ईरान ने अपने ही पूर्व उप रक्षा मंत्री को ब्रिटेन का जासूस बता कर फाँसी पर लटकाया, भड़के ऋषि सुनक ने कहा- ये बर्बर सरकार की कायराना हरकत

ईरान की राजधानी तेहरान और पूर्व रक्षा उप-मंत्री अली रजा अकबरी (साभार: AFP)

ईरान )Iran) ने जासूसी के आरोप में अपने पूर्व उप रक्षामंत्री अली रजा अकबरी (Ali Reza Akbari) को फाँसी दे दी है। अकबरी के पास ईरान के साथ-साथ ब्रिटेन की भी नागरिकता थी। जब अकबरी को फाँसी की सजा सुनाई गई थी तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका काफी विरोध हुआ था और देश भर में प्रदर्शन हुए थे।

ईरान की न्यायपालिका से जुड़ी मीजान न्यूज एजेंसी ने शनिवार (14 जनवरी 2023) को अकबरी को फाँसी देने की जानकारी दी। हालाँकि, एजेंसी ने यह नहीं बताया कि फाँसी कब दी गई है, लेकिन माना जाता है कि कुछ दिन पहले ही इसे अंजाम दे दिया गया था।

मिजान न्यूज एजेंसी के अनुसार, अकबरी को ‘भ्रष्टाचार और देश की आंतरिक एवं बाहरी सुरक्षा को नुकसान पहुँचाने’ के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में ब्रिटिश जासूसी सेवा की कार्रवाइयों ने दोषी के मूल्य, उसकी महत्व और उस पर दुश्मन के भरोसे का प्रदर्शन किया है।

गुरुवार को सरकारी मीडिया ने खबर दी थी कि 61 वर्षीय अकबरी देश के रक्षा प्रतिष्ठान में उच्च पदों पर रहे थे। वह ईरान के उप रक्षामंत्री रह चुके थे। इसके साथ ही वे ईरानी नौसेना के कमांडर के सलाहकार, रक्षा मंत्रालय के अनुसंधान केंद्र में एक विभाग के प्रमुख और सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिवालय में शीर्ष पद पर तैनात थे।

ब्रिटिश नागरिक को फाँसी देने पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ने अकबरी के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की है। प्रधानमंत्री सुनक ने ट्विटर पर कहा, “ईरान में ब्रिटिश-ईरानी नागरिक अली रजा अकबरी को फाँसी दिए जाने से मैं स्तब्ध हूँ। यह एक क्रूर और कायरतापूर्ण कृत्य है, जो एक बर्बर शासन द्वारा अंजाम दिया गया। इस शासन में अपने ही लोगों के मानवाधिकारों का कोई सम्मान नहीं है।”

ब्रिटेन के विदेश विभाग के उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल ने शुक्रवार (13 जनवरी 2023) को अकबरी की फाँसी की सजा सुनाने की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, “अली रजा अकबरी के खिलाफ आरोप और फाँसी की सजा राजनीति से प्रेरित है। हम इन खबरों से बहुत परेशान हैं कि अकबरी को नशीला पदार्थ दिया गया, हिरासत में प्रताड़ित किया गया और हजारों घंटों तक पूछताछ के बाद झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया गया।”

पटेल से पहले ब्रिटेन के विदेश विभाग सचिव जेम्स क्लेवरली ने ईरान से अकबरी की फाँसी रोकने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था, ईरानी शासन को इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि हम अली रजा अकबरी के मामले पर करीब से नजर बनाए हुए हैं।”

दरअसल, ईरानी मीडिया ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें अकबरी ब्रिटेन के साथ अपने संपर्कों के बारे में बताते दिखाई दे रहे थे। इसमें नवंबर 2020 में मारे गए ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह के बारे में अंग्रेजों द्वारा पूछताछ की बात कहते हुए सुना गया।

हालाँकि, इस वीडियो के आधार पर ईरान ने अकबरी को मोहसीन फखरीजादेह की हत्या के लिए दोषी माना, लेकिन वीडियो में वे कहीं भी ये कहते हुए नहीं दिखे कि इस हत्या में उनकी कोई भूमिका थी। उन्होंने यही कहा था कि वैज्ञानिक के संबंध में ब्रिटेन ने उनसे पूछताछ की थी। इस हत्या के लिए ईरान ने अपने कट्टर दुश्मन इजरायल पर आरोप लगाया था।

कहा जा रहा है कि ईरान ने अकबरी पर बिना किसी सबूत के ब्रिटेन की एमआई-6 ख़ुफ़िया एजेंसी का जासूस होने का आरोप लगाया था। यह भी कहा जा रहा है कि ईरान ने अकबरी का जो वीडियो प्रसारित किया था, वह मॉर्फ्ड था। इसे ही अकबरी की स्वीकृति के रूप में बताया गया था। इसके आधार पर उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई थी। दिसंबर के शुरुआत में ईरान ने इजरायल के साथ मिलकर काम करने के आरोप में 4 लोगों को फाँसी दी थी।

ईरान में जासूसी और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अपराधों के अभियुक्तों पर बेहद कठोर कार्रवाई की जाती है। ऐसे मामलों में आमतौर पर बंद दरवाजों के पीछे मुकदमा चलाया जाता है। वहाँ अभियुक्त अपने लिए वकीलों का चयन भी नहीं करते हैं और उन्हें अपने खिलाफ सबूत देखने की अनुमति भी नहीं है। सजा भी फाँसी दी जाती है।

साल 2019 के बाद से उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया था। इसके बाद उनकी गिरफ्तारी की आशंका जताई जाने लगी। वह ईरान के एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी अली शामखानी के भी करीबी थे। प्रमुख विश्लेषकों का मानना था कि अकबरी की मौत की सजा देश में जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच देश के सुरक्षा तंत्र के भीतर सत्ता संघर्ष से जुड़ी थी।

अली रजा अकबरी एक निजी थिंक टैंक चलाते थे। उन्होंने ईरान और इराक के बीच 8 सालों तक चले विनाशकारी युद्ध को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अकबरी संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों के साथ मिलकर 1988 में ईरान-इराक के बीच संघर्ष विराम के क्रियान्वयन का नेतृत्व किया था।

बता दें कि ईरान दुनिया में सबसे अधिक फाँसी की सजा देने वाले देशों में एक है। महसा अमिनी की हत्या की बाद के हुए विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए अब तक 18 लोगों को फाँसी दी जा चुकी है। ईरान की न्यायपालिका ने इतने लोगों को फाँसी देने की पुष्टि की है, जबकि पुलिस फायरिंग में भी दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया