हेलो Quint, शरीरिक बीमारी तो ठीक हो सकती है, मानसिक बीमारी का क्या करें?

शारीरिक बीमारियों के तो कई इलाज़ हैं लेकिन ऐसी मानसिक बीमारी के लिए क्या किया जाए?

‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ या फिर Freedom Of Expression (FOE) एक ऐसा अस्त्र बन गया है, जिसका इस्तेमाल कश्मीर के अलगाववादी कर रहे हैं, वर्जिन लड़कियों को सीलबंद बोतल बताने वाले कर रहे हैं, भारत के टुकड़े होने का नारा लगाने वाले कर रहे हैं और हिन्दू देवी-देवताओं पर अश्लील फ़िल्म बनाने वाले कर रहे हैं। इस ज़मात ने इसे एक ऐसे हथियार के तौर पर प्रयोग करना सीख लिया है जिस से वो अपने साथ-साथ अपने देश का भी नुकसान कर रहे हैं। अब इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने किसी के मरने की दुआ करने को भी FOE से जोड़ा है।

इस गैंग की असंवेदनशीलता और मानसिक बीमारी के बारे में जानना हो तो उन्होंने कई बार इसे प्रदर्शित किया है। अगर हम उन सब की बात करने लगें तो ये ‘शेष सहस मुख सकहि न गाई’ वाली कहानी हो जाएगी, इसीलिए हमारा फ़ोकस यहाँ ताजा मानसिक रोगी स्तुति मिश्रा पर ही होगा।

The Quint की पत्रकार स्तुति मिश्रा ने अगर भाजपाध्यक्ष अमित शाह का मज़ाक बनाया होता तो शायद चल जाता। अगर उन्होंने अमित शाह की राजनीति की आलोचना की होती तो वह भी स्वीकार्य था। लेकिन उन्होंने अमित शाह की बीमारी का सिर्फ़ मजाक ही नहीं बनाया, अपितु उनके मरने की दुआ भी माँगी है। इस से पहले कि हम FOE के इन तथाकथित ठेकेदारों की मानसिक बीमारी का विश्लेषण करें, आइए एक नज़र पूरे घटनाक्रम पर डालते हैं और समझते हैं कि आख़िर हुआ क्या?

बुधवार (जनवरी 16, 2019) को अमित शाह ने एक ट्वीट के माध्यम से अपनी बीमारी की जानकारी दी। भाजपा अध्यक्ष अभी स्वाइन फ़्लू से जूझ रहे हैं और AIIMS में उनका उपचार चल रहा है। उन्होंने अपने ट्वीट में लोगों से प्रेम और शुभकामनाओं की अपेक्षा करते हुए ईश्वर को भी याद किया।

https://twitter.com/AmitShah/status/1085570426934358023?ref_src=twsrc%5Etfw

इस सरल और सौम्य भाषा पर भी जो ज़हर की उलटी करे- वो लिबरल। असंवेदनशीलता की सारी हदें पार करते हुए जनता द्वारा चुने गए राजनेता के मरने की कामना करे- वो लिबरल। वैचारिक मतभेद के नाम पर राष्ट्रद्रोह पर उतर आए- वो लिबरल। और इसी लिबरलपना का नया मानदंड स्थापित किया है The Quint की पत्रकार स्तुति मिश्रा ने। उन्होंने अमित शाह की बीमारी पर चुटकी लेते हुए कहा:

लोग स्वाइन फ़्लू होने से मर जाते हैं, है ना?

The Quint के पत्रकार का असंवेदनशील ट्वीट

ये सवाल नहीं है। ये कटाक्ष भी नहीं है। ये मज़ाक तो निश्चित ही नहीं है। ये मानसिक असंतुलन की निशानी है। ये एक ऐसी बीमारी की निशानी है जिसका उपचार किसी अस्पताल या डॉक्टर के पास नही है। स्तुति मिश्रा महिला हैं, पत्रकार हैं, ट्विटर पर उनके हज़ारों फॉलोवर्स हैं- इसका अर्थ ये हुआ कि सार्वजनिक तौर पर उनसे एक ऐसे व्यवहार की अपेक्षा की जाती है जिस से दूसरे भी कुछ सीख सकें। लेकिन उन्होंने एक बीमारी को लेकर दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष के मरने की कामना की। क्या स्तुति मिश्रा और उनके गैंग के लोग लोकतंत्र का अर्थ भी समझते हैं?

क़रीब नौ करोड़ सदस्यों वाली पार्टी का जो मुखिया है- उसका सम्मान करना है लोकतंत्र। अपने विचारों को दूसरों पर जबरदस्ती थोपने की बजाए अपने राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंदियों के विचारों का सम्मान करना है लोकतंत्र। जिसने सत्ताधारी पार्टी को वोट भी न दिया हो उसके भी भलाई के लिए काम करना है लोकतंत्र। लेकिन स्तुति और उनके गैंग को लोकतंत्र की समझ कहाँ? अरे, कम से कम अमित शाह की मरने की दुआ कर ही रहीं हैं तो अपने घर में करें, अपने ख़ुदा से करें। सार्वजनिक तौर पर अपनी घिनौनी सोच, बीमार मानसिकता और घोर असंवेदनशीलता का प्रदर्शन करने से मिलता क्या है इन्हें? पब्लिसिटी?

अगर इस गैंग को पब्लिसिटी ही पानी है तो उनसे अच्छे तो ओम प्रकाश मिश्रा और ढिनचक पूजा हैं जिन्होंने उलटे-सीधे गाने गा कर करोड़ों व्यूज़ बटोरें और पब्लिसिटी पाई लेकिन स्तुति की तरह किसी बीमारी का मज़ाक नहीं उड़ाया, किसी के मरने की कामना नहीं की। कल ही एक ख़बर आई थी जिस में कहा गया था कि अकेले राजस्थान में इस साल स्वाइन फ़्लू के हजार से अधिक केस आ चुके हैं, क्या स्तुति तब भी यही सोचेंगी कि स्वाइन फ़्लू से तो लोग मर जाते हैं न? तो फिर क्या राजस्थान के हज़ार लोग मर जाएँ स्तुति और उनके गैंग को खुश करने के लिए?

पूरे भारत में स्वाइन फ़्लू के सात हज़ार के क़रीब केस आ चुके हैं। क्या स्तुति की क्षुधा तब बुझेगी जब सारे मारे जाएँ? सात हजार मौतों से स्तुति की भूख-प्यास शांत होगी या उनकी मानसिक रोग में सुधार आएगा? उनका मानना है कि स्वाइन फ़्लू में लोगों को मरना ही चाहिए, तो क्या कभी उनके अपने परिवार में किसी को ये बीमारी हो जाए (हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ऐसा कभी न हो), तो भी क्या स्तुति तब भी यही सोचेंगी कि स्वाइन फ़्लू से तो लोग मर जाते हैं न?

बात फिर रह-सह कर वहीं आ जाती है- अमित शाह की बीमारी ठीक हो जाएगी क्योंकि उनकी पार्टी के करोड़ों लोगों के साथ-साथ देश के अन्य लोगों की दुआएँ भी उनके साथ है, सिवाए स्तुति गैंग के मानसिक रोगियों के। जमानत पर बाहर सोनिया गाँधी और भ्रष्टाचार की सजा भुगत रहे लालू की भी अच्छी स्वास्थ्य की कामना करते हुए, हम भारत सरकार से यह अनुरोध करेंगे कि शारीरिक रोगियों के साथ-साथ स्तुति जैसे मानसिक रोगियों के लिए भी कोई अस्पताल खोला जाए ताकि उनका सही उपचार हो सके। न हो सके तो कम से कम CIP, काँके (रांची) में ही इनके लिए एक अलग सेल की व्यवस्था की जाए।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.