पहले BRI के नाम पर दोस्ती, फिर देशों को पाई-पाई का मोहताज बना देता है चीन: कर्ज का जाल बिछा शिकार कर रहा ड्रैगन

विकास के नाम पर चीन कर रहा देशों पर कब्जा

अन्य देशों पर कब्जा जमाने के लिए चीन की विस्तारवादी नीति पूरे विश्व में जानी जाती है। हालाँकि कर्ज में दबाकर दूसरे देशों पर दबदबा बनाने वाली नीयत उनकी पिछले कुछ समय में ही सामने आई है। हाल की ही खबर है कि चीन के कर्ज तले श्रीलंका इतना दब गया है कि उस कर्ज को चुकाने में देश का खजाना खाली होने वाला है और हो सकता है कि पूरा देश जल्द ही दिवालिया घोषित हो जाए।

यहाँ मालूम हो कि केवल श्रीलंका अकेला देश नहीं है जो चीन से लिए कर्ज को चुकाने के चक्कर में बर्बाद हो रहा है। ऐसे तमाम देश हैं जिन्हें चीन ने उधारी के जाल में फांसा और अब वो देश इससे निकलने की जुगत में जुटे हैं। हालत ये है कि चीन तो पिछले कुछ समय में विश्व के सबसे बड़े कर्जदाता के तौर पर उभरा है और वहीं युगांडा जैसे छोटे देश उसका कर्ज न चुकाने पर उनका एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा खो चुके हैं।

बता दें कि ये चीन अपने ऋण जाल में देशों को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के जरिए शिकार बना रहा है। इसी स्कीम के चलते उसने निम्न और मध्यम आय वाले (कमजोर) देशों को 385 बिलियन डॉलर से अधिक का कर्जा दे देकर उन्हें कर्जदार बना दिया है। 2020 में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि चाइना 5.6 ट्रिलियन डॉलर का लोन विभिन्न देशों को विकास के नाम पर बाँट चुका है। इसके साथ ही विश्व में जितने भी द्विपक्षीय संबंधों के तहत लोन बांटे दिए हैं, उसका 65 फीसदी हिस्सा अकेले सिर्फ चीन ने बांटे हैं। चीन ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर को देखें तो पता चलता है कि साल 2013 से 2019  में चीन कंपनियों ने 34 देशों के साथ 61.6 बिलियन डॉलर के रेल निर्माण कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए थे और अब तक सबसे ज्यादा जहाँ चीन ने पैसा लगाया है वो पाकिस्तान और अफ्रीकी देश हैं।

चाइना ने 2015 से 2021 के बीच में पाकिस्तान में 64.97 अरब डॉलर का निवेश किया है। पाकिस्तान के बाद दूसरे नंबर पर जहाँ चीन ने अपना पैसा लगाया है वो इंडोनेशिया है। यहाँ चीन के 55.07 अरब डॉलर लगाए हुए हैं। इसी तरह वियतनाम में चीन ने 28.91 अरब डॉलर, लाओस में 28.81 अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है। इतना ही नहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि अपनी इस कर्ज नीति के चलते उसने 58 देशों को अपने जाँच में फाँस लिया है। साल 2020 में मालदीव सरकार ने इस संबंध में बयान दिया था कि वो चीन के कर्ज में इतनी बुरी तरह फँसे हैं कि उन्हें आय का 53 फीसद कर्ज देने में खर्च करना पड़ रहा है। पुरानी रिपोर्ट के अनुसार, मालदीव पर चीन 3.1 अरब डॉलर का खर्चा था जबकि वहाँ की अर्थव्यस्था ही कुल 5 अरब डॉलर की है। इसी तरह चीन के निशाने पर अधितकर अफ्रीकी देश भी हैं जिसकी वजह वहाँ पसरी गरीबी है।

कुछ रिपोर्ट्स में चीन की इस कर्ज नीति पर पर बताया गया है कि चीन जो कर्ज देता है उसे वो वैश्विक कल्याण के नाम पर दिया गया कर्ज कहता है और जताता है कि उसके लोन बाँटने का मकसद विश्व में सार्वजनिक कल्याण है। उसके मुताबिक वो वैश्विक समुदाय का जिम्मेदार देश होने के नाते ऐसा करता है। रिपोर्टस में साफ तौर पर कहा गया था कि चीन की इस कर्ज नीति में जो देश फंसता है वो बर्बाद होना शुरू हो जाता है। चीन अप्रत्यक्ष रूप से उस देश की राजनीति में घुसता है और फिर वहाँ की संप्रभुता पर उसका दबदबा होता है।

मौजूदा जानकारी बताती है चीन द्वारा दिया गया लोन 60 फीसद कमर्शियल होता है और इसमें किसी तरह से कोई छूट नहीं होती। इसके अलावा ये कर्जा देने के पीछे उसकी काफी कठोर शर्तें होती हैं, जिन्हें गोपनीय रखना भी शर्त में ही आता है। कोई नहीं बता सकता है कि चीन किस ब्याज दर पर उधार देने का काम करता है। धीरे-धीरे कमजोर देशों पर कर्जा बढ़ता जाता है और हालात मालदीव, श्रीलंका या पाकिस्तान जैसे हो जाता है। कर्जा देने से पहले चीन ये बात पक्की करता है कि जो लोन वो दे रहा है उससे उस देश पर उसका नियंत्रण स्थापित हो और विकास भी उसका अपना हो। यहाँ ये जानना भी हैरान करने वाला है कि एडडाटा रिसर्च लैब की रिपोर्ट बताती है कि, चीन ने पिछले 18 साल में 165 देशों में 843 अरब डालर की 13,427 परियोजनाओं में इन्वेस्ट किया है। जिसमें अधिकांश पैसा चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट BRI से जुड़ा है