रॉ अफसर की बेटी ने ‘कश्मीर’ पर लिखी किताब, लिबरलों को नहीं आई रास: अमेरिकी यूनिवर्सिटी ने भी साइबा वर्मा से पल्ला झाड़ा

डॉ साइबा वर्मा और उनकी किताब- द ऑक्युपाइड क्लिनिक: मिलिटेरिज्म एंड केयर इन कश्मीर (साभार- आउटलुक)

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के क्रिटिकल जेंडर स्टडीज प्रोग्राम ने डॉ. साईबा वर्मा से यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया है कि उन्होंने अपने शोध में एक गंभीर नैतिक और राजनीतिक उल्लंघन किया था। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर और एक पूर्व सीजीएस कार्यकारी समिति के सदस्य और फैकल्टी एफिलिएट साइबा वर्मा की किताब का नाम द ऑक्युपाइड क्लिनिक: मिलिटेरिज्म एंड केयर इन कश्मीर है।

कश्मीर पर डॉ साइबा वर्मा की किताब एक बड़े विवाद के केंद्र में है, यह सब तब सामने आया जब यह पता चला कि उनके पिता भारत की खुफिया एजेंसी, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक अधिकारी थे, जो 90 के दशक में घाटी में तैनात थे। यह बात जब से सामने आई है सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। जहाँ एक तरफ डॉ साइबा वर्मा के लिए कहा जा रहा है कि उन्होंने अमेरिका में खुद को लिबरल के रूप में स्थापित करने की तमाम कोशिश की लेकिन जैसे ही उनके पहचान जाहिर होती है कि उनके पिता रॉ से जुड़े थे वैसे ही लिबरल उनकी तमाम योग्यताओं को ख़ारिज करते हुए उन्हें अपने गैंग से बाहर कर देते हैं।

डॉ साइबा वर्मा पर पब्लिश एक रिपोर्ट साझा करते हुए फिल्मकार विवेक रंजन अग्निहोत्री ने टिप्पणी की कि यह एक बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति की तरफ इशारा है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “कश्मीर के एक रॉ अधिकारी की बेटी, एक लिबरल अमेरिकी विश्वविद्यालय में जेहादियों को खुश करके पश्चिमी सिपाही बनने की कोशिश करती है। अपने ही लोगों को धोखा देती है और भारत के दुश्मनों और जेहादियों के प्रति सहानुभूति रखती है। फिर भी जेहादी शिक्षाविदों द्वारा उन्हें ख़ारिज कर दिया जाता है।”

मीडिया रिपोर्ट में यह भी दावा किया जा रहा है कि डॉ साईबा वर्मा की पिछले साल सितंबर में उनकी पुस्तक द ऑक्युपाइड क्लिनिक: मिलिटेरिज्म एंड केयर इन कश्मीर के सामने आने के बाद से ही उनकी कड़ी आलोचना हुई थी। जब एक गुमनाम ट्वीट ने उनकी पहचान जाहिर कर दी थी। तब उन पर कश्मीरी लोगों को धोखा देकर उनसे जानकारी हासिल करने का भी आरोप लगा था। साथ ही इसे शोध की दृष्टि से अनैतिक करार देते हुए कई तरह की बातें सामने आई थी।

पुस्तक के परिचय में ही लेखिका डॉ साइबा लिखती हैं कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से तकनीकों को उधार लेकर उन्हें विस्तार देते हुए, भारतीय राज्य ने आपातकालीन नियम और कानून की दुनिया की सबसे स्थापित, परिष्कृत और व्यापक प्रणाली को लागू किया और बार-बार स्वतंत्रता-समर्थक माँगों को ‘साजिश’ और ‘राष्ट्र-विरोधी’ के रूप में अपराध की तरह प्रचारित किया। उनका कहना है कि ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ के रूप में भारतीय राज्य की वैश्विक छवि ने कश्मीर और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी सैन्य ज्यादतियों को छिपाने में मदद की है। इसे देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर धूमिल करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।

डॉ साइबा वर्मा ने एक ट्वीट में कहा, “मैंने जो शोध किया है, उस पर मेरे पिता का कोई सीधा असर नहीं था। इस संबंध को स्वीकार करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, हालांकि, अपने फील्डवर्क के दौरान मैंने इसे कश्मीरी विद्वानों और पत्रकारों के सामने प्रकट किया, जिनके मैं करीब थी। मेरे नैतिक आचरण और विद्वानों के तर्क उनके प्रति जवाबदेह हैं।”

“अपनी पुस्तक में, मैंने लिखा है: “जैसा कि स्टुअर्ट हॉल ने एक बार कहा था, कोई भी डिस्कोर्स तटस्थ नहीं है … मेरे सहित भारतीय मूल के किसी भी विद्वान के लिए, कश्मीर के साथ जुड़ने का कोई तटस्थ तरीका नहीं है।”

शोध के नाम पर ऐसी ही कई बातों से उनकी किताब भरी पड़ी है। उन्होंने अमेरिका में खुद को लिबरल जमात के बीच एक लिबरल के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने अपनी सफाई में ऐसी कई दलीलें दी कि वह जीवनभर मुस्लिम विरोधी जातिवादी मानसिकता के खिलाफ लड़ती रही हैं लेकिन जैसे ही उनकी पहचान जाहिर होती है उनके लिए मामला उल्टा पद जाता है और उनके शोध पर ही सवालिया निशान लग जाता है। उन पर कश्मीर में शोध करते हुए अपने पारिवारिक संबंधों को छिपाने का आरोप लगाया गया था। लेखिका के पिता रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के अधिकारी थे, जो 90 के दशक में घाटी में तैनात थे, ने उनके किताब और शोध को लेकर एक ट्विटर तूफान खड़ा कर दिया।

लिबरलों की इसी बदले की कार्रवाई की तरफ ध्यान दिलाते हुए प्रत्याशा रथ ने भी अपने ट्वीट में कहा, “ओह! यहाँ थोड़े में सभी चिंताओं और शब्दजाल को बनाए रखना मुश्किल है। भारतीय विद्वान जो पहले से ही कश्मीर पर अपने काम के लिए अलगाववादी वैश्विक दृष्टिकोण का प्रयोग करते हुए अपनी किताब लिखती हैं, फिर भी अन्य विद्वानों द्वारा सिर्फ इसलिए उन्हें रद्द कर दिया जाता है क्योंकि उनके पिता एक रॉ अधिकारी थे।”

अपने बचाव में लेखिका साईबा वर्मा ने कहा था, “एक गुमनाम ट्विटर अकाउंट भारत में मेरे पिता की पूर्व स्थिति के आधार पर मेरे शोध पर हमला कर रहा है। मेरे पिता ने सुरक्षा एजेंसी रॉ के लिए काम किया। जब मैं 10 साल की थी तब वह कश्मीर में थे। मेरा काम कश्मीर में अतीत और वर्तमान के सभी ‘आतंकवाद विरोधी’ को अस्वीकार करता है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया