AltNews मतलब मजहबी प्रोपेगेंडा: फैक्ट चेक की आड़ में इस फैक्ट्री में गढ़े जाते हैं झूठ

ऑनलाइन स्टॉकर प्रतीक सिन्हा

फैक्ट चेक के नाम पर प्रोपेगेंडा चलाने वाली ऑल्ट न्यूज वेबसाइट को लेफ्ट गिरोह के सदस्य सत्य की पड़ताल के लिए एक मात्र विश्वसनीय स्रोत मानते हैं। इस वेबसाइट में लेख लिखने वाले लोग सरकार विरोधी और हिंदू विरोधी होते हैं, जिनसे इस वेबसाइट के अजेंडे का पूरा माहौल तैयार होता है। फिर भी ये वेबसाइट अक्सर दावा करती है कि सत्य की जाँच में इनके द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया बेहद विस्तृत और प्रमाणिक होती है।

यह बात और है कि इस पोर्टल के लिए अरुंधती रॉय जैसे लोग योगदान देते हैं, जो केवल नक्सलियों की भाषा बोलते हैं। समय दर समय भारत को अलग-अलग करने की इच्छा जाहिर करते हैं और जिनके कारण आज ऑल्ट न्यूज दक्षिणपंथियों की नजर में इस्लामी कट्टरपंथियों का मुखपत्र दिखने के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया है। आज स्थिति ये है कि ये वेबसाइट लगातार फर्जी न्यूज फैलाती है, सच के साथ खिलवाड़ करती है, इस्लामी कट्टरपंथियों के जुर्मों को ढकने की योजना तैयार करती है और कई बार तो खुद ही फेक न्यूज बनाकर उसका फैक्ट चेक भी कर देती है।

आज मजहबी अपराधियों को बचाने के इनके तरीके इतने आम हो गए हैं कि जो शख्स भी इस वेबसाइट की प्रवृत्ति को अच्छे से समझता है, वो इनके फैक्ट चेक के लिए उपयोग में लाए जाने वाले तरीकों से वाकिफ हो गया होगा। जी हाँ। इनके तरीके और कट्टरपंथी आरोपितों को बचाने की दिशा में किए जाने वाला प्रयास अब लगभग अनुमानित और मानकीकृत हो गए हैं। इसलिए, आज अपने इस लेख में हम उन्हीं पद्धतियों पर चर्चा करने जा रहे हैं, जिन्हें ऑल्ट न्यूज अक्सर समुदाय विशेष के पक्ष में खबर मोड़ने के लिए इस्तेमाल करता है।

तरीका नंबर 1: सर्वथा झूठ पर कायम

एक फैक्ट चेकिंग वेबसाइट का काम जहाँ हर मामले के पहलु को परखते हुए सच्चाई सामने लाने का होता है। वहीं ऑल्टन्यूज का काम फैक्ट चेक करते समय होता है कि किस तरह वे ऐसा झूठ बोलें कि उनके पाठक को उन पर यकीन हो जाए और जिस दिशा में वे अपना अजेंडा चलाना चाहते हैं, वो चलता रहे।

अभी ज्यादा समय नहीं बीता, जब कोरोना की शुरुआत में एक ट्विटर हैंडल से पीपीई की कमियों को उजागर करते एक ट्वीट आया था और बाद में इस ट्वीट को प्रतीक सिन्हा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के बॉस शेखर गुप्ता समेत कई वामपंथियों ने शेयर करके ट्विटर पर सरकार के ख़़िलाफ़ प्रोपेगेंडा तैयार किया था। हालाँकि बाद में इस ट्वीट को डिलीट कर दिया गया था और पता चला था कि वो अकॉउंट फेक था, जिसे गिरोह विशेष के लोगों ने अपने झूठ को चलाने के लिए इस्तेमाल किया। 

इससे पहले साल 2017 में इस वेबसाइट का सह-संस्थापक फेसबुक पर ‘Unofficial: Subramanian Swamy नाम का एक पेज बनाकर झूठ फैलाते पकड़ा गया था। इस पेज के जरिए उसने दावा किया था कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदिुरप्पा ‘टीपू जयन्ती’ मनाते थे। हालाँकि बाद में ये दावा भी झूठा निकला था और पता चला था कि झूठ फैलाने के लिए जो फोटो डाली गई, उस समय तो वे भाजपा में शामिल ही नहीं थे।

इसके बाद इस वेबसाइट का सह-संस्थापक जुबेर को भी एक बार एक क्रॉप्ड वीडियो शेयर करते पकड़ा गया था। इसमें पुलवामा के मद्देनजर वो दावा कर रहा था कि विहिप के सदस्यों ने यूपी के गोंडा में राष्ट्र विरोधी नारे लगाए। इतना ही नहीं, अपने फॉलोवर्स से उसने यही झूठी वीडियो रीट्वीट करने को भी कही, ताकि उसका प्रोपेगेंडा पूर्णत: फैल सके। बाद में मालूम हुआ कि गोंडा पुलिस ने जुबेर के दावों को झूठा कहते हुए बयान जारी किया और स्पष्ट किया कि विहिप के सदस्यों ने देश विरोधी नारे नहीं लगाए।

इस प्रकार 2018 में एक वीडियो आई। वीडियो में पाक समर्थित नारे लग रहे थे। जाहिर है लगाने वाले कौन थे। लेकिन ऑल्ट न्यूज इस मामले में कूदा और उसने फौरन इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाए। साथ ही इस वीडियो को संदिग्ध बताया। मगर, बाद में बिहार डीजीपी केएस द्विवेदी ने स्पष्ट कहा कि वीडियो अररिया की है और इससे कोई छेड़खानी नहीं की गई। नारे लगाने वालों का नाम सुलतान आजमी और शहजाद था।

तरीका नंबर 2: पाठक को बरगलाने के लिए अनगिनत प्रयास

ऑल्ट न्यूज के अस्तित्व में आने के बाद कई ऐसे मौके आए जब उसने अपने पाठकों को केवल और केवल बरगलाया। कठुआ रेप केस में जब मुख्य आरोपित के घटनास्थल पर मौजूद होने को लेकर सवाल उठे, तो ऑपइंडिया ने खबर की कि ताजा रिपोर्ट्स बताती हैं कि आरोपित का बेटा घटना वाले दिन मुजफ्फरनगर में था, जबकि पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ ये शिकायत दर्ज की है कि वो कठुआ में था। अब ऑल्ट न्यूज ने इसी को लेकर ऑपइंडिया पर हमला बोला और कहा कि ऑपइंडिया वेबसाइट बलात्कारी के नाबालिग बेटे को डिफेंड करने की कोशिश कर रही है।

इसी प्रकार कोलकाता में इश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति को जब लोकसभा चुनावों के दौरान क्षतिग्रस्त किया गया, तब कहीं भी इस बात के सबूत नहीं मिले थे कि ये करने वाले भाजपा से जुड़े कोई लोग हैं। लेकिन फैक्टचेकर वेबसाइट ने इन खबरों को फैक्ट चेक करते हुए भगवा संगठन को जिम्मेदार ठहरा दिया। मगर सच ये है कि जाँच अधिकारियों को अब तक ये नहीं पता चला कि उस समय मूर्ति को किसने तोड़ा।

भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कुछ दिनों पहले एक वीडियो शेयर की। वीडियो में मजहबी भीड़ मस्जिद में इकट्ठा दिखाई दे रही थी। इस वीडियो को शेयर करते हुए उन्होंने उन लोगों पर सवाल उठाए थे, जो मजहब का नाम आते ही हमलावर हो जाते हैं, लेकिन समुदाय के लोगों की हरकतों को नहीं देखते। अब इसी वीडियो पर जुबेर फौरन सक्रिय हुआ और वीडियो का फैक्ट चेक करते हुए दावा कर कहा कि भाजपा के आईटी सेल के दबाव में गौरव ने वीडियो शेयर किया है।

तरीका नंबर 3: समुदाय विशेष के अपराधों का खबर से सफाया

ऑल्ट न्यूज अपने फैक्ट चेक को करते हुए ये चीज ध्यान में रखता है कि वो किस तरह से कट्टरपंथियों के अपराधों से लोगों का ध्यान भटकाकर उन्हें निर्दोष साबित करे। दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के दौरान फैक्ट चेकर ने AAP के निलंबित नेता ताहिर हुसैन को बचाने के लिए बकायदा निरंतर प्रयास किए। 

उन्होंने अपनी रिपोर्ट्स के जरिए AAP के निलंबित नेता को क्लिन चिट दे दिया और उसकी वीडियो शेयर करके जाहिर करने की कोशिश की कि ताहिर हुसैन तो वास्तविकता में मदद की गुहार लगा रहा था। लिखा कि उसके वीडियो के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है।

जामिया मिलिया इस्लामिया में नागरिकता संशोशन कानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में भी ऑल्ट न्यूज का यही रवैया था। इसी ऑल्ट न्यूज वेबसाइट ने पुलिस पर हमला करने वाले छात्रों को लेकर बोला था कि उनके हाथ में पत्थर नहीं बल्कि वॉलेट था। जबकि वास्तविकता में वीडियो में साफ दिख रहा था कि छात्र के हाथ में पत्थर था।

इसके बाद ऑल्ट न्यूज ने यही घटिया कोशिश कोरोना काल में भी जारी रखी। सोशल मीडिया पर जिस समय अनेकों तस्वीरें और वीडियो सैलाब की तरह तैर रही थीं कि कहीं कोई मजहबी फल विक्रेता फलों पर थूक लगाकर बेच रहा है, कहीं पर पेशाब छिड़क रहा है। तो ऑल्ट न्यूज ने इन घटनाओं को भी जस्टिफाई करने का प्रयास किया और अपराधों को इस तरह दर्शाया कि ये सब काम कोरोना महामारी के बीच में नहीं हुए। सवाल ये है कि क्या थूक लगाकर फल बेचना किसी भी समय में स्वीकारा जा सकता है?

हाल का एक और उदहारण है, जब शेख नाम के एक व्यक्ति ने पेट्रोल पंप पर 20 रुपए का नोट गिरा दिया था और पेट्रोल पंप वालों ने सीसीटीवी देखकर इसकी शिकायत पुलिस में की। तब भी ऑल्ट न्यूज ने उसे पाठकों की नजरों में निर्दोष दिखाने के लिए मार्मिक स्टोरी की थी और लिखा था कि एक्सिडेंट के कारण उसका सीधा हाथ काम नहीं करता। इसलिए उसके हाथ से नोट गिरा।

तरीका नंबर 4: डॉक्सिंग कर सोशल मीडिया पर लोगों की जानकारी सार्वजनिक करना

ऑल्ट न्यूज से संबंधित ऐसे कई मामले सामने आए, जब इस वेबसाइट ने सोशल मीडिया पर वैचारिक मतभेद देखते हुए लोगों की निजी जानकारियों को सार्वजनिक किया और जिसके कारण यूजर्स को धमकियाँ मिलनी शुरू हो गईं। साल 2019 में प्रतीक सिन्हा ने ऐसा ही कारनामा करके बवाल खड़ा दिया था। उस समय @SquintNeon नाम के यूजर को जिहादी तरह-तरह की धमकियाँ देने लगे थे। बाद में ट्विटर ने भी उस लड़के का अकॉउंट सस्पेंड कर दिया था।

इसी प्रकार प्रतीक सिन्हा ने कई लोगों की डॉक्सिंग की। उसने कई यूजर की जानकारी को सार्वजनिक तौर पर पोस्ट करके उनकी जान को खतरे मे डलवाया। यहाँ तक इस प्रक्रिया के बीच में महिलाओं को भी नहीं छोड़ गया। बाद में कई लोगों ने इस बात का खुलासा किया कि प्रतीक सिन्हा की हरकतों के कारण उन्हें ये धमकियाँ मिलीं।

इसलिए, ये कहना गलत नहीं है कि ऑल्ट न्यूज द्वारा अपनाई जाने वाली ये पद्धति निजता के अधिकार को तार-तार करते हुए न केवल कट्टरपंथियों के अपराध को छिपाने के लिए इस्तेमाल की जाती है, बल्कि उन लोगों को डराने के लिए भी इस्तेमाल की जाती है, जो उनके ख़िलाफ़ बोलने का प्रयास करते हैं।

तरीका नंबर 5: वैश्विक स्तर पर विदेशी मीडिया और वामपंथियों का सहयोग

यहाँ बता दें कि ऑल्ट न्यूज अपने प्रोपेगेंडा को चलाने के लिए केवल उक्त प्रणाली को नहीं अपनाता। बल्कि इसके लिए वो माध्यम भी खोजता है। जैसे विदेशी मीडिया के जरिए वे अपने फैक्ट चेक को व्यापक स्तर पर प्रमाणित करता है और उनके अजेंडे को व्यापक स्तर पर फैलाने में उनकी मदद भी करता है।

ताजा उदाहरण देखिए, कोरोना वायरस के कहर के बीच तबलीगी जमातियों के मामले में प्रतीक सिन्हा ने अमेरिकन मीडिया संगठन को ये बताया कि भारत में दक्षिणपंथियों द्वारा इन वीडियोज को इस मंशा से फैलाया जा रहा है कि वे भारतीय समुदाय विशेष को बदनाम कर सकें और साथ ही कोरोना वायरस के बीच उनकी गतिविधि को आतंकी गतिविधि करार दे सकें।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ये बयान उस समय प्रतीक सिन्हा ने दिया, जब सोशल मीडिया पर अनेकों वीडियो मौजूद थी, जिसमें लोग कोरोना को अल्लाह का कहर बोलकर लोगों में डर व्याप्त कर रहे थे। साथ ही 500 के नोट में थूक लगाकार कोरोना फैलाने की बात कर रहे थे।

प्रतीक सिन्हा ने वाइस (Vice) से बातचीत में वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को भी खराब करने का प्रयास किया। उन्होंने उस लेवल पर जहाँ उन्हें एक्सपर्ट के तौर पर बताया गया, वहाँ उन्होंने कहा कि जब भी वह फैक्ट चेकर की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस को अटेंड करते हैं, तो उन्हें महसूस होता है कि कहीं भी गलत जानकारियों का इस्तेमाल इस कदर नहीं किया जाता है, जैसे कि भारत करता है।

गौरतलब हो कि प्रतीक सिन्हा विदेशी मीडिया के समक्ष ये सब तब कहते नजर आते हैं जब ऑल्ट न्यूज के सभी सह-संस्थापकों की विचारधारा और विचारों को देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने गलत जानकारी फैलाने में स्नातक की डिग्री हासिल की हो। और आज वे उसी का इस्तेमाल करके वे अपना प्रोपेगेंडा चला रहे हैं। 

आज बात चाहे विदेशी मीडिया के सामने भारत की छवि बिगाड़ने की हो, हिंदुओं को कट्टर बताने की हो, सरकार की नीतियों का विरोध करने की हो, तबलीगी जमातियों को निर्दोष बताने की हो, बालाकोट में एयरफोर्स के साहस पर संदेह करने की हो…ऑल्ट न्यूज इन सभी कार्यों को अपनी रिपोर्ट्स के माध्यम से बखूबी कर रहा है।

ऑल्ट न्यूज मतलब इस्लामी प्रोपेगेंडा

अपने आप को फैक्ट चेकिंग वेबसाइट बताने वाला ये पोर्टल विशुद्ध रूप से केवल और केवल प्रोपेगेंडा चला रहा है। जिसे वास्तविकता में कोई मतलब नहीं है कि देश की अल्पसंख्यक आबादी के निराधार माँगों के कारण वे केवल और केवल बहुसंख्यक आबादी के धार्मिक चिह्नों का अपमान कर रहे हैं। साथ ही ऐसे लोगों को भी बचा रहे हैं, जिन्होंने 3 साल की बच्ची की पिछले साल अलीगढ़ में बेरहमी से हत्या कर दी और श्रीलंका में हुए हमलों को अंजाम दिया।

ऑल्ट न्यूज की रिपोर्ट आज देख लीजिए या कल… उनकी प्रतिबद्धता केवल इस्लामी कट्टरपंथियों के प्रति ही दिखाई देगी। उन्होंने फैक्ट चेक के नाम पर जो फैक्ट्री खोल रखी है, उससे आज सिर्फ़ झूठ ही निर्मित होता है, जिसके चरणबद्ध तरीकों का उल्लेख हमने इस लेख में ऊपर कर ही दिया है।

Editorial Desk: Editorial team of OpIndia.com