दैनिक भास्कर ने अफगानिस्तान छोड़ने वाले हिंदुओं-सिखों के व्यापार, संपत्ति पर कब्जा करने वाले मुस्लिमों को बताया ‘मसीहा’

दैनिक भास्कर ने हिंदुओं-सिखों की संपत्ति पर कब्जा करने वालों को बताया मसीहा

भारत में मेनस्ट्रीम मीडिया ने हमेशा से इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए नरम रुख अख्तियार किया है। दैनिक भास्कर भी उन्ही में से ए​क है। रविवार (29 अगस्त) को इसने चौंकाने वाला दावा करते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान के जलालाबाद में अब कोई हिंदू-सिख नहीं है। वे अपना घर, कारोबार छोड़कर वहाँ से चले गए हैं, लेकिन उनके और मुस्लिम समुदाय के बीच संबंध इतने मजबूत हैं कि उनके लौटने तक वे उनका कारोबार संभाल रहे हैं।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट

हम यहाँ अफगानिस्तान और तालिबान के मामले पर गंभीर हैं। वहीं, भास्कर चाहता है कि हम उसकी इस रिपोर्ट पर विश्वास करें। उन्होंने एक मुस्लिम व्यक्ति को यह कहते हुए भी कोट किया है, ”मैं क्लीनिक के मालिक को रोज यहाँ के हालात की अपडेट देता हूँ। हमें यकीन है कि हालात सुधरेंगे तो वे लौट आएँगे। तब तक हम उनका कारोबार बंद नहीं होने देंगे।”

इस रिपोर्ट के बाद मानो भारतीय हिंदी अखबार इस कोरी कल्पना में पूरी तरह से डूब गया हो। भास्कर के इस रवैये को लेकर यहाँ मीम का उल्लेख करना आवश्यक है।

मीम एक शोटाइम डॉक्यूमेंट्री का स्क्रीनशॉट है

बेशक, मीम एक शोटाइम डॉक्यूमेंट्री का स्क्रीनशॉट है, जहाँ पत्रकार तालिबान से पूछता है कि क्या उनके शासन में अफगानिस्तान में लोकतंत्र होगा और महिलाओं को वोट देने की अनुमति होगी। लेकिन यह बात दैनिक भास्कर की रिपोर्ट पर काफी हद तक लागू होती है।

यह सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में अफगान हिंदुओं और सिखों की संपत्ति के साथ क्या हो रहा है। स्थानीय निवासियों द्वारा उनकी ‘देखभाल’ के नाम पर उन पर कब्जा कर लिया जा रहा है। जो हमें दिखाया जा रहा है वह वास्तविकता के उलट है। मीडिया अफगान हिंदुओं-सिखों पर किए गए जुल्मों पर मरहम लगाने की बजाय उस पर नमक छिड़कने का काम कर रहा है।

क्या किसी को सच में विश्वास है कि एक बार फिर से अफगानिस्तान में जीवन सामान्य हो सकेगा? क्या अफगान हिंदू और सिख अफगानिस्तान लौट पाएँगे? और अफगानिस्तान के संदर्भ में ‘calm down‘ का क्या अर्थ है? देश में पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से यहाँ पर गृहयुद्ध चल रहा है। क्या भारत आया कोई सिख या हिंदू कभी वापस जा पाया है? वे भी क्यों चाहेंगे? दीवार पर स्पष्ट लिखा हुआ है और फिर भी, मीडिया हमें मूर्ख बनाने पर तुला है।

यहाँ जो हो रहा है वह कोई नई बात भी नहीं है। जब-जब इस्लामी आक्रमण हुए हैं, तब-तब हिंदुओं को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया है। उनकी संपत्तियों पर उनके पड़ोसियों और उन लोगों ने कब्जा कर लिया है, जिनके बारे में वे सोचते थे कि उनके साथ अच्छे संबंध हैं। कश्मीर में हुआ, बांग्लादेश में हुआ और अब अफगानिस्तान में ये सब हो रहा है।

मीडिया निश्चित रूप से यह सब जानता है, इसके बावजूद उसका इस तरह से दावे करना विश्वासघात है। वे इस तरह के हास्यास्पद लेखन से बच सकते हैं। ध्यान दें जब भी इस्लामिक चरमपंथी दुनिया में कहीं भी हिंसा और नफरत फैलाते हैं, तब ही मीडिया किसी न किसी तरह से उन्हें दुनिया वालों की नफरत से बचाने के लिए हास्यास्पद बकवास करने पर अमादा रहता है।

यह अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के दौरान ज्यादा देखने को मिला है। भारतीय मीडिया इसे अपने नजरिये से लोगों को दिखाने का प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिए, NDTV ने तालिबान के प्रवक्ता को अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मंच प्रदान किया। उसी समय, भारतीय लिबरल ने एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने के लिए जिहादी संगठन की सराहना की।

इस प्रकार, यह बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं है कि तालिबान पर प्रोपेगेंडा को फैलाने वाला उद्योग यह भी मानता है कि अफगानिस्तान में कैसे स्थानीय मुसलमान अफगान सिखों और हिंदुओं की संपत्तियों की देखभाल कर रहे हैं।

K Bhattacharjee: Black Coffee Enthusiast. Post Graduate in Psychology. Bengali.