मीडिया हलचल

बरखा दत्त, शेहला रशीद, मनीष सिसोदिया, क्विंट आदि मीडिया गिरोह के नए झूठ और नैरेटिव

कई वामपंथी अजेंडाबाज़ और पत्रकारों का समुदाय विशेष पुलवामा आतंकी हमले के बाद नए नैरेटिव लाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है जहाँ ऐसा लगे कि ये लड़ाई कश्मीरी बनाम…

आतंकियों को मानवीय बनाने की कोशिश करने वालो, बेहयाई थोड़ी कम कर लो

ऐसी हर बेहयाई के केन्द्र में ये यूजूअल सस्पैक्ट्स आते हैं, भारतीय पत्रकारिता के समुदाय विशेष, उन्हें अलग एंगल चाहिए कि बाकी लोग जवानों के परिवार से मिल रहे हैं,…

रवीश जी, आर्टिकल ट्रान्सलेट करने के बाद भांडाफोड़ होने पर लेख क्यों नहीं लिखते?

अब यही एन राम, यही हिन्दू और यही रवीश कुमार हर दिन ऐसे कारनामे कर रहे हैं कि मुझे कोई कल को पूछे कि पत्रकारिता में क्या नहीं करना चाहिए…

फ़ेक न्यूज़ का भस्मासुर अब नियंत्रण से बाहर हो चुका है

इंडिया टुडे जैसे प्रकाशनों से शुरू हुई ये व्यवस्था प्रचलित अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आई। अब तो इसमें “द हिन्दू”, जनसत्ता और “इंडियन एक्सप्रेस” जैसे तथाकथित विचारधारा वाले अखबार…

परमादरणीय रवीश कुमार! अपना ‘कारवाँ’ रोक दीजिए, आपको हिंदी पत्रकारिता का वास्ता

अपने पिछले तमाम एजेंडों में मोदी सरकार और उससे सम्बंधित पदाधिकारियों को नीचा दिखाने और अपमानित करने के तमाम नाकाम प्रयासों के बाद रवीश कुमार एक बार फिर से एक…

हेलो Quint, शरीरिक बीमारी तो ठीक हो सकती है, मानसिक बीमारी का क्या करें?

लोकतंत्र और FOE का मतलब वो लिबरल क्या जाने जो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी के मुखिया के लिए मौत माँगता हो। स्वाइन फ़्लू के सात हज़ार केस आ…

‘द वायर’, NDTV किंकर्तव्यविमूढ़ हैं मोदी राज में, महँगाई बढ़े तब संकट, घटे तब संकट!

महँगाई घटने की ख़बर सकारात्मक है। लेकिन कुछ मीडिया पंडित (या मौलवी, जैसी आपकी श्रद्धा) इसे अब किसानों पर संकट के तौर पर देख रहे हैं।

गुप्ता जी का नया धमाका: सुप्रीम कोर्ट के जज ‘दि प्रिंट’ के रिपोर्ट को पढ़कर फ़ैसला लेते हैं!

दि प्रिंट को लगता है कि जस्टिस सीकरी मुख्यधारा के चैनल व अख़बारों को देखना-पढ़ना छोड़कर आजकल सिर्फ दि प्रिंट को पढ़ रहे हैं।