वामपंथियों-पाकिस्तानियों की शह पर काम करने वाली संस्था ने भारत में ‘लोकतंत्र’ का घटाया दर्जा, राहुल गाँधी ने लपका

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी (साभार: इंडिया टीवी न्यूज)

स्वीडन स्थित वी-डेम (V-Dem) इंस्टीट्यूट ने अपनी हालिया रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत अब ‘इलेक्टोरेल डेमोक्रेसी’ नहीं रहा, बल्कि ‘इलेक्टोरेल ऑटोक्रेसी’ बन गया है। सरल भाषा में समझें तो इस रिपोर्ट में भारत में लोकतंत्र के दर्जे को घटाकर इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी ‘चुनावी एकतंत्रता’ या चुनावी निरंकुशता कर दिया गया है।

इस भारत विरोधी रिपोर्ट को हवा देने का काम जो लोग कर रहे हैं उनमें कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी भी हैं। राहुल ने गुरुवार (मार्च 11, 2021) को स्वीडिश मीडिया का हवाला देकर ट्विटर पर लिखा कि इंडिया अब लोकतांत्रिक देश नहीं रह गया है। उन्होंने जो स्क्रीनशॉट शेयर किया उसमें लिखा था कि पाकिस्तान की तरह अब भारत भी ऑटोक्रेटिक है। भारत की स्थिति बांग्लादेश से भी खराब है।

मालूम हो कि ये पहली बार नहीं है कि जब राहुल गाँधी ने देश विरोधी एजेंडे को हवा दी है। वे पहले भी कई बार ऐसा कर चुके हैं। मसलन जब चीन के साथ विवाद बढ़ना शुरू हुआ था तो उन्होंने चीन के विरुद्ध कोई भी बयान देने की बजाय भारतीय सरकार को जमकर घेरा था। वीडियो रिलीज करके उन्होंने मोदी सरकार की आलोचना की थी। इसी प्रकार जब पुलवामा हमला हुआ था तब भी उनकी पार्टी ने पाकिस्तान की जगह अपनी सरकार पर सवाल उठाए थे।

दिलचस्प बात ये है कि राहुल गाँधी ने आज जिस रिपोर्ट का हवाला देकर भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाए हैं, उस रिपोर्ट को तैयार करने वालों में कुछ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नफरत करने वाले भी हैं। इस संस्था के सदस्यों में दो भारतीय हैं।

V-Dem की वेबसाइट से लिया गया स्क्रीनशॉट

एक का नाम प्रताप भानू मेहता है, जो सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष हैं और दूसरे जेएनयू के प्रोफेसर नीरजा गोपाल जयाल। दोनों ही सीएए समेत मोदी सरकार की सभी नीतियों के हमेशा विरुद्ध रहते हैं और गौर करने वाली बात है कि वी-डेम की इस रिपोर्ट में भारत के ऑटोक्रेसी होने के पीछे सीएए को सबसे प्रमुख उदाहरण बताया गया है।

इन दोनों भारतीयों में से वी-डेम वेबसाइट ने आज किन्हीं कारणों से प्रताप भानू मेहता का नाम लिस्ट से हटा दिया है। पहले वह इस जगह बतौर एडवाइजर लिस्टेड थे, जिसे वेबपेज के आर्काइव में देखा जा सकता है। इनके अलावा एडवाइजरी बोर्ड में पाकिस्तानी वकील व राजनीतिज्ञ एतजाज एहसान भी शामिल है। सबसे बड़ी बात जो ध्यान देने वाली है वह यह कि स्वीडिश संस्था ने भारत के लोकतंत्र पर फैसला केवल दो दर्जन लोगों के विचार के आधार पर सुनाया है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया