ASAT तकनीक 2012 से ही थी भारत में, कॉन्ग्रेस के लचर नेतृत्व के कारण फाँक रही थी धूल

ऐंटी सैटलाइट वेपन का सफलतापूर्वक टेस्टिंग भारत के लिए गर्व की बात

आज का दिन ऐतिहासिक है। भारत के लिए, विश्व के लिए और विज्ञान के लिए भी। आज 27 मार्च को भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बना, जिसने सफलतापूर्वक ऐंटी सैटलाइट वेपन (A-SAT) लॉन्च किया। आज से पहले यह उपलब्धि सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन ने ही हासिल की थी।

‘जय जवान, जय किसान’ वाले देश को ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ वाला देश बनते देखना एक सुखद अहसास है। यह इतने बड़े गर्व की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्र के नाम संदेश जारी करना पड़ा। लेकिन यह जानकर आप सभी को बहुत आश्चर्य होगा कि जिस तकनीक को हम 2019 में सफल होते देख पाए, दरअसल वो तकनीक हमारे वैज्ञानिकों के पास 2012 से ही उपलब्ध थी।

ख़बर पक्की है, लेकिन विश्वास करने में थोड़ा समय लगेगा और कुछ पुरानी जानकारियों की भी जरूरत पड़ेगी। और यही हमारा काम है – आप तक जानकारियों को पहुँचाना। THE DIPLOMAT नाम की एक प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल है। 14 जून 2016 को इसमें India’s Anti-Satellite Weapons नाम का एक आर्टिकल छपा था। यह आर्टिकल 2013 में चीन के द्वारा डॉन्ग नेंग-2 (Dong Neng-2) ऐंटी सैटलाइट वेपन की सफलतापूर्वक टेस्टिंग और उसके कारण अंतरिक्ष रक्षा-सुरक्षा में वैश्विक होड़ के ऊपर लिखी गई थी।

कहानी 2007 से

चीन की बात करें तो उसने सफलतापूर्वक 2007 में सबसे पहला ऐंटी सैटलाइट वेपन टेस्ट कर लिया था। पड़ोसी और विकास के रास्ते में प्रतिद्वंद्वी होने के कारण भारत में इसकी चर्चाएँ तब शुरू हो गईं थीं। समय के साथ तकनीक की जरूरतों पर बल देते हुए 2008 में तब के थल सेना अध्यक्ष जनरल दीपक कपूर ने भारत की अपनी ऐंटी सैटलाइट वेपन की आवश्यकता पर चर्चा की थी। तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी द्वारा शुरू किए गए ‘इंटिग्रेटेड स्पेस सेल’ पर तंज कसते हुए जनरल कपूर ने तब ‘स्टार वॉर्स’ के लिए तैयार रहने और उसकी तकनीक को पाने पर अपनी बात रखी थी।

2012 में आया मोड़

तब DRDO के प्रमुख वीके सारस्वत थे। एक दिन उन्होंने देश को चौंका दिया, यह घोषणा करके कि भारत के पास Low Earth Orbit और Polar Orbit में परिक्रमा करने वाले सैटेलाइट को निष्क्रिय करने लायक ऐंटी सैटलाइट वेपन की सारी तकनीक और उसे बनाने के लिए सारे कल-पूर्जे मौजूद हैं। तब सारस्वत ने सुझाव दिया था कि भारत की ऐंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (एबीएम) रक्षा कार्यक्रम का उपयोग एक ऐंटी सैटलाइट वेपन के रूप में किया जा सकता है। सारस्वत ने तब यह बात तुक्के में नहीं कही थी। क्योंकि उनके कहने के बाद DRDO द्वारा भी इस बात की पुष्टि की गई थी, जिसमें कहा गया था कि भारतीय की बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम को ऐंटी सैटलाइट वेपन को विकसित करने में शामिल किया जा सकता है।

ऐसा नहीं था कि DRDO की इस घोषणा के बाद सारे लोग गर्व से फूले समा रहे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे, जो सवाल खड़े (जो हमेशा से होता है) कर रहे थे। तब देश में यूपीए की सरकार थी। सरकार चाहती तो इस ऐतिहासिक घोषणा को तेजी देने के लिए और धरातल पर उतारने के लिए बहुत कुछ कर सकती थी – स्पेशल बजट देकर, वैज्ञानिकों की टीम बनाकर – विदेशी एडवांस तकनीक को देश में डेवलप करवाया जा सकता था। लेकिन ऐसा किया नहीं गया।

प्रतिबंध के द्वंद्व में नीति निर्माता

अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध को हौवा के रूप में देखने वाली कॉन्ग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी के दृढ़ नेतृत्व से भी कोई सीख नहीं ली थी। और ऐसा तब किया गया जब देश अच्छा-खासा मजबूत हो चुका था – आर्थिक और सैन्य दोनों रूपों से। ऐंटी सैटलाइट वेपन को डेवलप करने और उसके सफलतापूर्वक टेस्ट करने की बात तो छोड़ दीजिए। UPA सरकार ने तब इतना भी जज्बा नहीं दिखाया था कि किसी सैटेलाइट को डायरेक्ट हिट करने के बजाय fly-by test ही कर लिया जाए। इसमें अंतरिक्ष में कचरा भी नहीं फैलता (क्योंकि इसमें सैटेलाइट को वेपन से हिट करने के बजाय उसके पास से गुजारना होता है) है और आप अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध के दायरों में भी नहीं आते हैं। और तो और, इसकी टेस्टिंग किसी सैटेलाइट को स्पेस बेस्ड लेज़र से जैम करके भी की जा सकती थी। लेकिन अफसोस वो भी UPA से हो न सका।

परमाणु परीक्षण हो या अंतरिक्ष में महाशक्ति बनने की राह – भाजपा नीत NDA सरकार ने हमेशा से देशहित को सर्वोपरि रखा है। ऐंटी सैटलाइट वेपन को धरातल पर उतारना और सफलतापूर्वक टेस्टिंग करना इसी की एक कड़ी है।

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