‘हम मरें या जिएँ… चीन को कोई परवाह नहीं’ – चायनीज कब्जे वाले देश मंचूरिया की आजादी के दीवाने की कहानी

मंचूरिया में शेनयांग इम्पीरियल पैलेस (साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुए खुनी संघर्ष के बाद, इंटरनेट पर चीन का वास्तविक नक्शा सामने आया है। नक्शे में दिखाया गया कि चीन ने उन क्षेत्रों और नस्लों पर भी जबरदस्ती कब्जा कर लिया है जो असल में चाइनीज नहीं हैं, लेकिन चीन उन्हें एक बेतुकी ‘वन चाइना पॉलिसी‘ के तहत अपना बनाने पर तुला है।

हम में से कई लोग तिब्बत, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और कुछ हद तक, पूर्वी तुर्केस्तान के चीनी कब्जे के बारे में जानते हैं। हालाँकि, हम कभी भी चीन के उत्तर-पूर्वी हिस्से, मंचूरिया के बारे में नहीं सुनते हैं। ज्यादातर हम इस शब्द के बारे में चाइनीज रेस्टोरेंट के मेनू में गोभी/चिकन मंचूरियन के रूप में जानते हैं।

मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि मंचूरिया कभी एक स्वतंत्र राष्ट्र था और इसकी अपनी समृद्धशाली भाषा और लिपि थी। उनकी अपनी एक अलग संस्कृति भी थी। खास बात यह कि इनकी संस्कृति चीनियों की विस्तारवादी नीति के आस-पास भी नहीं थी। मंचूरिया के बारे में और अधिक जानने की कोशिश करते हुए, मुझे एक निर्वासित मंचूरियन स्वतंत्रता कार्यकर्ता, बर्नहार्ट सिलेर्गी से मिलाया गया, जो फिलहाल म्यूनिच (जर्मनी) में रहते हैं और आंदोलन के लिए लोगों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऑपइंडिया ने उनसे बातचीत की और मंचूरिया तथा उसके लोगों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर जानकारी ली। यहॉं उनसे की हुई कुछ बातों हम आपके सामने रखेंगे। (उनका पूरा इंटरव्यू लेख के अंत में है।)

ऑपइंडिया: जब हम चीन की विस्तारवादी नीतियों और इसके जबरदस्ती कब्जे में ली गई जगहों के बारे में बात करते हैं, तो हम शायद ही कभी मंचूरिया के बारे में सुनते हैं। इंटरनेट पर भी, मंचूरिया से संबंधित जानकारी सीमित मात्रा में उपलब्ध है। क्यों?

सिलेर्गी: देखिए, हमारे पास एक इतिहास है। हमारे पास एक संस्कृति थी। कभी हम चीन के उत्तर-पूर्वी हिस्से में रहने वाले शांतिप्रिय लोग थे। किंग डायनेस्टी के पतन के बीस साल बाद, मंचूरिया ने 1932 में जापान की मदद से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। हालाँकि, 1945 में, सोवियत ने हमारी भूमि पर आक्रमण किया, और एक साल बाद इसे चीन को दे दिया।

तभी से हम आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालाँकि, चीन ने हमारी आवाज को दबाने और हमारे अस्तित्व को खत्म करने के लिए सब कुछ किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से, मंचूरिया का उल्लेख भी अस्तित्व में नहीं रहा। इसलिए, किसी को भी इसके बारे में पता नहीं है। हम चीनी नहीं हैं। हमारी एक अलग संस्कृति, भाषा और पहचान है। हम वह वापस चाहते हैं।

ऑपइंडिया: आमतौर पर, जब हम क्षेत्रीय स्वतंत्रता या सेल्फ-गवर्नेंस की बात करते हैं, तो इसमें दो चीजों के बारे में पता चलता है: किसी के कब्जे से मुक्त होने का विचार, या उत्पीड़न के अत्याचार से दूर होना। मंचूरिया चीन से मुक्त क्यों होना चाहता है?

सिलेर्गी: जैसा कि मैंने पहले कहा, हम अपनी पहचान वापस पाना चाहते हैं। तिब्बत और पूर्वी तुर्केस्तान ने इन सभी दशकों में किसी न किसी तरह संघर्ष कर अपनी संस्कृति, भाषा और पहचान को संरक्षित किया है। हमारे पास ऐसा नहीं है। हमारे लोगों को चीनी बना दिया गया है, जबकि हम नहीं हैं। हमारे लिए यहाँ हमारी आत्म-पहचान का मुद्दा मुख्य है।

सांस्कृतिक पहचान के साथ, ऐतिहासिक रूप से, चीन ने हमारे विकास को अनदेखा किया है। आप इन बड़े शहरों और उज्ज्वल रोशनी को देखते हैं, लेकिन इनमें कोई भी मंचूरिया से नहीं हैं… हमारी जमीन पर उद्योग स्थापित किए गए और हमारे लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया गया था। उन्होंने हमारे यहाँ का तेल लिया, हमारे संसाधनों का शोषण किया और हमें कुछ नहीं दिया।

साफ शब्दों में, हम जियें या मरें, चीन इस बात की परवाह नहीं करता है। वे सभी हमारे संसाधन को चाहते हैं। चीन की पहचान सिर्फ मुर्ख बनाने के लिए एक फरेब है। चीन एक राष्ट्र के रूप में, नकली राष्ट्र है। इसके शाही इतिहास को देखें तो यह क्षेत्रों को हड़पता है और वहाँ के लोगों का शोषण करता है। हमें चीन का विरोध करने की जरूरत है।

ऑपइंडिया: हम वापस से मंचूरिया की स्वतंत्रता और आपकी सक्रियता पर आते हैं, आप कितने संगठित हैं? आप लोग मिलते कैसे हैं? और आप लोग प्रदर्शनों का आयोजन कैसे करते हैं… जैसे की तिब्बतियों में सरकार का निर्वासन है…

सिलेर्गी: अभी तक, हम उतनी संख्या में नहीं हैं। स्वतंत्रता की यह पूरी धारणा और मंचूरियन स्वतंत्रता का संघर्ष अपेक्षाकृत नया है। हम एक बच्चे की तरह अभी एक-एक कदम उठा रहे हैं, हम लोगों को बता रहे हैं कि अभी हम जिन्दा हैं और हमें एक साथ होने की जरूरत है। वर्तमान में, हमारा उद्देश्य ऑनलाइन माध्यम से मंचूरिया के लिए अभियान चलना और इस कार्य को आगे बढ़ाने वाले लोगों का समर्थन जुटाना है।

तिब्बती, पूर्वी तुर्किस्तान, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग के लोग हमारे सहयोगी हैं। वे हमारा दर्द जानते हैं। वे हमारे संघर्ष को महसूस करते हैं। अभी के लिए, हम चाहते हैं कि दुनिया यह जाने कि ‘एक चीन’ नाम की कोई चीज नहीं है, यह एक अवैध रूप से कब्जा किया गया क्षेत्र है।

ऑपइंडिया: इस समय जो चल रहा है, इस संबंध में आप चीनी विस्तारवादी नीतियों को कैसे देखते हैं। जब दुनिया गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच टकराव पर नजर बनाए हुए है, चीन ने 33 हेक्टेयर नेपाली जनीम पर कब्जा कर लिया।

सिलेर्गी: यह कोई नई बात नहीं है। चीन साम्राज्यवाद के दिनों से ही दूसरे के क्षेत्रों को हथियाने की इस नीति पर चल रहा है। अब उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद भी उसकी यह आदत नहीं गई। उन्हें लगता है कि यह अधिकार जताने का तरीका है। चीन ने यूरोप और यूएसए के साथ आर्थिक अतिक्रमण करने की कोशिश की क्यूँकि वे उनकी जमीन नहीं हड़प सकते थे।

लेकिन इस बार रणनीति अलग थी। वे चाहते थे कि वे उन पर निर्भर रहें। वास्तव में ऐसा हुआ लेकिन अब अमेरिका दूर होने की कोशिश कर रहा है। हो सकता है यूरोपीय संघ अपने कारण की वजह चीन के खिलाफ नहीं जाना चाहता है, लेकिन आप देख सकते हैं कि अब राष्ट्र अपने व्यवसायों को चीन से बाहर स्थानांतरित कर रहे हैं। यह वियतनाम, भारत और अन्य देशों की तरफ जा रहा है।

सभी राष्ट्रों ने महसूस किया है कि चीन बहुत ही खतरनाक और तानाशाही है। चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए नए अंतरराष्ट्रीय समूह बनाए जा रहे हैं। और इसकी आवश्यकता भी है, अन्यथा वे अपना विस्तार करने के लिए कुछ भी करेंगे और उन चीजों पर भी अपना दावा करेंगे, जो उनका नहीं है।

ऑपइंडिया: आप शी जिनपिंग के नेतृत्व को कैसे देखते हैं…

सिलेर्गी: ओह! वह एक तानाशाह है, जिसने कोई भी युद्ध नहीं देखा है। इसलिए, वह नहीं जानता कि युद्ध की कीमत क्या है। वह सिर्फ किसी बड़े नेता के रूप में नजर आने की कोशिश कर रहा है, मगर कोई भी उसे पसंद नहीं करता है। चीन कम्युनिस्ट पार्टी के अपने मुद्दे हैं। शी जिनपिंग चीन में नेताओं की दूसरी पीढ़ी से आते हैं, जो संघर्ष और जमीनी हकीकत नहीं जानते हैं।

यही कारण है कि वह लोगों को सिर्फ धमकाने का काम कर रहा है और नेपाल में भी जमीन हथियाने की उसे कोई परवाह नहीं है। मेरा कहने का मतलब है, नेपाल में कुछ हेक्टेयर जमीन लेने का क्या फायदा है? फिर भी, वह ऐसा करता है। तो यह उसकी एक विफलता है।

ऑपइंडिया: अपने मंचूरियन लोगों के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे।

सिलेर्गी: हम सभी को एकजुट होने की जरुरत है। हमें इकट्ठा होकर एक संयुक्त चेहरे को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। आइए हम ट्विटर और फेसबुक के जरिए @ManchuUnion हैंडल का साथ देते हैं। आप ट्विटर पर @silergi के जरिए मुझसे जुड़ सकते हैं। यह शुरुआत है। आइए हम एक साथ खड़े होते हैं और इसके लिए काम करें। आइए हम दुनिया को हमारी सामूहिक दुर्दशा से अवगत कराते हैं। ये अभी छोटे कदम हैं, लेकिन हमें एक शुरुआत करने की जरूरत है।

ऑपइंडिया और सिलेर्गी के पूरे इंटरव्यू को यहाँ देखें :

अजीत भारती: पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी