तब भारत बंद बहुत बुरा रहा, गलत राजनीति था: अभी बंद पर नाच रहे लिबरल्स की असलियत समझने के लिए चलिए 8 साल पीछे

राजदीप, रवीश, बरखा - भारत बंद का तब क्यों करते थे विरोध?

‘किसान आंदोलन’ के समर्थन में देश भर में कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने ‘भारत बंद’ का आयोजन कर रखा है और केंद्र सरकार के विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन जारी है, जिसके तहत दुकानों वगैरह को जबरदस्ती बंद कराया जा रहा है। इसी बीच पत्रकारों का लिबरल गिरोह जिसे ये बंद आज बड़ा ही खूबसूरत लग रहा है, कभी बंद विरोधी हुआ करता था। यानी, आज जब ये अराजकता मोदी सरकार के खिलाफ फैलाई जा रही है, तो सभी इसे चाशनी में डाल कर चूसने को बेताब हैं।

सबसे पहले बरखा दत्त की बात। मई 2012 में जब पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ रहे थे तो यूपीए सरकार के खिलाफ भारत बंद आयोजित किया गया था। तब बरखा दत्त ने कहा था कि ये भारत बंद लोकतंत्र में विरोध का सबसे बुरा तरीका है और इससे किसी को मदद नहीं मिलती, इससे कोई वजह पूरी नहीं होती। वही बरखा दत्त अब इस आंदोलन का महिमामंडन करने में लगी हैं और ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए प्रदर्शनकारियों को महान साबित कर रही हैं।

अब इस विरोध प्रदर्शन के महिमामंडन में लगीं बरखा दत्त

अब आते हैं राजदीप सरदेसाई। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों, गैस सब्सिडी घटाने और बढ़ते भ्रष्टाचार के विरोध में सितम्बर 2012 में यूपीए सरकार के खिलाफ हुए भारत बंद में जब सरकार को समर्थन दे रही पार्टियाँ भी शामिल थीं, तब राजदीप ने लिखा था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने बंद को असंवैधानिक घोषित कर रखा है, फिर बंद क्यों? वहीं अब वो इस बात से नाराज दिख रहे हैं कि भाजपा शासित राज्यों में पुलिस दुकानदारों को दुकानें खुली रखने के लिए ‘चेता’ रही है।

राजदीप सरदेसाई अब ‘भारत बंद’ का प्रचार करने में लगे हैं

इसी तरह मई 2012 में संगीतकार विशाल डडलानी ने गर्व के साथ घोषित किया था कि वो ‘अव्यवहारिक’ बंद की अवहेलना करने में सफल रहे। उन्होंने लिखा था कि वो न सिर्फ काम पर गए, बल्कि घूमे भी और सामान्य दिनों की तरह अपनी ज़िंदगी जी। उन्होंने बंद का आयोजन करने वाले नेताओं के लिए ‘Suck On That’ भी लिखा। अब? अब वो कह रहे हैं कि वो ख़ुशी से इस बंद के साथ हैं। ये भारत बंद भी राजनीतिक दलों का ही है, फिर भी विशाल डडलानी इसे ‘किसानों का नेताओं के खिलाफ’ बंद मान रहे।

https://twitter.com/VishalDadlani/status/1336191088726474752?ref_src=twsrc%5Etfw

वहीं NDTV के तो कहने ही क्या। मई 2012 में वो कह रहा था कि आम आदमी के नाम पर राजनीति की जा रही है और ‘भारत बंद’ भी इसी का नतीजा है। अब एनडीटीवी हर राज्य में ‘भारत बंद’ का समर्थन कर रहे राजनीतिक दलों को लेकर लगातार खबरें चला रहा है और विशेषज्ञों के हवाले से डर फैला रहा है कि कैसे अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गिर रही है। वो बता रहा है कि कैसे सभी विपक्षी पार्टियाँ बंद के समर्थन में हैं।

अब देखिए रवीश कुमार को। उन्होंने मई 2012 में ‘ट्रेन रोको, रास्ता रोको, रोको सारा इंडिया, तेल बढ़ेगा देश जलेगा, कैसे चलेगा इंडिया, पार्टटाइम पॉलिटिक्स का हो रहा है डांडिया’ जैसी पंक्तियाँ लिख कर बंद का विरोध किया था। अब वो ट्विटर पर तो सक्रिय नहीं हैं, लेकिन अब वो सरकार के खिलाफ रोज कुछ न कुछ लिख कर प्रदर्शनकारियों के समर्थन में लगे हैं। फ़िलहाल ‘भारत बंद’ पर वो मौन साधे हुए हैं।

ममता बनर्जी ने तो अपने वफादार नेताओं को भेज कर सिंघु सीमा पर जमे किसान नेताओं और इच्छाधारी प्रदर्शनकारी योगेंद्र यादव से बात भी की। वो इस ‘भारत बंद’ का भी समर्थन कर रही हैं। वहीं सितम्बर 2012 में उन्होंने इसे ‘बंद राजनीति’ का नाम देते हुए कहा था कि वो इन चीजों का समर्थन नहीं करतीं। ये अलग बात है कि खुद अपने राज्य में कृषि सुधार कानूनों को वो 2014 में ही लागू कर चुकी हैं।

https://twitter.com/anandydr/status/1336182027264016386?ref_src=twsrc%5Etfw

हालाँकि, लिबरल गिरोह की तमाम कोशिशों के बावजूद महाराष्ट्र के पुणे में तो भारत बंद के बावजूद सब्जी मंडियाँ खुली हैं। एक स्थानीय व्यापारी ने इस पर कहा, “हम किसानों के प्रदर्शन को समर्थन देते हैं, लेकिन हमने बाजार खोले हुए हैं ताकि दूसरे प्रदेशों से आने वाली फसल स्टोर की जा सके और वह खराब न हो। इन्हें हम कल ही बेचेंगे।” दिल्ली में भी सब्जी मंडी के व्यापारियों की यही स्थिति है लेकिन यहाँ सुबह तक मंडियों को बंद रखने के लिए AAP नेता द्वारा दबाव बनाया जा रहा था। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया