Xitler: ओलम्पिक को चीन से बाहर कराने की माँग, लोगों को सता रहा 1936 के हिटलर का डर

2022 ओलम्पिक का आयोजन चीन की बजाय कहीं और कराने की माँग (साभार - Drew Pavlou twitter handle DrewPavlou)

साल 1936 में जर्मनी की नाज़ी सेना ने एडोल्फ़ हिटलर की अगुवाई में ओलम्पिक (समर) खेलों की मेजबानी की थी। इस आयोजन को लगभग 80 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी उसे स्वप्रचार के लिए इस्तेमाल किए गए सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में से एक माना जाता है। हालाँकि उन खेलों के आयोजन का उद्देश्य यह था कि अलग-अलग देश के खिलाड़ियों के बीच खेल भावना विकसित हो।

इन सारी बातों के विपरीत हिटलर ने इसे ‘नए जर्मनी’ का प्रोपेगेंडा फैलाने का माध्यम बना लिया था। अब इस कड़ी में तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि शी जिनपिंग 2022 के दौरान बीजिंग में होने वाले ओलम्पिक (विंटर) का उपयोग भी कुछ इस तरह कर सकते हैं। 

ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा #MoveTheGames

ट्विटर पर एक हैशटैग ट्रेंड कर रहा है #MoveTheGames और लोग इसके तहत आयोजकों से माँग कर रहे हैं कि 2022 में होने वाले ओलम्पिक का स्थान बदल दिया जाए, उसे चीन की जगह कहीं और आयोजित कराया जाए। 6 अक्टूबर को ब्रिटेन ने इस बात का ऐलान किया कि अगर इस बात के और सबूत सामने आते हैं कि चीन में उइगरों के मानवाधिकारों का हनन होता है तो वह 2022 के विंटर ओलम्पिक का बहिष्कार कर सकता है।

इस मुद्दे पर ट्वीट करते हुए विदेश सचिव डोमिनिक राब ने लिखा, “आम तौर पर कहूँ तो मेरा अनुमान कहता है कि खेल को कूटनीति और राजनीति से अलग रखना चाहिए लेकिन कभी-कभी हालात ऐसे होते हैं, जब ऐसा करना संभव नहीं होता है।”  

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चीन विरोधी विचारों को मिल रहा है बढ़ावा

हाल फ़िलहाल के कई मुद्दों पर चीन को लेकर पूरे विश्व में विरोध काफी बड़े पैमाने पर बढ़ा है। विकासशील देशों की चीज़ों पर कब्ज़ा करने के लिए उन्हें क़र्ज़ देने से लेकर, तकनीक के माध्यम से दुनिया भर के तमाम प्रशासनिक अधिकारियों की जासूसी करने तक, चीन का नाम कई नकारात्मक कार्यों में सामने आया है। इसके अलावा जिस तरह चीन के वुहान से कोरोना वायरस की शुरुआत हुई और उससे पूरी दुनिया में इतने बड़े पैमाने पर लोग प्रभावित हुए, इसके चलते भी दुनिया के तमाम देशों ने चीन और चीन की बनाई चीज़ों का बहिष्कार किया।

भारत चीन सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच विवाद होने पर भारत सरकार ने लगभग 300 से अधिक चीनी एप्लीकेशन पर प्रतिबंध लगा दिया था और चीनी समूहों के साथ समझौते रद्द कर दिए थे। इस कड़ी में अमेरिका ने भी चीन के विरुद्ध ट्रेड वॉर छेड़ दिया है। दुनिया सहित यूरोप के तमाम देशों ने चीन के दूरसंचार समूह हुआवे और ज़ेटीई (5जी प्रोजेक्ट) पर पाबंदी लगा दी। 

हिटलर और जिनपिंग के बीच समानताएँ

अगर किसी में भी इतिहास के सबसे आततायी तानाशाह से मिलती-जुलती बातें मौजूद हैं, तब ज़िम्मेदार देशों को किसी भी तरह के युद्ध को रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहिए। बेंजमिन फ्रेंकलिन ने किसी ज़माने में कहा था, “ग्लास, चीन और छवि बड़ी आसानी से बिगड़ जाते हैं और फिर इनमें सुधार नहीं किया जा सकता है।”

चीन ने अपनी वैश्विक शक्ति का उपयोग करके दुनिया के अनेक देशों की तकनीकी और उद्योग खरीद लिया है या उसकी नक़ल की है। खुद को वैश्विक शक्ति घोषित करने की होड़ में चीन ने हर उस आवाज़ को दबाने का प्रयास किया है, जो उसके विरोध में उठाई गई। कुछ जानकारों का यहाँ तक कहना है कि जिनपिंग माओ से आगे निकल चुके हैं और अब हिटलर के समानांतर हैं।     

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया