केंद्रीय जाँच एजेंसी (CBI) ने हॉक विमान की खरीदी में भारत सरकार को धोखा देने के आरोप में ब्रिटिश एयरोस्पेस कंपनी रोल्स रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड समेत कई लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है। इसमें हथियार डीलर सुधीर चौधरी, भानू चौधरी समेत अज्ञात सरकारी कर्मचारियों के नाम शामिल हैं।
हॉक विमान खरीदी में हुई धोखाधड़ी के मामले की जाँच कर सीबीआई का कहना है कि अज्ञात सरकारी कर्मचारियों ने कथित तौर पर अपने पदों का दुरुपयोग किया और रोल्स रॉयस तथा इसकी सहयोगी कंपनियों की 24 हॉक 115 एडवांस जेट ट्रेनर विमान की खरीद में मदद की थी। इसलिए सीबीआई ने अब कार्रवाई करते हुए FIR दर्ज की है।
सीबीआई के प्रवक्ता ने एएनआई से हुई बातचीत में कहा है,
CBI की जाँच में सामने आया है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने रोल्स रॉयस को 42 अतिरिक्त विमान बनाने के लाइसेंस दिया था। इन 42 विमानों के निर्माण के लिए रोल्स रॉयस को 308.247 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा लाइसेंस शुल्क के लिए 7.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त राशि की अनुमति दी गई थी। सीबीआई का कहना है कि रोल्स रॉयस तथा उसकी सहयोगी कंपनियों और उसके अधिकारियों ने विमान बनाने के लिए लाइसेंस के बदले एजेंटों (दलालों) को भारी रिश्वत और कमीशन दिया था।
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, 3 सितंबर, 2003 को आयोजित एक बैठक में रक्षा मंत्रालय की सुरक्षा कैबिनेट (CCS) ने 66 हॉक 115 विमानों की खरीद को मंजूरी दी थी। इस मंजूरी के बाद मार्च 2004 में भारत और ब्रिटेन की सरकारों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए थे। इसके बाद, 26 मार्च 2004 को रक्षा मंत्रालय और बीएई सिस्टम्स/रोल्स रॉयस के बीच 24 हॉक विमानों की सीधी खरीदी तथा 42 विमानों के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा निर्माण के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर हुए।
रिपोर्ट के अनुसार, इस पूरे कॉन्ट्रेक्ट में यह साफ तौर पर कहा गया था कि रोल्स रॉयस इस बात की पुष्टि करता है कि हॉक विमानों की खरीदी के लिए किसी भी तरीके से किसी एजेंट (बिचौलिए) की सहायता नहीं ली है। यही नहीं, कॉन्ट्रैक्ट में इस बात का भी जिक्र था कि कंपनी ने भारत सरकार से किसी प्रकार की सिफारिश भी नहीं की है।
हालाँकि इसके बाद मीडिया रिपोर्ट्स में कई तरह की बातें सामने आईं थीं। इसके बाद ब्रिटेन के गंभीर धोखाधड़ी कार्यालय (SFO) ने 2012 में मामले की जाँच शुरू की। जाँच में सामने आया कि रोल्स रॉयस ने लाइसेंस शुल्क को 4 मिलियन ब्रिटिश पाउंड से बढ़ाकर 7.5 मिलियन ब्रिटश पाउंड करने के लिए भारतीय एजंटों (बिचौलियों) को 1 मिलियन ब्रिटिश पाउंड की भारी भरकम रिश्वत दी थी।