20 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी को 35+ सीटें: ‘क्रन्तिकारी’ पत्रकार का क्रन्तिकारी Exit Poll

संविधान और राजनीति को लेकर लगातार अपनी नासमझी का परिचय दे रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार वाजपेयी

पिछले कुछ दिनों से वह जिस भी मीडिया संस्थान में नौकरी करने जा रहे हैं, वहाँ से उन्हें निकाल बाहर किया जा रहा है। कभी अरविन्द केजरीवाल के साथ अपनी केमिस्ट्री को लेकर ‘क्रन्तिकारी’ का दर्जा पा चुके पुण्य प्रसून वाजपेयी पर अब उम्र के साथ-साथ नौकरी छूटने का असर भी साफ़-साफ़ दिख रहा है। जहाँ कई मीडिया चैनल, सर्वे एजेंसियाँ मिल कर एग्जिट पोल्स जारी कर रही हैं और फिर भी वो चेतावनी दे रहे हैं कि फाइनल नतीजे इससे बिलकुल अलग हो सकते हैं, पुण्य प्रसून वाजपेयी ने ‘अपना ख़ुद का एग्जिट पोल’ जारी किया है। उन्होंने कहाँ-कहाँ जाकर मतदताओं से बात की, इस बारे में कुछ न ही पूछिए तो बेहतर है। वाजपेयी अब टीवी चैनलों से ऊपर उठ कर स्वयं में ही एक संस्थान बन बैठे हैं।

उनके एग्जिट पोल के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी की सीटें 282 से घट कर सीधा 145-152 पर आ जाएगी। कॉन्ग्रेस को 100 से अधिक आएँगी और यूपी महागठबंधन को 50 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। उन्होंने तृणमूल को 35 से भी अधिक सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। बंगाल में भाजपा केउद्भव को वाजपेयी ने सीधे तौर पर नकार दिया है। लेकिन, वाजपेयी ने इससे भी बड़ी ग़लती या यूँ कहें, ब्लंडर किया है। उन्होंने डीएमके के 35 से भी अधिक सीटें जीतने की बात कही है।

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क्या डीएमके 35 से अधिक सीटें जीत सकती है? अगर पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसा विरिष्ठ और बड़ा पत्रकार इस तरह के दावे करे, तो भले ही अनुमानों में भिन्नता हो सकती है लेकिन कुछ बेसिक फैक्ट चेक तो उन्होंने किया ही होगा। लेकिन नहीं, पुण्य प्रसून वाजपेयी ने ऐसा करने की ज़रूरत नहीं समझी। ऐसी पार्टी, जो सिर्फ़ 20 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है, उसे वाजपेयी ने 35 सीटें दे दी है। ऐसा कैसे संभव है? क्या डीएमके द्वारा जीती गई एक सीट को दो या डेढ़ गिना जाएगा? 20 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी 35 सीटें कैसे जीत सकती है?

सबसे बड़ी बात कि मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस के आधिकारिक पेज ने इस कथित एग्जिट पोल को शेयर भी किया। हो सकता है पुण्य प्रसून वाजपेयी का इरादा ही यही रहा हो- बिना फैक्ट जाने कुछ भी आँकड़े दे देना, ताकि फाइनल रिजल्ट्स आने तक कॉन्ग्रेस पार्टी के लोग तो उनका वीडियो शेयर करें। अगर डीएमके तमिलनाडु की सारी सीटों पर चुनाव लड़ती तो पुण्य प्रसून वाजपेयी शायद उसे देश में पूर्ण बहुमत देते हुए स्टालिन के भारत का प्रधानमंत्री बनने का अनुमान लगा लेते।

इससे पहले भी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक नासमझी का परिचय तब दिया था, जब उन्होंने कहा था कि आचार संहिता लागू होते मोदी सरकार ‘केयरटेकर सरकार’ की भूमिका में आ जाएगी। इसपर उन्हें लताड़ लगाते हुए एक आईएएस अधिकारी ने उन्हें कहा था, “बाजपेयी जी, एंकरिंग आपको संवैधानिक विशेषज्ञ नहीं बनाती है। लोकसभा भंग होने पर ही सरकार केयर-टेकर बनती है। कृपया भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश का संविधान लागू न करें।” पुण्य प्रसून वाजपेयी बड़े मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं लेकिन उनके ताज़ा कांडों से लगता है कि उन्हें संविधान और राजनीति पर ट्यूशन लेने की ज़रूरत है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया