SC में केंद्र सरकार ने कहा: PMO द्वारा राफेल सौदे की निगरानी करना सही था

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राफेल डील को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिका पर केंद्र सरकार ने शनिवार (मई 4, 2019) को सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल किया। केन्द्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा राफेल सौदे की निगरानी को किसी भी तरह से हस्तक्षेप के रूप में नहीं देखा जा सकता है। इसे पैरलल निगोशियेशन या दखल नहीं कहा जा सकता है। केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि पुनर्विचार याचिकाओं पर आगे की सुनवाई का कोई आधार नहीं हैं। ऐसे में सभी याचिकाएँ खारिज की जानी चाहिए। सरकार ने कहा है कि सुरक्षा संबंधी गोपनीय दस्तावेजों के इस तरह सार्वजनिक खुलासे से देश के अस्तित्व और संप्रभुता पर खतरा है। इस मामले पर अगली सुनवाई 6 मई को होगी।

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 को दिए गए अपने आदेश में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत होना बताया था और सरकार को क्लीन चिट दी थी। अदालत ने इस फैसले में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे को चुनौती देने वाली सारी याचिकाएँ खारिज कर दी थीं। कोर्ट ने कहा था कि इस रक्षा सौदे में अदालत के दखल या जाँच की जरूरत नहीं है।

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इसके बाद यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने 2 जनवरी 2019 को अखबार में छपे आर्टिकल के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएँ दाखिल की थीं। हालाँकि, केंद्र सरकार ने लीक हुए गोपनीय दस्तावेज को पिटिशन के साथ पेश किए जाने पर ऐतराज जताया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल को उसे खारिज करते हुए कहा था कि वह लीक दस्तावेज के आधार पर रिव्यू पिटिशन सुनेगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया