संक्रान्ति उत्सव पर पतंगबाजी हैदराबाद में बैन, पुलिस ने दिया ‘सुरक्षा’ कारणों का हवाला

हैदराबाद की पुलिस ने पतंग-प्रेमियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया (फोटो साभार: तेलंगाना टुडे)

पूरे देश में जहाँ 14-15 जनवरी को मकर संक्रान्ति का पर्व खुशियाँ लेकर आया, वहीं हैदराबाद की पुलिस ने पतंग-प्रेमियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ‘सुरक्षा’ कारणों का हवाला देते हुए शहर स्थित धार्मिक स्थलों के आस-पास और आने-जाने वाली सड़कों पर पतंग उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

पुलिस आयुक्त अंजनी कुमार ने लोगों को पतंग न उड़ाने का आदेश दिया। आदेश के साथ उन्होंने लोगों को सलाह भी दी कि वे अपने बच्चों को पतंगों को इकट्ठा करने के लिए सड़कों पर दौड़ने से या बिजली के खंभों पर चढ़ने की अनुमति न दें।

अपने आदेश में पुलिस आयुक्त ने कहा, “कानून और व्यवस्था के लिए, शांति बनाए रखने के लिए और शांति भंग करने लायक घटनाओं को रोकने के लिए, हैदराबाद में 14-15 जनवरी को संक्रांति त्योहार के दौरान पतंगबाजी को रेगुलेट (स्थान विशेष पर प्रतिबंधित) किया जाएगा।”

पुलिस आयुक्त ने हालाँकि एक अच्छी सलाह यह भी दी कि माता-पिता अपने बच्चों को उन छतों से पतंग न उड़ाने दें, जिनके छज्जे बिना घेरे वाले हैं ताकि किसी प्रकार की अनहोनी न हो।

पुलिस का नागरिक हितों में सलाह देना एक आम प्रशासनिक प्रक्रिया है। लेकिन ऐसे तमाम ‘सलाह’ समय-समय पर सिर्फ और सिर्फ हिन्दू प्रतीकों को ही टारगेट कर दिए जाते हैं। आपको याद होगा कैसे होली पर – वॉटरलेस होली – शब्द गढ़ लिया जाता है। दिवाली पर प्रदूषण का आलम कुछ ऐसा होता है कि क्रैकरलेस दिवाली के लिए पूरा ‘तंत्र’ काम करने लगता है – बाकी के दिनों में आसमान नीला दिखता है। मूर्ति-विसर्जन से प्रदूषित होती नदियों को बचाने के लिए लोग लंबे-लंबे लेख लिख मारते हैं और ‘तंत्र’ उनके साथ जी-जान से इसे लागू करवाता है। दही-हाँडी पर लोगों को चोट लगने की ‘फ़िक्र’ पूरे देश की भावना में बदल जाती है।

लेकिन-लेकिन-लेकिन… ये तमाम फ़िक्र तब धुआं-धुआं हो जाता है जब हर हफ़्ते शुक्रवार की नमाज़ के लिए देश के लगभग हर जिले में कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई सड़क जाम कर दी जाती है। दही-हाँडी पर मगरमच्छी आँसू बहाने वाले मुहर्रम पर चाकू-तलवारों से पीठ-सीना छलनी करने वाली प्रथा पर मुँह में लेमनचूस डाल लेते हैं। शब-ए-बरात पर बाइक से स्टंट करते लड़के जब ट्रैफिक पुलिस के लिए आफ़त बन जाते हैं, तब यही तंत्र और इनका ‘प्रशासन’ धार्मिक सौहार्द्र की चादर ताने सोया रहता है। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया