे। अब बात करते हैं कॉन्ग्रेस पार्टी की। ये सब शुरू हुआ ‘नेशनल हेराल्ड’ अख़बार के घाटे में जाने से।

कई वर्षों से सर्कुलेशन कम होने और घाटे में जाने के कारण 2008 में ‘नेशनल हेराल्ड’ अख़बार को बंद कर दिया गया। इसने अपने ऑपरेशन्स बंद कर दिए। लेकिन, दिल्ली, लखनऊ और मुंबई जैसे महानगरों में इसके पाद अकूत संपत्ति थी। अख़बार के पास 2000 करोड़ रुपए की संपत्ति होने का अंदाज़ा लगाया गया। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी की बड़ी-बड़ी बातें करते हुए इसी की आड़ में कॉन्ग्रेस ने ‘नेशनल हेराल्ड’ को पुनर्जीवित करने की ठानी।

असली खेल यहीं से शुरू हुआ, जब कॉन्ग्रेस ने अपने पार्टी फंड से अख़बार को 90 करोड़ रुपए का लोन दिया। 2010 में कॉन्ग्रेस ने अपनी नई कंपनी YIL को AJL वाला ऋण असाइन कर दिया। अब AJL ऋण को वापस नहीं कर पाया। फिर उसकी सारी संपत्तियों को YIL को ट्रांसफर कर दिया गया। इस तरह 50 लाख रुपए के बदले AJL की सारी संपत्तियों का मालिकाना हक़ गाँधी परिवार के स्वामित्व वाली YIL के पास चली गई।

ये एक विवादित डील साबित हुआ। 2013 में भाजपा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने शिकायत दर्ज कराते हुए पूछा कि 1000 शेयरधारकों वाली 2000 करोड़ रुपए की संपत्ति किसी कंपनी से मात्र 50 लाख रुपए का लोन देकर कैसे हड़पी जा सकती है? कुल लोन 90.25 करोड़ रुपए का था, जिसके माध्यम से स्वामी ने गाँधी परिवार पर धोखाधड़ी के करने के आरोप लगाए। कॉन्ग्रेस के इन 4 बड़े नेताओं के अलावा पार्टी की ओवरसीज शाखा के अध्यक्ष सैम पित्रोदा और ‘राजीव गाँधी फाउंडेशन’ के पत्रकार सुमन दुबे भी इस मामले में आरोपित हैं।

2015 में वयोवृद्ध अधिवक्ता शांति भूषण ने दावा किया कि उनके पिता विश्वामित्र भी AJL में शेयरहोल्डर थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि शेयरहोल्डर्स की सहमति लिए बिना ही इसकी संपत्तियों को ‘यंग इंडियन’ को ट्रंसफर कर दिया गया। 2014 में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट गोमती मनोचा ने गाँधी परिवार समेत सभी आरोपितों को समन किया। मजिस्ट्रेट ने कहा कि IPC की धारा-403 (संपत्तियों को लेकर बेईमानी), 406 (विश्वास को आपराधिक रूप से धोखा) , 420 (ठगी) और 120B (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत केस दर्ज करने का मामला बनता है।

2014 में ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जाँच शुरू की। 2015 में गाँधी परिवार के माँ-बेटे पटियाला हाउस कोर्ट से जमानत पाने में सफल रहे। फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपितों पर मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। ED फ़िलहाल लेनदेन के विवरण, स्वामित्व का पैटर्न और AJL के प्रमोटर्स के रोल की भी जाँच कर रहा है। PMLA के तहत नया केस दर्ज होने के बाद आयकर विभाग (IT) भी मामले को देख रहा है।

‘नेशनल हेराल्ड’ की स्थापना 1937 में हुई थी। AJL तब उर्दू में ‘कौमी आवाज़’ और हिंदी में ‘नवजीवन’ नामक अख़बार निकालता था। नेहरू के लेख इसमें अक्सर आया करते थे। अंग्रेज सरकार ने इसे 1942 में बैन कर दिया था। नेहरू स्वतंत्रता के बाद इसके बोर्ड के अध्यक्ष पद से तो हट गए, लेकिन अख़बार कॉन्ग्रेस से ही चलता रहा। 1963 में इसके सिल्वर जुबली कार्यक्रम में नेहरू ने सन्देश जारी किया। 2016 में इसे फिर से डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में लॉन्च किया गया।

दरअसल, यंग इंडियन को सेक्शन 25 के तहत एक चैरिटेबल संस्था बनाई गई थी, जिसे टैक्स से छूट दी गई थी। गाँधी परिवार की कंपनी ने आयकर विभाग में इस छूट के लिए मार्च 2011 को आवेदन दिया था, जब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस की सरकार थी और 9 मई 2011 को बिना किसी दिक्कत के इसे मंजूरी भी दे दी गई। एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में पंजीकृत होने के बावजूद यंग इंडियन ने पब्लिशिंग हाउस होने की आड़ में संपत्तियों का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया था। इसे वर्ष 2010-11 में भी टैक्स में छूट प्राप्त हुआ।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया