बजट 2019: किसानों की आय बढ़ाने को प्रतिबद्ध मोदी सरकार, दे सकती है ये सौगात

बिचौलियों के चलते किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है (फाइल फोटो)

2019 का बजट इस मायने में ख़ास है कि यह बजट 2019 लोकसभा चुनाव से पहले और सरकार के पाँच साल के कार्यकाल के अंत में पेश किया जाएगा। कार्यकाल के अंत में या लोकसभा भंग होने से पहले पेश बजट को अंतरिम बजट कहा जाता है। सरकार 1 फरवरी को अंतरिम बजट 2019-20 पेश करेगी। बजट में ये उम्मीद की जा रही है कि सरकार स्वच्छता, निवेश, रेलवे, टैक्स, सड़कों के साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई सौगातें दे सकती है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ करीब 70% लोगों की आजीविका आज भी कृषि पर निर्भर है। आँकड़ों के मुताबिक़ देश में लगभग 70% किसान हैं। किसान सही मायने में देश के रीढ़ की हड्डी है। कृषि का देश की मौजूदा जीडीपी में लगभग 17% का योगदान है।

रिपोर्ट के अनुसार, सरकार का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय दोगुनी करने का है। साथ ही उन्हें कई चीजों मेंं रियायत देने के बारे में भी सरकार विचार कर रही है। रिपोर्ट की मानें तो किसानों को उनकी उपज की सही कीमत नहीं मिल रही है। ज्ञात हो कि पिछले बजट में सरकार ने किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी। लेकिन, इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सका। बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी विशेष ध्यान देने की उम्मीद है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 20-25% वृद्धि की संभावना के भी अनुमान लगाए जा रहे हैं।

डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से किसानों की आय बढ़ाने की तैयारी

बता दें कि, बिचौलियों के चलते किसानों को काफ़ी नुकसान उठाना पडता है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें उनकी मेहनत की पूरी लागत नहीं मिल पाती है। सरकार इसे लेकर गंभीर है। रिपोर्ट की मानें तो बजट में किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने की योजना के बारे में विचार किया जा रहा है। साथ ही अलग-अलग योजनाओं के जरिए सब्सिडी देने की बजाय सीधे उनके खाते में पैसा भेजने का फ़ैसला लिया जा सकता है। संभावना इस बात की भी है कि सरकार किसानों पर ख़र्च ₹70,000 करोड़ से बढ़ाकर ₹75,000 करोड़ कर सकती है।

एक नज़र किसानों को लेकर चल रही विभिन्न राज्यों की योजनाओं पर

कॉन्ग्रेस सरकार की ऋण माफ़ी के चुनावी हथियार से निपटने के लिए भाजपा सरकार विभिन्न राज्यों के किसानों को लेकर चल रही योजनाओं पर निरंतर मंथन कर रही है। देखना यह है कि किस राज्य का मॉडल सरकार द्वारा चुना जाता है।

मध्य प्रदेश भावान्तर योजना

पिछले साल मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने जिस ‘भावांतर योजना’ के ज़रिए 15 लाख किसानों की मदद की थी। केंद्र की मोदी सरकार भी उसी तर्ज़ पर किसानों को फ़सल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बिक्री मूल्य के अंतर को सीधे खाते में भेजने पर विचार कर रही है।

ओडिशा का ‘कालिया’ (KALIA) फ़ॉर्मूला

कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों की मदद के लिए ओडिशा सरकार ने ₹10,000 करोड़ की ‘जीविकोपार्जन एवं आय वृद्धि के लिए कृषक सहायता (KALIA)’ योजना लागू की है। इस स्कीम के तहत किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध किया जाएगा। इस स्कीम के द्वारा किसानों को कर्ज़माफ़ी के बजाय ख़ासतौर से सीमांत किसानों को फ़सल उत्पादन के लिए आर्थिक मदद दिया जाएगा। ‘KALIA’ योजना के तहत छोटे किसानों को रबी और खरीफ़ की बुआई के लिए प्रति सीजन ₹5000-5000 की वित्तीय मदद मिलेगी, अर्थात सालाना ₹10,000 दिए जाएँगे।

झारखंड मॉडल

झारखंड की रघुवर दास सरकार भी मध्यम और सीमांत किसानों के लिए ₹2,250 करोड़ की योजना की घोषणा कर चुकी है। झारखंड में 5 एकड़ की जोत पर सालाना प्रति एकड़ ₹5,000 मिलेंगे, एक एकड़ से कम खेत पर भी ₹5,000 की सहायता मिलेगी। इस योजना की शुरुआत झारखंड सरकार 2019-20 वित्त वर्ष से करेगी जिसमें लाभार्थियों को चेक या डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफ़र के ज़रिए मदद दी जाएगी।

तेलंगाना का ऋतु बंधु मॉडल

ओडिशा और झारखंड के साथ ही केंद्र सरकार तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू की गई किसान योजनाओं की भी पड़ताल कर रही है। तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ऋतु बंधु योजना शुरू की है। यहाँ के किसानों को प्रति वर्ष प्रति फ़सल ₹4000 प्रति एकड़ की रकम दी जाती है। दो फ़सल के हिसाब से किसानों को हर साल ₹8000 प्रति एकड़ मिल जाते हैं।

लगातार घट रही कृषि योग्य भूमि है चुनौती

कृषि ऋण और कर्ज़ माफ़ी जैसी योजनाएँ कहीं ना कहीं सरकारी राजस्व पर दबाव डालती हैं। फिर भी, सरकार के लिए किसान प्राथमिकता रहे हैं और उसे कोई न कोई मार्ग तो निकालना ही है। समय के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि भी देश में निरंतर घट रही है। ऐसी अनेक चुनौतियाँ हैं, जिन्हे मद्देनज़र रखते हुए सरकार अपना अंतरिम बजट पेश करेगी। मोदी सरकार का यह आख़िरी बजट है, इस कारण सभी की निगाह इस बजट पर रहनी सामान्य बात है।

आम धारणा है कि देश का चुनावी मिज़ाज काफी हद तक देश का किसान तय करता है। देश में ज्यादातर लोग कृषि पर आश्रित हैं, तो यह ज़ाहिर सी बात है कि सरकार उसकी बनती है जिसके साथ देश का किसान रहता है। वर्तमान सरकार किसानों की दशा सुधारने के लिए निरंतर महत्वपूर्ण प्रयास करती आ रही है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि पिछले 60 वर्षों तक किसानों के जो हालात रहें हैं उसकी क्षतिपूर्ति करिश्माई तरीके से करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया