‘मुस्लिम लड़की टॉपर… फिर भी नहीं दिया उसे पुरस्कार-सम्मान’: गुजरात के स्कूल में मजहबी भेदभाव की मीडिया कहानी – जानें छिपाया गया सच

मुस्लिम टॉपर लड़की से मजहबी भेदभाव के पीछे का सच कुछ और

पिछले कुछ दिनों से एक मुद्दा खबरों और सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैला। इसमें दावा किया गया कि गुजरात के मेहसाणा जिले के खेरालु के लुनवा गाँव के एक सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली छात्रा को सिर्फ इसलिए सम्मानित नहीं किया गया क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय से आती है। दावा यह भी किया गया कि पहली रैंक से पास होने वाली मुस्लिम छात्रा का हक दूसरी रैंक से पास होने वाली छात्रा को दे दिया गया।

इस मामले में छात्रा और उसके पिता ने मीडिया में सीधा स्कूल पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाया। तब मीडिया और लेफ्टलिबरल गैंग सोशल मीडिया पर ऐसे टूट पड़े, जैसे उन्हें उनकी पसंद का हॉट केक मिल गया हो। बिना पर्याप्त जानकारी के ऐसे लोगों ने पूरे सोशल मीडिया पर इस खबर को धड़ाधड़ फैलाना शुरू कर दिया। 

मीडिया चैनल ज़ी न्यूज ने “स्कूल में नफरत: प्रथम स्थान के बजाय नंबर 2 छात्र को सम्मानित किया” शीर्षक के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि स्कूल में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान, 2022 में कक्षा 10 उत्तीर्ण करने वालों को सम्मानित किया गया। लेकिन नंबर एक को बाईपास कर उपविजेता यानि दूसरे नंबर की छात्रा के नाम की घोषणा पहले की गई। जबकि वहाँ पर नंबर वन स्थान पर आने वाली अर्नाज़ बानो (Arnaz Bano) स्कूल में मौजूद थीं। सभी के सामने उसका सम्मान न होने पर वह रो पड़ीं और घर जाकर अपने अब्बू को सारी सच्चाई बता दी।

छात्रा अर्नाज़ बानो (Arnaz Bano) के अब्बू ने मीडिया से बात करते हुए आरोप लगाया:

”मेरी बेटी का नाम इसलिए लिस्ट से काट दिया गया क्योंकि वह मुस्लिम है और दूसरे स्थान पर रहने वाली छात्रा को सम्मानित किया गया है। अल्पसंख्यक होने के नाते हमारे साथ अन्याय हुआ है।”

TheWire, क्विंट, मकतूब मीडिया, सियासत डेली, मिल्लत टाइम्स जैसे वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ने इस फर्जी खबर को पब्लिश कर खूह फैलाया।

यूट्यूब चैनलों पर भी ऐसे ही दावे

मुख्यधारा मीडिया में रिपोर्ट प्रसारित होने के बाद कई यूट्यूब चैनलों ने भी ऐसे ही दावे किए। एक गुजराती यूट्यूब चैनल ‘JAMAWAT’ ने भी इस मुद्दे को कवर किया। उसने वीडियो के टाइटल में लिखा, “10वीं क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की पहला नंबर पर आई, लेकिन लड़की मुस्लिम थी इसलिए इनाम नहीं दिया गया! यह कैसी व्यवस्था है?”

चैनल चलाने वाली पत्रकार देवांशी जोशी ने भी वीडियो में इसी दावे को आगे बढ़ाया कि छात्रा के साथ भेदभाव किया गया है। साथ ही वीडियो में उन्होंने पूछा, ”हम देश में एक लड़की के खिलाफ नफरत और भेदभाव का माहौल बनाने के लिए क्या कर रहे हैं क्योंकि वह मुस्लिम है?” साथ ही वह सामाजिक व्यवस्था पर भी खास टिप्पणी करती नजर आती हैं। 

सोशल मीडिया पर भी फैला झूठ

सोशल मीडिया में ऐसी खबरों और यूट्यूब चैनलों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि मुस्लिम छात्रा को उसके मजहब के आधार पर पुरस्कार नहीं दिया गया। ऐसे कई पोस्ट फेसबुक और ट्विटर (वर्तमान में एक्स) जैसे प्लेटफॉर्म पर देखे गए। ट्विटर पर कुछ वामपंथी और मुस्लिम यूजर्स ने ये दावे किए और कहा कि छात्रा को सिर्फ इसलिए सम्मानित नहीं किया गया क्योंकि वह मुस्लिम थी। इसकी आड़ में ही उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ के नारे के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर भी निशाना साधा। 

दूसरी ओर, फेसबुक पर कुछ यूजर्स ने उसी गुजराती यूट्यूब चैनल का वीडियो भी शेयर किया और इस दावे को हवा दी कि छात्रा के साथ भेदभाव किया गया और उसे सम्मान नहीं दिया गया क्योंकि वह मुस्लिम थी। 

फेसबुक पर शेयर की जा रही पोस्ट का स्क्रीनशॉट

वास्तविकता क्या है?

ऑपइंडिया की गुजराती टीम ने यह जानने की कोशिश की कि इस पूरे घटनाक्रम में सिक्के का दूसरा पहलू क्या है? स्कूल से बात करने पर सच सामने आ ही गया। स्कूल से जुड़े सूत्रों ने कहा, ”इस पूरे मामले को गलत दिशा में ले जाया जा रहा है। इसमें धार्मिक भेदभाव जैसी कोई बात ही नहीं है। दरअसल, यह कोई बड़ा आधिकारिक आयोजन नहीं था, इस कार्यक्रम को स्कूल के शिक्षकों ने अपने-अपने तरीके से आयोजित किया था। इस कार्यक्रम के आयोजन में शिक्षकों का उद्देश्य स्कूल के छात्रों को प्रेरित करना और आगामी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उन्हें मोटिवेशन देना था।”

स्कूल के शिक्षकों ने अपने स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन किया, तो मुस्लिम छात्रा को सम्मानित क्यों नहीं किया गया? – जब स्कूल के सूत्रों से इस सवाल का जवाब माँगा गया तो पता चला कि दरअसल, छात्रा ने पिछले साल दसवीं पास किया था। आगे की पढ़ाई के लिए उसे दूसरे स्कूल में जाना था। जिस स्कूल की बात हो रही है, वहाँ इस वर्ष उसका एडमिशन ही नहीं है। जबकि कार्यक्रम में केवल स्कूल जाने वाले छात्रों को प्रोत्साहित किया गया।

आगे बातचीत करने पर यह भी पता चला कि स्कूल हर साल गणतंत्र दिवस पर सम्मान समारोह आयोजित करता है। इस साल गणतंत्र दिवस पर सम्मान समारोह में इस मुस्लिम छात्रा अर्नाज़ बानो (Arnaz Bano) को भी सम्मानित किया जाएगा।

स्कूल से जुड़े सूत्रों ने यह भी बताया कि लुनवा गाँव की अधिकांश आबादी मुस्लिम है और गाँव के कुछ स्थानीय मुस्लिमों का भी मानना ​​है कि इस घटना में कोई धार्मिक भेदभाव नहीं है। छात्रा और उसके अभिभावक की ओर से ऐसे दावे क्यों किए जा रहे हैं, यह अभी भी लोगों की समझ से परे है। यह भी पता चला है कि घटना के संबंध में हकीकत सामने लाने के लिए गाँव के प्रमुख लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही स्कूल का दौरा करेगा।

गलतफहमी के कारण ऐसा हुआ

स्कूल के प्रिंसिपल ने भी ऑपइंडिया से बातचीत के दौरान इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि जिस छात्रा की बात हो रही है, वह अभी वर्तमान सत्र में स्कूल में नहीं पढ़ रही थी और कार्यक्रम केवल जूनियर स्तर के स्कूली छात्रों के लिए था। इस छात्रा को 26 जनवरी को आयोजित समारोह में सम्मानित किया जाएगा। गलतफहमी के कारण छात्रा के माता-पिता को समस्या हुई है। 

दरअसल, यह कार्यक्रम बहुत ही छोटे पैमाने पर स्कूल में आयोजित किया गया था। इसमें केवल स्कूली विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया। परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों को पुरस्कार वितरित करने के लिए हर साल 26 जनवरी को एक आधिकारिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें इस छात्रा को भी सम्मानित किया जाएगा।

इस फेक खबर का फैक्ट चेक गुजराती ऑपइंडिया के साथी क्रुणालसिंह राजपूत ने किया है।

Krunalsinh Rajput: Journalist, Poet, And Budding Writer, Who Always Looking Forward To The Spirit Of Nation First And The Glorious History Of The Country And a Bright Future.