इमरान के तख्तापलट का प्लान: बेनजीर के बेटे बिलावल को PM बनाना चाहती है पाकिस्तानी सेना

पाकिस्तानी सेना की नई पसंद बताए जा रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल

पाकिस्तान की आतंकी नीति के कारण उसके संबंध न तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अच्छे हैं और न ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ। इस बीच नई खबर यह है कि उनकी गृह और आर्थिक नीति के कारण अब इमरान खान से पाकिस्तानी सेना भी नाखुश है। इमरान खान को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। संडे गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी सेना अब इमरान खान की जगह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख बिलावल भुट्टो जरदारी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की योजना पर काम कर रही है।

ऐसा देखा जा रहा है कि हर परिस्थिति में पाकिस्तान का साथ देने वाला चीन का भी इमरान खान पर से भरोसा हटाता जा रहा है। इमरान के इस्तीफे की माँग को लेकर कराची से इस्लामाबाद तक होने वाले ‘आजादी मार्च’ से भी यह साफ हो रहा है कि इमरान खान अब सभी तरफ से (मतलब जनता भी त्रस्त है, वो जिन्होंने उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुँचाया) अपना समर्थन खो रहे हैं।

बता दें कि शुक्रवार (नवंबर 1, 2019) को पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (JUI-F) के प्रमुख मौलाना फजलुर्रहमान के नेतृत्व में आजादी मार्च कराची से इस्लामाबाद पहुँची। दिलचस्प बात यह है कि रैली को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी संबोधित किया। इस मौके पर उन्होंने इमरान खान को “कठपुतली” कहा।

फजलुर्रहमान का आरोप है कि इमरान निर्वाचित नहीं बल्कि एक चयनित पीएम हैं। उन्होंने इमरान पर 2018 के आम चुनाव जीतने के लिए धांधली का आरोप लगाते हुए इस्तीफे की माँग की। उनका कहना है कि वह इस पद पर बने रहने के लायक नहीं है। बता दें कि भुट्टो के पिता आसिफ अली जरदारी को भी भ्रष्टाचार के आरोपों में इमरान खान द्वारा जेल में डाल दिया गया था। भुट्टो ने हाल ही में खान पर आरोप लगाया था कि वह जेल में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं कराकर उनके पिता की हत्या की कोशिश कर रहे हैं।

यह आजादी मार्च 2014 के इंकलाब मार्च जैसा ही है। जो उस समय की नवाज़ शरीफ़ सरकार के खिलाफ इमरान खान द्वारा ताहिर-उल-कादरी द्वारा प्रायोजित किया गया था। जानकारों का मानना है कि इस समय इमरान खान को कट्टरपंथियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल ने इस स्थिति पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा, “हाँ, यह एक खतरे की घंटी है। फजलुर्रहमान इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए आजादी मार्च का आयोजन कर अपना ताकत दिखाना चाहते हैं। इमरान खान ने नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ इन हथकंडों का इस्तेमाल किया था। खैबर पख्तूनख्वां की राजनीति में निहित मौलाना और इमरान खान के बीच का खून-खराबा भी लोग अच्छी तरह से जानते हैं। मौलाना अपनी व्यक्तिगत प्रतिशोध के अलावा पाकिस्तान में आर्थिक संकट की स्थिति को भी भुनाने में लगा हुआ है।”

संडे गार्जियन के एक अन्य सूत्र ने कहा कि इमरान खान न केवल अर्थव्यवस्था को सही तरीके से स्थापित करने में विफल रहे हैं, बल्कि वे अमेरिका के साथ-साथ अन्य पश्चिमी देशों के सामने भी पाकिस्तान के कश्मीर मुद्दे के नकली बयान को भी नहीं भुना पाए।

इसमें कहा गया है कि देश में इमरान के खिलाफ भारी आक्रोश है। वो पाकिस्तान के सबसे अलोकप्रिय नेताओं में से एक बन गए हैं और इसलिए पाकिस्तानी सेना, जिसने कभी बड़ी उम्मीदों के साथ उनका समर्थन किया था, अब वह निराश हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र की बैठक में उनके बयान की खूब किरकिरी हुई। वह वैश्विक समुदाय को कश्मीर पर अपने नैरेटिव के बारे में आश्वस्त नहीं कर सके। इसीलिए, वह उनसे छुटकारा पाना चाहती है और उनके स्थान पर बिलावल भुट्टो जरदारी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है।

बताया जा रहा है कि यह आजादी मार्च इमरान शासन के अंत की शुरुआत हो सकती है। पाकिस्तान सेना ने पहले ही अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण कर लिया है। बता दें कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा ने पिछले महीने इमरान खान के अमेरिका की यात्रा से वापसी के तुरंत बाद सभी शीर्ष उद्योगपतियों और व्यापारिक नेताओं की बैठक बुलाई थी, जिसमें प्रधानमंत्री अनुपस्थित थे। जानकारों के अनुसार, यह एक स्पष्ट संकेत था कि इमरान को पाकिस्तान में स्थापित जटिल शक्ति-समीकरण में से धीरे-धीरे दरकिनार किया जा रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया