राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने नया फरमान जारी करते हुए सभी सरकारी दस्तावेजों से एकात्म मानवतावाद के पुरोधा पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम हटाने का आदेश जारी किया है। सरकार ने ये आदेश सभी सरकारी डिपार्टमेंट, कारपोरेशन और एजेंसियों को ये आदेश जारी किया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो सभी 73 सरकारी विभागों में ये आदेश लागू होगा। ये आदेश राज्य की नवगठित सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग के चार दिन बाद आया है। बता दें कि चार दिन पहले हुए कैबिनेट मीटिंग में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल ने ही अपनी पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के कई फैसलों को भी पलट दिया है।
राज्य सरकार ने आदेश जारी करते हुए कहा कि सभी सरकारी लैटरपैड से स्वर्गीय उपाध्याय की फोटो वाले लोगो हटा दिए जाएँ। गौरतलब है कि दिसम्बर 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने यह निर्णय लिया था कि सभी सरकारी लैटरपेड पर पंडित उपाध्याय की फोटो वाला लोगो इस्तेमाल किया जायेगा। उस आदेश में कहा गया था;
“पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सही आकार की एक तस्वीर पहले से मौजूद लैटरपेड में लगाईं जाये और भविष्य में छपने वाले लैटरपेड में इसे अनिवार्य रूप से छपवाया जाये।”
अब ताजा आदेश के बाद वसुंधरा सरकार का ये फैसला पलट दिया गया है। इसके निर्णय के पीछे कारण बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश और समाज के लिए कोई भी ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया था जिस से उनकी फोटो को अशोक स्तम्भ के साथ स्थान दिया जाये। साथ ही सरकार ने सभी दस्तावेजों पर उनकी फोटो की जगह राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह इस्तेमाल करने का आदेश दिया। इसके अलावे ताजा कैबिनेट बैठक में पंचायती चुनावों में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता सम्बन्धी बंदिश भी खत्म करने का निर्णय लिया गया।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और जन संघ के संस्थापकों में से एक थे। भाजपा उन्हें अपना आदर्श पुरुष मानती है और केंद्र सरकार की कई योजनायें उनके नाम पर चल रही है। फरवरी 1968 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी। गांधीजी के तीन प्रमुख विचारों- स्वदेशी, स्वराज्य और सर्वोदय को आगे ले जाने वाले पंडित उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे थे।