श्रीलंका में चीन को छात्रों की चुनौती: जाफना विश्वविद्यालय छात्र संघ ने कहा – ‘नरसंहार झेल चुके तमिलों का दर्द समझो चीनी राजदूत’

जाफना विश्वविद्यालय स्थित वार मेमोरियल (बाएँ) और चीनी राष्ट्रपति (फोटो साभार: इंडियन एक्सप्रेस/ इकॉनोमी टाइम्स)

जाफना विश्वविद्यालय छात्र संघ ने युद्ध अपराधों पर श्रीलंका सरकार का समर्थन करने के लिए चीनी राजदूत क्यूई झेंगहोंग की आलोचना की है। दरअसल, इसी महीने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र में तमिलों के खिलाफ युद्ध अपराध और नरसंहार को लेकर श्रीलंका की भूमिका पर चर्चा होना है।

छात्र संघ ने चीनी राजदूत से अपील की है कि वह तमिलों की माँगों और उनकी दुर्दशा को समझे और श्रीलंकाई सरकारों का समर्थन करना बंद करे। हालाँकि, छात्र संघ के नेताओं का यह भी कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि चीन अपना रुख बदलेगा।

छात्र संघ का कहना है कि चीन को पता है कि तमिलों के खिलाफ श्रीलंका के युद्ध के अंतिम छह महीनों में 70,000 से अधिक तमिलों की मौत हुई है। हजारों महिलाओं का श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा बलात्कार किया गया। छात्र संघ ने राजदूत से अपने ट्वीट को डिलीट करने और संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका के खिलाफ लाए जा रहे प्रस्ताव का समर्थन करने का आग्रह किया।

छात्र संघ ने ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के आधार पर कहा कि आज 90,000 से अधिक तमिल विधवाएँ अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं। इसके अलावा, तमिल क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर आज भी श्रीलंकाई सेना का कब्जा है और वहाँ सिंहलियों को बसाया जा रहा है।

दरअसल, हाल ही में चीनी राजदूत ने एक बयान में कहा था कि चीन मानवाधिकार के मुद्दे पर उन कुछ देशों के विपरीत श्रीलंका का समर्थन करेगा, जिन्होंने अतीत में श्रीलंका पर शासन या आक्रमण किया था।

चीनी राजदूत ने चीन और श्रीलंका को ऐसे दो देश बताया, जो अभी भी बाहरी ताकतों के खतरों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने इस तरह के खतरों का विरोध करने के लिए चीन-श्रीलंका के बीच एक संयुक्त प्रयास का भी आह्वान किया। चीनी राजदूत का स्पष्ट इशारा पश्चिमी देशों और भारत की ओर था।

झेंगहोंग का इशारा ताइवान को अमेरिका सहयोग और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी युद्धपोत की डॉकिंग से था। दरअसल, अमेरिका चीन की ‘वन चाइना’ पॉलिसी को स्वीकार करने के बाद भी ताइवान को हर तरह से मदद करता है। वहीं, पिछले दिनों चीनी पोत युआन वांग 5 के हंबनटोटा आने पर भारत ने सुरक्षा चिंता व्यक्त की थी।

श्रीलंका में जारी आर्थिक संकट के पीछे चीनी का ऋण जाल है। श्रीलंका के लोग इस बात को भली-भाँति समझते हैं। वहीं, श्रीलंकाई तमिलों को आशंका है कि उनके देश में चीन के प्रभाव बढ़ने के बाद स्वायत्ता वाली उनकी माँगों को नकारा जा सकता है और चीन इसके लिए श्रीलंका की सरकार को प्रोत्साहित कर सकता है।

चीन का रुख श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहलियों का समर्थक और तमिलों को परेशान करने वाला है। श्रीलंका चीन के सहयोग से तमिलों की माँगों को पहले ही बलपूर्वक कुचल चुका है। ऐसे में मानवाधिकार पर UNHRC में पश्चिमी देशों द्वारा श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों के खिलाफ वह मतदान कर चुका है। ऐसे में तमिलों को चीनी प्रभाव से शंका बढ़ रही है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया