गाजा पर सऊदी अरब ने फोड़ दिया ‘उम्माह’ का गुब्बारा तो नाचने-गाने वाले फेस्टिवल से आहत हो गए इस्लाम के ठेकेदार

सऊदी अरब में म्यूजिक फेस्टिवल (साभार: isitsaudi.com)

इस्लामी आतंकी संगठन हमास (HAMAS) के 7 अक्टूबर 2023 इजरायल पर चौतरफा हमला करके 1400 लोगों की हत्या कर दी थी और लगभग 250 लोगों को बंधक बना लिया था। ऐसी कई तस्वीरें सामने आईं, जिनमें साफ तौर पर दिखा कि हमास के आतंकियों में मानवीय संवेदना नाम की कोई चीज नहीं है। इसके बाद अपने लोगों को छुड़ाने और आतंकियों का खात्मा करने के लिए इजरायल ने गाजा पट्टी पर कार्रवाई शुरू कर दी।

इजरायल ने आतंकियों पर जैसे ही कार्रवाई शुरू की, सारे मुस्लिम मुल्क उम्माह के नाम पर खलबलाने लगे। उन्होंने इजरायल पर प्रतिबंध लगाने को लेकर एक बैठक आयोजित की। हालाँकि, इस बैठक में इजरायल की आलोचना की गई, लेकिन संंबंध तोड़ने और बैन लगाने का सऊदी अरब सहित 7 मुस्लिम देशों ने विरोध किया। ये वही मुस्लिम देश हैं, जो फिलिस्तीन में मानवीय राहत कार्य पहुँचा रहे हैं। इतना ही नहीं, एक तरफ इजरायल इस्लामी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई तो कर रहा है, लेकिन इसके साथ ही मानवीय राहत कार्य भी पहुँचा रहा है।

दूसरी तरफ सऊदी अरब में स्पोर्ट्स एंड म्यूजिक फेस्टिवल को लेकर कट्टरपंथी सऊदी अरब सहित इन सात देशों पर हमलावर हैं। उनका कहना है कि एक तरफ फिलिस्तीन में मुस्लिम मारे जा रहे हैं और सऊदी अरब रंगारंग कार्यों में डूबा हुआ है। दरअसल, सऊदी अरब में यह कार्यक्रम साल 2019 से आयोजित किया जा रहा है। MDLBEAST साउंडस्टॉर्म ने बड़े नाम वाले अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में अरब कलाकार और संगीतकार मेजबानी कर रहे हैं। इनमें डेविड गुएटा, मार्टिन गैरिक्स, स्टीव आओकी, ब्रूनो मार्स, डीजे खालिद, अम्र डायब, नैन्सी अजराम, डीजे अहमद आलममरी (बालू) जैसे कलाकार शामिल हो रहे हैं।

MDLBEAST के सीईओ रमज़ान अल्हरतानी ने महोत्सव को एक वैश्विक कलात्मक मंच कहा है, जो मध्य पूर्व में संगीत, कला और संस्कृति को फिर से परिभाषित करता है। उन्होंने कहा कि आयोजकों का मुख्य लक्ष्य संगीत को सुनाना और स्थानीय एवं क्षेत्रीय प्रतिभाओं पर मंच प्रदान करना है। साल 2022 के फेस्टिवल हेडलाइनर डीजे खालिद का कहना है कि एमडीएलबीईएएसटी रियाद के विविध संगीत परिदृश्य का जश्न मनाते हुए विभिन्न संस्कृतियों के बीच सहयोग का माहौल बनाना है।

बताते चलें कि सऊदी अरब एक इस्लामी मुल्क है। आमतौर पर इस्लामी देशों में गीत-संगीत और नृत्य पर पाबंदी होती है, लेकिन सऊदी अरब इन रूढ़िवादी से निकलने की कोशिश में लगा हुआ है। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इसको लेकर अपने मुल्क में कई सुधार भी किए हैं। उन्होंने रूढ़िवादी इस्लाम से मुल्क को निकालने के लिए विजन 2023 भी सामने रखा है। चूँकि, इस्लाम के प्रमुख मस्जिद काबा का सऊदी अरब कस्टोडियन है, इसलिए भी कट्टरपंथी मुल्क सऊदी अरब पर हमलावर है।

सऊदी अरब में फेस्टिवल को एन्जॉय करते लोग (साभार: https://www.visitsaudi.com)

दरअसल, इजरायल के खिलाफ आयोजित बैठक में इस्लामिक सहयोग संगठन के 57 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। इस दौरान प्रस्ताव पेश किया गया कि वो लोग इजरायल को मिल रही सैन्य-आर्थिक मदद रोककर अलग-थलग करेंगे। कई देशों ने इस पर हामी भरी, लेकिन जब बात इस्लामिक देशों के नेता माने जाने वाले सऊदी अरब की बारी आई तो उसने इस प्रस्ताव से किनारा ही कर लिया। यानी वह इजरायल से संबंध न तोड़ने के समर्थन में आ खड़ा हुआ।

जब हर तरफ से छिछालेदर हुई तो खुद को इस्लाम का संरक्षक कहने वाला सऊदी अरब इस्लामी देशों का साथ देने से मना कर दिया। दरअसल, हमास आतंकियों के खिलाफ इजरायल की कार्रवाई से दुनिया भर के कट्टरपंथी खफा हैं। वे चाहते हैं कि दुनिया भर के मुस्लिम मुल्क एकजुट होकर इजरायल का बहिष्कार करें। इस संबंध में 11 नवंबर 2023 रियाद में एक बड़े सम्मेलन का आयोजन भी हुआ, जहाँ इजरायल को अलग-थलग लाने का प्रस्ताव पेश किया गया।

सऊदी अरब के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात और अन्य 7 मुस्लिम देश भी इस प्रस्ताव के विरोध में खड़े हुए। नतीजा ये निकला कि इजरायल के खिलाफ बुलाई बैठक में इजरायल के विरुद्ध ही प्रस्ताव पास नहीं हो सका। प्रस्ताव का विरोध करने वालों में सऊदी अरब और UAE के अलावा जॉर्डन, इजिप्ट, बहरीन, सुडान, मोरोक्को, मॉरिशानिया और द्जिबूती जैसे देश शामिल थे।

ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन के तत्वाधान में इस्लामी मुल्क की बैठक में हमले की आलोचना तो की गई, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। इसको लेकर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की, बहरीन आदि देशों का आलोचना भी हो रही है। इस बीच सऊदी अरब में स्पोर्ट्स एंड म्यूजिक फेस्टिवल का रंगारंग आयोजन किया जा रहा है। कट्टरपंथियों का कहना है कि एक तरफ फिलिस्तीन में लोग मारे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सऊदी अरब रंगारंग कार्यक्रम में डूबा हुआ है।

सम्मेलन की शुरुआत में सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने युद्धविराम की बात की। वहीं ईरानी राष्ट्रपति ने सम्मेलन के दौरान इजरायली सेना को आतंकी संगठन घोषित करने की माँग की। हालाँकि, सऊदी अरब के इससे पीछे हटने के पीछे कहा जा रहा है कि प्रिंस सलमान क्षेत्रीय झगड़ों में पड़कर देश के संसाधनों को बर्बाद नहीं होते देखना चाहते। उनका मकसद विजन 2030 में है। यही वजह है कि वो अपनी विदेशी निवेश पर ज्यादा केंद्रित है।

इसके पीछे इजरायल के साथ इन देशों का अब्राहम समझौता भी है। मूल अब्राहम समझौते पर संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 15 सितंबर 2020 को हस्ताक्षर किए थे। इज़राइल में संयुक्त अरब अमीरात के पहले राजदूत मोहम्मद अल खाजा 1 मार्च 2021 को इजरायल पहुँचे थे। समझौते का नाम पैगंबर इब्राहिम के नाम पर रखा गया है, जो यहूदी और इस्लाम दोनों में एक पैगम्बर के हैं।

अब्राहम समझौते के अनुसार, यूएई और बहरीन इजरायल में अपने-अपने दूतावास स्थापित करेंगे और पर्यटन, व्यापार और सुरक्षा सहित कई क्षेत्रों में उसके साथ मिलकर काम करेंगे। इसमें धार्मिक महत्व को भी रेखांकित किया गया था। यह मुस्लिमों को इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों में से एक यरूशलेम में अल-अक्सा मस्जिद की अनुमति देगा। इस समझौते का एक उद्देश्य इस्लामी देशों में शिया मुल्क ईरान के बढ़ते प्रभाव को कम करना भी था। यही कारण है कि इजरायल के खिलाफ किसी तरह के प्रतिबंध से इन देशों ने हाथ खींच लिए।

सऊदी अरब और अरब लीग के इन देशों के निर्णय के बाद कट्टरपंथियों ने इन देशों पर हमले करने शुरू कर दिए हैं। मिडिल ईस्ट मिरर में डॉक्टर आमीरा अबू अल फतह ने एक लेख लिखकर सऊदी अरब की खूब आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इजरायल फिलिस्तीन में स्कूलों-अस्पतालों पर हमले कर रहा है और अरब मुल्क खाली भाषण दे रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सम्मेलन सऊदी अरबिया ने सिर्फ अपनी ओर ध्यान खींचने के लिए आयोजित किया था।

आमिरा ने कहा कि सऊदी अरब और अरब लीग ने अन्य देश फिलिस्तीन के बारे में चिंता करने के बजाय संगीत और खेल समारोहों में व्यस्त थे। रियाद का आयोजन महत्वहीन था। उन्होंने इस्लामी सहयोग संगठन को बिना दांत वाला शेर बताया और कहा कि ये देश यहूदी मुल्क से डरते हैं। उन्होंने इजरायल की कार्रवाई को बर्बर बताया।

सुधीर गहलोत: इतिहास प्रेमी