जब शैतान को पत्थर मारने में मारे गए इंसान, बच्चे-बुजुर्ग-महिला सब कुचले गए: 12 जनवरी को मक्का में हुई थी 345 की मौत

2006 हज भगदड़

हज यात्रा के अंतिम दिन ‘शैतान को पत्थर मारकर’ अपने हज का सफर मुकम्मल कर लेना चाहते थे। लोग जमरात पुल पर जमा होने लगे। यहीं से तीन बड़ी पत्थर की दीवारों (अरबी में जमरात) पर पथराव करना होता है। पत्थर की इन दीवारों को ‘शैतान’ समझकर इन पर पत्थरबाजी की जाती है। हज यात्री अपने गुनाहों से निजात पाने के लिए शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदा करते हैं। इसी के साथ उनका हज मुकम्मल होता है।

हज के सफर का आखिरी दिन होने के कारण हजारों की तादाद में आजमीन-ए-हज अपना सामान लेकर मीना पहुँचते हैं। 12 जनवरी 2006 के दिन भी हालात ऐसे ही थे। शैतान को पत्थर मारने की रस्म दोपहर और सूरज डूबने के बीच अदा की जाती है। ज्यादातर हज यात्री ज़ुहर (दोपहर) की नमाज के बाद जल्द शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदा कर वापसी की तैयारी में लग जाते हैं।

इस दौरान यदि भीड़ को नियंत्रित करने में चूक हो जाए तो बड़ा हादसा हो सकता है। 12 जनवरी 2006 को भी ऐसा ही हुआ, जब हजारों लोगों की अनियंत्रित भीड़ जमरात ब्रिज पर जमा हुई तो अचानक भगदड़ मच गई और इसमें हज यात्री अपने सामान के साथ फँस गए। इस भगदड़ में 345 लोगों की मौत हो गई और 1,000 से ज्यादा लोग घायल हो गए। हादसे के बाद नजारा दहला देने वाला था। लोग अपने साथ लाए सामान (Luggage bags) के नीचे दबते चले गए और लाशों का ढेर लग गया।

द गार्जियन से बात करते हुए प्रत्यक्षदर्शी सौद अबू हमदा ने कहा, “शवों का ढेर लगा हुआ था। मैं लाशों को गिन नहीं पा सकता था। मैंने लोगों को एक-दूसरे पर कूदते और चिल्लाते हुए देखा।” इसके फौरन बाद हादसे से जुड़ा वीडियो फुटेज सामने आया, जिसमें सफेद चादर से ढँकी हज यात्रियों की सैकड़ों लाशें दिखाई दे रही थीं। सऊदी टीवी नेटवर्क अल-एखबरिया (al-Ekhbariyah) के मुताबिक, मरने वालों में ज्यादातर दक्षिण एशिया के लोग थे।

12 जनवरी, 2006 को मीना में तीर्थयात्रियों के शव निकाले गए (फोटो साभार Reuters)

हादसे वाली जगह के पास स्थित मीना जनरल अस्पताल घायलों से भर गया था। कुछ घायलों को पास के मक्का के अस्पतालों में तो कुछ को रियाद ले जाया गया। इस हादसे से कुछ दिन पहले भी मक्का में एक होटल की इमारत गिर जाने से 76 हज यात्रियों की मौत हो गई थी। जमरात पुल पर अक्सर भगदड़ जैसी घटनाओं में सैकड़ों लोगों की मौत होती रहती है।

वर्ष 1990 में इसी तरह की भगदड़ में 1426 मुस्लिम यात्रियों की मौत हो गई थी। वहीं साल 2004 में 244 तीर्थयात्री मारे गए थे। 2015 में भी हज यात्रा के दौरान लगभग 717 मुस्लिम यात्रियों की मौत हो गई थी।

इस्लामिक फाइंडर के अनुसार, यहाँ शैतान पर पत्थर मारने की परंपरा की शुरुआत इब्राहिम से हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब हजरत इब्राहिम अल्लाह को अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए चले थे तो रास्ते में शैतान ने उनका रास्ता रोका। शैतान ने उन्हें भटकाने की कोशिश की और कहा कि यदि तुम अपनी संतान की कुर्बानी दे दोगे तो बुढ़ापे में तुम्हें कौन देखेगा। इब्राहिम अल्लाह के हुक्म को पूरा करना चाहते थे ऐसे में उन्होंने शैतान को पत्थरों से मारा।

इसमें कहा गया है कि पहले शैतान एक बड़े पत्थर पर नजर आया इब्राहिम ने सात पत्थरों से उसपर हमला किया। इसके बाद शैतान बीच वाले दूसरी पत्थर पर भाग गया। उसने फिर से इब्राहिम को रोकने की कोशिश की और इब्राहिम ने फिर से पत्थर मार कर उसे भगा दिया। तीसरी बार शैतान सबसे छोटे पत्थर पर नजर आया। इब्राहिम ने फिर से पत्थर मार कर उसे भगा दिया। इसके बाद वह गायब हो गया। कहते हैं इसी के बाद से हज यात्री इन पत्थर की दीवारों पर पत्थर मारते हैं।

इसके बाद इब्राहिम ने आँख पर पट्टी लगाकर अल्लाह को दिए वादे को निभाते हुए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी दी। जब इब्राहिम ने अपनी आँख खोली तो सामने मेमना पड़ा हुआ था और इस्माइल जीवित था। कहते हैं इसी के बाद बकरीद के दिन कुर्बानी की परंपरा शुरू हुई। कहा जाता है कि इब्राहिम को अल्लाह ने अपनी सबसे पसंदीदा चीज की कुर्बानी देने का आदेश दिया था। इसलिए इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार थे। शैतान उन्हें अल्लाह का आदेश मानने से रोक रहा था इसलिए फरिश्ते जिब्राइल (Gabriel) ने उन्हें शैतान को पत्थर से मारने का आदेश दिया।

राजन कुमार झा: Journalist, Writer, Poet, Proud Indian and Rustic