केन्या की मदद 12 टन प्यार है, इससे भारत भिखमँगा नहीं बन गया… 9/11 के बाद अमेरिका को भी दी थी 14 गायें

केन्या की दरियादिली को सलाम कीजिए, उसका मजाक मत बनाइए (फाइल फोटो साभार: JETSET BUNNY)

जब से अफ़्रीकी देश केन्या ने कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से जूझते भारत को मदद भेजी है, तभी से कुछ लोग लगातार ये कहते हुए हंगामा मचा रहे हैं कि एक छोटे से देश से भारत को मदद की जरूरत पड़ गई। GDP के मामले में भारत से 30 गुना छोटे केन्या ने अगर मदद में कुछ भेजा है तो उसकी दरियादिली का स्वागत करने की बजाए लोग भारत को दोष दे रहे हैं। ज्ञात हो कि केन्या ने स्वेच्छा से ये मदद भेजी है, भारत ने उससे माँगी नहीं थी।

सोशल मीडिया पर जवाहर सरकार और नीरज भातेजा जैसे लोगों ने भारत की तुलना बांग्लादेश से करते हुए कहा कि केन्या से भारत को मदद कि जरूरत पड़ गई है, ये बड़े ही शर्म की बात है। सबसे पहले जानने वाली बात ये है कि केन्या ने भारत को असल में भेजा क्या है। असल में हिन्द महासागर के किनारे पूर्वी अफ्रीका में बसे इस देश ने भारत के लिए 12 टन खाद्य सामग्री भेजी है। इसमें चाय-कॉफी और मूँगफली शामिल हैं।

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ऐसे में कुछ लोगों द्वारा ये नैरेटिव बनाना कि ‘अब केन्या जैसे देश से भारत को मदद कि जरूरत पड़ गई’ का आशय न सिर्फ भारत को बदनाम करना है, बल्कि केन्या जैसे एक गरीब देश की दरियादिली को गाली देना भी है। आइए, एक कहानी से शुरू करते हैं। जब बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले सचिन तेंदुलकर के सबसे बड़े सुधीर कुमार गौतम हर साल उन्हें लीची देने जाते हैं, तो क्या हम ये मान लें कि सचिन जैसे करोड़पति पूर्व क्रिकेटर को एक साधारण व्यक्ति से मदद की जरूरत पड़ गई?

क्या 1100 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक सचिन तेंदुलकर के पास इतना रुपया नहीं है कि वो लीची खरीद सकें? लेकिन, वो अपने फैन द्वारा हर साल ले जाने वाले गिफ्ट को स्वीकार करते हैं, ये न सिर्फ उनका बड़प्पन है बल्कि सुधीर कुमार गौतम का उनके प्रति प्यार भी है। इसी तरह केन्या ने अपने दिल में भारत के लिए प्यार को दर्शाते हुए ये मदद भेजी है और भारत ने इसे स्वीकार करते हुए अपना बड़प्पन दिखाया है।

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केन्या की दरियादिली को समझने के लिए भी एक और कहानी सुनिए। केन्या में एक मसाई जनजातीय समुदाय है, जिनकी आबादी 20 लाख के आसपास है। ये तब की बात है, जब अमेरिका में ट्विन टॉवर्स पर हमला हुआ था। ये वो गरीब समुदाय है, जिसने गगनचुंबी इमारतों में रहना तो दूर, कइयों ने इसे देखा तक नहीं होगा। आज से 20 साल पहले तो स्थिति और भी खराब थी। केन्या के इस जनजातीय समूह के लिए अकिशिआ के पेड़ और जिराफ़ ही सबसे लंबी चीजें हुआ करती थीं।

अमेरिका में 9/11 के हमले में वहाँ के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को नुकसान पहुँचाया था, जिसमें करीब 3000 लोग मारे गए थे और इससे कई गुना अधिक घायल हुए थे। इस कहानी में एक किमेली नाइयोमह नाम के एक मसाई शख्स हैं, जो किसी तरह पढ़ाई के लिए अमेरिका तक जाने में कामयाब रहे थे। वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने पाया कि दूर न्यूयॉर्क में क्या हुआ था, इस बारे में वहाँ के लोगों को कुछ पता ही नहीं था।

किसी-किसी को खबरों से कुछ पता चल जरूर था, लेकिन तब भी वो इस घटना कि भयानकता से अनजान थे। रेडियो से जो भी जानकारी मिली, उन्होंने इकट्ठी कर ली। कुछ मसाई जनजातीय समूह के लोगों के घरों में कुछ ही दिनों पहले बिजली आई थी, तो उन्होंने टीवी पर इस घटना को देखा। उनके बीच आज भी मौखिक रूप से ही घटनाओं के बारे में जानने की आदत है, इसीलिए किमेली ने उन्हें अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए घटना के बारे में सब कुछ कह सुनाया।

धीरे-धीरे 9/11 और इसकी भयवाहता को लेकर एक कान से दूसरे कान ये खबर फैली और समुदाय के बीच एक उदासी सी छ गई, क्योंकि वो दूर देश में हुई इस घटना के बारे में जान कर स्तब्ध थे। बस वो इस बात से संतुष्ट थे कि उनके बीच का व्यक्ति किसी तरह बिना नुकसान के अमेरिका से निकल आया। वो कुछ करना चाहते थे, पीड़ितों के लिए। उन्होंने एक बैठक बुलाई। घास के एक मैदान में मसाई जनजाति की सभा लगी।

उस सभा में उन्होंने अपने जानवर भी लाए थे। मसाई जनजाति के लोग जानवरों को पवित्र मानते हैं और उनसे प्यार करते हैं। उसी सभा में उन्होंने घोषणा की कि अमेरिका को उनकी तरफ से 14 गायें दी जाएँगी। ‘मा’ शब्द का उद्घोष करते हुए मसाई जमा हुए और जानवरों को पूरे रीति-रिवाज के बाद अमेरिका को दान दिया गया। तब नैरोबी में अमेरिका के उप-उच्चायुक्त विलियम ब्रांकिक भी वहाँ मौजूद थे।

विलियम ब्रांकिक को वहाँ पहुँचने के लिए मसाई माराय गेम प्रिजर्व के लिए उड़ान भरनी पड़ी और फिर वहाँ से कच्चे-पक्के रास्तों से 2 घंटे ड्राइव भी करना पड़ा। वहाँ उन्हें भी समारोह का हिस्सा नया गया। मसाई बुजुर्गों ने एक रस्सी उनके हाथ में थमा दी, जो एक साँड से बँधी हुई थी। उन्होंने मसाई जनजाति को इस मदद के लिए धन्यवाद दिया। गायों को अमेरिका ले जाना कठिन था, इसीलिए उन्हें बेच कर उन्होंने अमेरिका में मसाई आभूषण ले जाने की घोषणा की।

क्या अमेरिका के पास गायों या कुछ रुपयों की कमी हो गई थी जो उसने अपने उप-उच्चायुक्त को इतनी दूर भेज कर इस समारोह का हिस्सा बनाया? इसके लिए हमें अमेरिका की तारीफ करनी चाहिए क्योंकि उसने जनजातीय समूह के प्यार को स्वीकार किया और उनके दान का मान रखा। इसके लिए हमें केन्या और उसके लोगों को धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने आपदा के बारे में जान कर जो हो सका और जो समझ आया, अपनी तरफ से उसे पूरे जी-जान से किया।

नाइयोमह इस पूरे प्रकरण में मसाई लोगों का अमेरिका से संपर्क कराने में काम आए थे। उन्होंने ही उच्चायुक्त के दफ्तर से संपर्क किया था। उनके लिए गायें जीवन का हिस्सा रही हैं, केंद्र में रही हैं, इसीलिए उन्होंने अपनी तरफ से अपनी सबसे कीमती उपहार अमेरिका को मदद के रूप में दिया। गायों को नाम दिया जाता है। उनकी पूजा की जाती है। उनसे बातें की जाती हैं। रीति-रिवाजों में हिस्सा बनाया जाता है।

ठीक इसी तरह, आज जब केन्या ने ये कहते हुए मदद भेजी है कि उनके चाय-कॉफी से कठिन समय में लगातार काम में लगे भारत के मेडिकल कर्मचारी और डॉक्टर जब केन्या की चाय-कॉफी पियेंगे, तो तरोताजा महसूस करेंगे और उन्हें कुछ आराम मिलेगा – तो ये उनके प्यार को सम्मान देने का वक़्त है। क्या आपको पता है कि केन्या की कॉफी दुनिया की 5 सबसे बेहतरीन कॉफी में से एक है? एसिडिटी और फ्लेवर के लिए ये दुनिया भर में विख्यात है।

इसीलिए, ये कहना कि केन्या ने प्यार से मदद भेज दी तो भारत भिखमँगा हो गया है, बिल्कुल ही गलत है। गिरोह विशेष को समझना चाहिए कि रुपए के आधार पर ही केवल ये नहीं तय किया जाता कि कौन किसकी मदद कर सकता है, कभी-कभी ये किसी के लिए दिल में मान-सम्मान की मात्रा के आधार पर तय होता है। आज हमें केन्या का उसके प्यार के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए, वरना साल में 3.42 लाख मीट्रिक टन कॉफी का उत्पादन होता है।

भारत के बारे में एक और बात जानने लायक है कि इसने दुनिया के देशों के समक्ष हाथ फैलाना बंद कर दिया है और पिछले दो दशकों से इसने विभिन्न आपदाओं के समय किसी देश से मुफ़्त में कुछ नहीं माँगा। उलटे भारत ने पिछले साल अमेरिका को भारी मात्रा में दवाओं की खेप भेजी थी। भारत ने केन्या को भी वैक्सीन दी थी। केन्या में भारत की वैक्सीन सप्लाई रुकने के बाद टीकाकरण ही बंद हो गया था।

गाँव में कोई आपदा आने पर लोग परस्पर सहयोग नहीं करते ये एक-दूसरे की सहायता नहीं करते हैं? क्या दुनिया के देशों के बीच परस्पर सहयोग की ये भावना गायब हो जानी चाहिए, गिरोह विशेष ऐसा चाहता है? गायों की रक्षा के लिए शेर तक से लड़ जाने वाले मसाई जब उन्हीं गायों को अमेरिका को दान में देते हैं, तो इससे अमेरिका का मान घट तो नहीं जाता? ठीक इसी तरह, केन्या के प्यार को स्वीकार करने से भारत कंगाल नहीं हो गया।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.