लगभग एक सप्ताह चली रस्साकशी के बाद गुजरात में आम आदमी पार्टी (AAP) और कॉन्ग्रेस ने गठबंधन का ऐलान कर दिया है। कॉन्ग्रेस राज्य में 24 और AAP दो सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इन दो सीटों पर AAP ने पहले ही अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। भावनगर लोकसभा सीट से उसके विधायक उमेश मकवाना, जबकि भरूच सीट से विधायक चैतर वैसावा चुनाव लड़ेंगे।
दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन में सबसे ज्यादा समस्या भरूच सीट को लेकर थी। यह सीट कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद स्वर्गीय अहमद पटेल की परंपरागत सीट मानी जाती थी। उन्होंने यहाँ से 1977 और 1984 में चुनाव जीता था। हालाँकि, 1989 के बाद से यहाँ भाजपा का परचम बुलंद है। इसके बाद से भाजपा यहाँ कभी नहीं हारी है।
कॉन्ग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री अहमद पटेल की मृत्यु के बाद उनके बेटे फैसल पटेल और बेटी मुमताज पटेल सक्रिय राजनीति में आ गए हैं। ऐसे में इस बात को लेकर चर्चा थी कि इस सीट से कॉन्ग्रेस इन दोनों में से किसी एक को लोकसभा का चुनाव लड़वा सकती है। हालाँकि, अब इन सभी कयासों पर विराम लग गया है और यह सीट AAP के खाते में आई है।
कॉन्ग्रेस ने क्यों छोड़ दी भरूच सीट?
मुमताज पटेल और फैसल पटेल के खुले विरोध के बाद भी भरूच सीटर पर कॉन्ग्रेस ने AAP के सामने अपने हथियार डाल दिए हैं। भरूच एक मुस्लिम बहुल सीट है। इसके अलावा, यहाँ जनजातीय समुदाय के लोगों की भी संख्या अच्छी है। फिर भी इसे कॉन्ग्रेस ने AAP को सरेंडर क्यों कर दिया, इसके पीछे एक से अधिक कारण हो सकते हैं।
दरअसल, जबसे भरूच के अंतर्गत आने वाले एक विधानसभा सीट डेडियापाड़ा से AAP के चैतर वैसावा चुनाव जीतकर विधायक बने हैं, तब से पार्टी लगातार भरूच लोकसभा से चुनाव लड़ने के मूड में दिख रही है और यहाँ से डेडियापाड़ा के वर्तमान विधायक को लड़ाना चाह रही है। AAP का आईटी सेल लगातार वैसावा का प्रचार प्रसार कर रही है।
कुछ यूट्यूब चैनल भी इस प्रोपगैंडा में शामिल हैं। इनमें से कुछ निष्पक्षता का दावा कर रहे हैं, जबकि कुछ खुले तौर पर ‘लोकसभा के लिए चैतर वैसावा’ का अभियान चलाए हुए हैं। हाल ही में वह वनकर्मियों को पीटने के जुर्म में भी पकड़े गए थे। इसको लेकर बवाल भी हुआ था और पार्टी ने इसी का फायदा उठाकर उनके नाम की घोषणा कर दी।
भरूच लोकसभा सीट का मुस्लिम वोट बैंक अब तक कॉन्ग्रेस के पास रहा है। हालाँकि, यह बात अलग है कि यह सीट आखिरी बार कॉन्ग्रेस ने 1984 में जीती थी, लेकिन यहाँ अल्पसंख्यक वोटों का खूब ध्रुवीकरण होता है। ऐसे में AAP ने चैतर को एक जनजातीय चेहरा बनाकर पेश करने और लोकसभा जीतने की जुगत भिड़ाई है। हालाँकि यह इतना आसान नहीं है, जितना दिखता है।
यहाँ के स्थानीय कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता अहमद पटेल के बेटे-बेटी के साथ हैं। दोनों ने ऐलान भी किया है कि यदि यह सीट AAP के पास जाती है तो वह निर्णय स्वीकार कर लेंगे, लेकिन AAP उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लेंगे। अगर वे अपने निर्णय पर अटल रहे तो यह गठबंधन कुछ हासिल नहीं कर पाएगा। ऐसी परिस्थिति में वोट बिखर जाएँगे।
कॉन्ग्रेस अब यहाँ अपना उम्मीदवार नहीं उतरेगी, इसके बावजूद अपने वोट को AAP के पक्ष में हस्तांतरित कराने में नाकाम रहती है तो परिस्थितियाँ पहले जैसी ही रहेंगी और भाजपा इसका फायदा उठा सकती है। दूसरी बात ये भी है कि कोई भी चुनाव केवल एक ही मुद्दे पर नहीं लड़े जाते। ऐसे में यह सोचना मूर्खता होगी कि कोई जाति का फॉर्मूला लगाकर यहाँ जीत हासिल कर सकता है।
दूसरी तरफ भाजपा के पास पीएम मोदी का चेहरा है। भाजपा ने यहाँ पिछले कुछ दशक में अपना एक बड़ा वोट बैंक तैयार किया है। यह वोट बैंक इसलिए विशेष है, क्योंकि यह जाति जैसे मुद्दों को देखकर वोट नहीं देने वाली। उनका वोट पीएम मोदी को होता है। इस स्थिति में चैतर वैसावा के जीतने की उम्मीदें नगण्य ही मानी जा रही है।
कॉन्ग्रेस ने भावनगर सीट AAP को क्यों दी?
अगर भावनगर सीट की बात की जाए तो यहाँ विधानसभा चुनाव में AAP का प्रदर्शन बाकी सीटों से अच्छा था। पार्टी ने भावनगर लोकसभा के अंतर्गत आने वाली दो विधानसभा सीटों- बोटाद और गरियाधर जीती थीं। दूसरी तरफ भावनगर, सुरेंद्रनगर और अमरेली इलाके में कॉन्ग्रेस के पास एक भी सीट नहीं है। ऐसे में कॉन्ग्रेस ने इस सीट पर से दावा छोड़ दिया, क्योंकि कॉन्ग्रेस के पास यहाँ खोने के लिए कुछ नहीं है।
हालाँकि, यहाँ भी AAP की राह आसान नहीं होने वाली है। इस सीट पर भाजपा इन दोनों पार्टियों से कहीं अधिक मजबूत है। 1991 के बाद यहाँ से पार्टी का उम्मीदवार जीतता आया है। भारतीबेन शियाल इस सीट से पिछले 2 बार से जीत रही हैं। उनको 2014 में 59% वोट मिले थे, जो 2019 में बढ़कर 63% हो गए। 2019 में कॉन्ग्रेस उम्मीदवार को सिर्फ 31.86% वोट मिले थे।
इन सब परिस्थितयों को देखते हुए यदि AAP भावनगर सीट पर लड़ती है तो वहाँ उसके पास ना ही कोई मजबूत चेहरा है और ना ही पार्टी यहाँ कोई साख है। भले ही विधानसभा चुनाव में 2 सीटें जीतकर कॉन्ग्रेस के सामने AAP ने अपना लोकसभा चुनाव का दावा मजबूत कर दिया हो, लेकिन इसी आधार पर जीत हासिल करना मुश्किल होगा।
दरअसल, विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं, जबकि लोकसभा राष्ट्रीय मुद्दों पर। लोकसभा सीट का क्षेत्रफल भी बड़ा होता है। ऐसे में वोट बँट जाते हैं। इसके अलावा, बोटाद से मौजूदा आप विधायक उमेश मकवाना, जिन्हें AAP ने अपना उम्मेदवार बनाया है, अपने क्षेत्र में कोई ख़ास प्रभाव नहीं बना सके हैं। उन्हें विधानसभा में वोट देने वाले भी यह सोचते हैं।
इन सब परिस्थियों को देखते हुए यह तय है कि इस बार लोकसभा चुनाव का पैटर्न भी विधानसभा चुनाव जैसा ही रहने वाला है। बता दें कि AAP इसे पहले विधानसभा चुनाव में गुजरात में सरकार बनाने का दावा ठोक रही थी, जबकि नतीजों में उसे मात्र 5 सीट मिली थीं। जीतने वाले सभी उम्मीदवार कुछ हद तक अपने प्रयासों से, कुछ जातिवाद के कारण और अन्य पार्टियों में आंतरिक फूट के कारण जीते।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 370 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य रखा है। स्वाभाविक है कि उसका लक्ष्य गुजरात की 26 की 26 सीटें हैं। यूँ तो लोकसभा चुनाव के लिए अभी 2 महीने का समय है, लेकिन सभी समीकरण यही दिखा रहे हैं कि इस बार भी भाजपा गुजरात में क्लीन स्वीप करते हुए 26 सीट अपने नाम करेगी।
(इस खबर को मूल रूप से गुजराती में लिखा गया है। आप इसे इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।)