मैं पंडित, सब अज्ञानी: सागरिका घोष ने सैन्य अधिकारी को कहा ‘मूर्ख’

'पत्रकार' सागरिका

सोशल मीडिया के कई फायदे हैं। यह सबको अपनी बात रखने का मौका देता है। इसने देश के विमर्श का मुद्दा तय करने का लुटियंस अभिजात्यों का स्वयंभू अधिकार भी छीन लिया है। इससे खार खाए बैठे कथित ‘वेटरन जर्नलिस्ट’ जो अब प्रोपगेंडा फैलाने के कारण बेनकाब हो चुके हैं, आए दिन अपने विचारों से असहमति जताने वालों को नीचा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते।

इसी कड़ी में आज वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष ने पहले तो अपनी सोच थोपने की कोशिश की और जब इस पर एतराज जताया गया तो भारतीय सेना के सबसे सम्मानीय अधिकारियों में से एक मेजर नवदीप सिंह के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया।

इसकी शुरुआत वामपंथी प्रोपगेंडा वेबसाइट वायर के एक ट्वीट से हुई। वायर ने सागरिका की किताब ‘ह्वाई आइ एम लिबरल’ का एक उद्धरण ट्वीट किया था। यह किताब कितनी मूर्खतापूर्ण बातों से लबालब है, जिसका एक नमूना वायर का ट्वीट है। सागरिका ने वायर के ट्वीट को आगे बढ़ाते हुए खुद को ‘लिबरल देशभक्त’ और ‘शांति’ का पैरोकार बताया। कहा कि अपने देश को उन लोगों से ज्यादा प्यार करती हैं जो ‘गरीबों की संतानों’ को अपनी ‘रक्तरंजित आकांक्षाओं’ को पूरा करने के लिए मोर्चे पर भेजना चाहते हैं।

https://twitter.com/sagarikaghose/status/1154665823107031045?ref_src=twsrc%5Etfw

कई लोगों ने सागरिका की इस टिप्पणी पर कड़ा एतराज जताया। पहला तो यह कि सेना में केवल गरीब ही नहीं जाते। दूसरा, भारतीय सेना का युद्धक अभियान धनाढ्यों और कुलीनों की रक्तरंजित आकांक्षाओं का नतीजा नहीं है। तीसरा, पाकिस्तान जैसे आतंकी राष्ट्र की मुरीद उन जैसी ‘शांतिदूत’ का खुद को उन लोगों से ज्यादा देशभक्त बताना जो मुॅंहतोड़ जवाब देने की बात करते हैं।

सागरिका की टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताने वालों में वतन के लिए मर मिटने की शपथ लेने वाले मेजर नवदीप सिंह भी हैं। वे पेशे से वकील हैं।

सागरिका को जवाब देते हुए मेजर सिंह ने कहा कि वे भी लिबरल और शांति के पैरोकार हैं। लेकिन, वर्दी पहनने वाले गरीबों की संतान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना अपने नेता की रक्तरंजित आकांक्षाओं को पूरा करने वाली ‘मिलिशिया’ (नौसिखिया, नागरिक सेना) नहीं है, बल्कि भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए लोकतांत्रिक संविधान के तहत काम करने वाली ईकाई है।

https://twitter.com/SinghNavdeep/status/1154922291655954432?ref_src=twsrc%5Etfw

लेकिन सागरिका घोष जैसे लोग मानते हैं कि वे सेना के बारे में उन लोगों से ज्यादा जानती हैं, जिन्होंने वतन के लिए मर-मिटने की कसम खाई है। इसलिए, मेजर सिंह पर पलटवार करते हुए उन्होंने कहा कि वातानूकुलित कमरे में बैठे राजनेताओं के इशारे पर लड़ने वाले ज्यादातर जवान गरीबों की संतान हैं। जवाब में मेजर सिंह ने कहा कि इस तर्क से तो निचले ग्रेड के सभी सरकारी कर्मचारी और यहॉं तक कि प्राइवेट सेक्टर के लोग भी गरीब परिवारों से हैं। इसलिए, केवल सेना पर सवाल उठाने का कोई औचित्य नहीं है।

https://twitter.com/SinghNavdeep/status/1155036825196482560?ref_src=twsrc%5Etfw

इसके बाद जब सागरिका घोष के पास तर्क खत्म हो गए तो वह बदतमीज़ी पर उतर आईं। उन्होंने मेजर सिंह से सैन्य मसलों पर बहस करते हुए उन्हें ही ‘मूर्ख’ कह डाला। इस पर अमूमन कोई भी आपा खो बैठता। लेकिन मेजर सिंह ने इसके बाद भी शालीनता बरकरार रखते हुए सागरिका की भाषा का विरोध किया।

https://twitter.com/SinghNavdeep/status/1155054672639479809?ref_src=twsrc%5Etfw

गौर करने की बात है कि जिस व्यक्ति को सागरिका ने युद्ध के बारे में बहस करते हुए मूर्ख कहा, वे न केवल सेना के सर्वाधिक सम्मानित वालंटियर्स में से हैं, बल्कि सेना की कई प्रशस्तियाँ भी पा चुके हैं। इनमें से कई तो ऐसे सैन्य अभियानों के लिए है, जिनकी जानकारी तक सार्वजनिक नहीं की जा सकती। उनको मिली प्रशस्तियों की सूची कुछ ऐसे है:

  • जनरल अफ़सर कमांडिंग-इन-चीफ़ (GOC-in-C) की प्रशस्ति: 2004 (अज्ञात/गुप्त घटना के लिए)
  • सेना प्रमुख की प्रशस्ति: (स्वतंत्रता दिवस, 2005)
  • GOC-in-C की प्रशस्ति: (स्वतंत्रता दिवस, 2005)
  • वायु सेना द्वारा AOC-in-C (एयर अफ़सर कमांडिंग-इन-चीफ़) की प्रशस्ति: (गणतंत्र दिवस, 2006)
  • GOC-in-C की प्रशस्ति: (गणतंत्र दिवस, 2007)
  • सेना प्रमुख की प्रशस्ति: (सेना दिवस, 2008)
  • सातवीं प्रशस्ति: प्रकृति और तारीख अज्ञात
  • सेना प्रमुख की प्रशस्ति: (सेना दिवस, 2010)

अब अगर सागरिका घोष की ‘उपलब्धियों’ की बात करें तो अपने पिताजी के ओहदे पर कुलाँचे भरते कैरियर में प्रोपगंडा फ़ैलाने के अलावा कुछ और सोच पाना मुश्किल है। जंग के बिना शांति नहीं होती। सागरिका जैसे शैम्पेन लिबरल शांति के भ्रम में इसीलिए रह पाते हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान के सैनिक पाकिस्तानी सैनिकों और जिहादियों के हाथों अपनी जानें गँवा कर उनके जैसों और जिहादियों के बीच खड़े रहते हैं। शांति को किसी ‘अधिकार’ की तरह for-granted लेने वाले सागरिका जैसे लिबरलों के लिए इसका दाम मेजर सिंह जैसे वीर ही चुकाते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया