NIA द्वारा पकड़े आतंकी 25 किलो ‘मसाले’ से चिकन मैरिनेट करने वाले थे

NIA द्वारा रेड में ISIS आतंकियों के ठिकानों से ज़ब्त हथियार और बम बनाने के सामान

माओ की नाजायज़ वामपंथी कामभक्त औलादों को यूँ ही गाली नहीं पड़ती है, ये मोदी-विरोध में इतना गिर चुके हैं कि कल को कोई कह दे कि बच्चे अपने माँ-बाप की पैदाइश होते हैं, तो ये कहने लगेंगे कि ‘नहीं, हम तो माओ के प्रीजर्व्ड सेमेन से जन्मे हैं’।

NIA की टीम ने ISIS के कुछ आतंकी पकड़े और उनसे बरामद की गई वस्तुओं को पब्लिक में दिखाया। उसमें, यूँ तो वैसे भी हथियार थे ही, लेकिन बने-बनाए बम या शायद न्यूक्लियर मैटेरियल नहीं मिलने से इन लम्पटों में खासा रोष है। रोष इसलिए कि कट्टे, रॉकेट लॉन्चर, और 25 किलो बारूद के साथ सौ से ज़्यादा अलार्म क्लॉक और सिम कार्ड तथा फोन मिले।

ज़ाहिर तौर पर इन सब चीजों से सब्जी बनाई जाती है, और अलार्म क्लॉक का प्रयोग गरीब बच्चों को पढ़ाई के लिए जल्दी जगाने के लिए किया जाता है। वामपंथी पत्रकार सब परेशान हो गए कि विद्यार्थियों को पकड़ लिया, वो तो रसायन विज्ञान का प्रोजेक्ट बना रहे थे। इन बुद्धिजीवियों ने सुतली बम पर अपना फ़ोकस लगातार बनाए रखा जैसे कि आतंकी सुतली बम नए साल का स्वागत करने के लिए रखे हुए थे।

एक टर्म आपलोग हमेशा सुनते होंगे ‘IED’, जिसका शब्दशः मतलब है: जुगाड़ से बनाया गया बम। इसमें आप डायनामाइट या टीएनटी जैसे परम्परागत विस्फोटक का प्रयोग नहीं करते, बल्कि बारूद बनाने का रॉ मैटेरियल ले आते हैं, और उसे अलग-अलग ज़रूरतों के अनुसार प्रयोग करते हैं। ये रॉ मेटैरियल कहीं से भी लिया जा सकता है।

सुतली बम से भी बारूद मिलता है, और बाकी बारूद का कैमिकल पहले से निकाल कर रखा हुआ था। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अगर आप एक बड़ी मात्रा में बारूद ख़रीदते हैं, या परम्परागत विस्फोटक सामान ख़रीदते हैं तो आपके पकड़े जाने की संभावना बढ़ जाती है।

लेकिन वामपंथी पत्रकार, और मोदी-विरोधी गिरोह के दोमुँहे फेसबुकिया विश्लेषक, सारी चीज़ों को दरकिनार करते हुए कि आखिर सौ से ज़्यादा अलार्म घड़ियों और सिम कार्ड का ये लोग अचार ही तो डालने वाले थे, ये लिखते पाए गए कि देखो मोदी सरकार ने कट्टे चलाने वाले आतंकी पकड़े हैं।

ये लोग इतने गिरे हुए हैं कि पुल बनने पर नाव चलाने वालों की आजीविका की बात करते हैं, और पुल न बने तो केले के तनों पर नदी पार करके स्कूल जाते बच्चों की तस्वीर लगाकर सरकार से सवाल पूछते हैं। इसलिए, इन गंदी नाली के कीड़ों को वही सड़ाँध वाले दिन चाहिए जब हर त्योहार पर बम फटा करते थे।

ये जो फ़ेसबुकिया स्मार्टी पैन्ट्स हैं, और जो ट्विटर पर अँगूठों से विष्ठा करते रहते हैं, वो एके सैंतालिस भी देख लेंगे तो कहेंगे कि ये तो लोहे के कल-पुर्ज़े हैं, भारत के जेम्स बॉन्ड ने लोहा पकड़ा है! इन्होंने बिलकुल वही किया है। 25 किलो पोटेशियम नाइट्रेट, अमोनिया नाइट्रेट, सल्फ़र आदि तो चिकन को मैरिनेट करने के लिए रखा था आतंकियों ने।

अपने ही देश की सुरक्षा एजेंसियों और क़ाबिल अफ़सरों को इस तरह से नीचा दिखाना इनका टी-टाइम टाइमपास है। वामपंथी चिरकुट पत्रकार गिरोह लगातार ये देख रहा है कि अगर ये सरकार रही तो आतंकी घटनाएँ तो बंद होंगी ही, नक्सलियों का भी शिकार चलता रहेगा। यही कारण है कि प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश रचनेवाला व्यक्ति कभी एक्टिविस्ट हो जाता है, तो कभी कवि कहलाता है।

इनकी छटपटाहट देखते ही बनती है जब एक के बाद एक आतंकी, नक्सली आतंकवादी और आतंकियों के हिमायती लगातार पकड़े जा रहे हैं, और रात के दो बजे भी सुप्रीम कोर्ट खुलवाने के बावजूद वो तथाकथित एक्टिविस्ट जेल में बंद किए जा रहे हैं।

यही कारण है कि आतंकी हमला हो जाने पर यही माओवंशी ‘कड़ी निंदा’ का मजाक बनाते हैं जैसे कि विश्व के किसी भी जगह के राजनेता ने ऐसी घटनाओं पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ‘कड़ी निंदा’ और ‘बदला लेंगे’ के अलावा कुछ और कहा हो। आखिर और क्या कहा जा सकता है प्रेस से? जहाँ तक करने की बात है, तो वो तो राजनाथ सिंह ने कितना किया है, वो सबके सामने है।

कोई इतने विस्फोटक लेकर पकड़ा जाता है तो वो इसका मजाक बनाते हैं, और अगर कल को राजनाथ सिंह प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एक रॉकेट लॉन्चर लेकर पहुँच जाएँ कि ‘इसी से हम आतंकियों का ख़ात्मा करेंगे’ तो यही चिरकुट कहेंगे कि ‘अरे गृहमंत्री पद की गरिमा बनाए रखिए!’

कुल मिलाकर बात बस इतनी है कि जब भी आतंकी पकड़े जाते हैं, इन बेचारों के गुर्दों में जलन होती है। क्योंकि कहीं न कहीं ऐसे लोग, जो भारत को तोड़ना चाहते हैं, यहाँ की जनता में डर भरना चाहते हैं, हनुमान के स्टिकर को धार्मिक आतंक कहते हैं, गाय की रक्षा करनेवालों को आतंकवादी कहते हैं, बम पकड़े जाने पर उसकी क्वालिटी और क्वांटिटी पर डिबेट करते हैं, ये मानते हैं कि पुराना सिस्टम वापस लौट आए जहाँ से इनकी फ़ंडिंग होती थी, और ऑलिव ब्रान्च धरा दिया जाता था।

अब इनको बुद्धिजीवी बनने के पैसे नहीं मिलते, इनके एनजीओ पर ताले लग रहे हैं जो कि कन्वर्जन से लेकर आतंकी गतिविधियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल रहे हों, तो ज़ाहिर है कि अंदर का कफ ऐसे ही दुर्गंध फेंकता मवाद बनकर बाहर आएगा। ये इनकी सोच और लिखे हुए पोस्ट में छन-छनकर बाहर आता रहा है, आता रहेगा।

लेकिन अब बात यह है कि इनके गुर्दे छीलने के लिए और पिछले कुछ सालों में इनकी नंगई को एक्सपोज करनेवाले बहुत आ गए हैं। अब इनको पोस्ट पर इनको गाली ही पड़ती है। जो इनकी बड़ाई करते हैं, उनके नामों पर सरसरी निगाह डालने से पता चल जाता है कि इनकी विचारधारा कोई भी पंथ नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर आतंकियों को प्रोत्साहन देना है।

ये जो सारे आतंकवादी पकड़े गए हैं, सब के सब समुदाय विशेष के हैं, लेकिन इनका फ़ोकस ‘इस्लामी आतंक’ से कहीं दूर, ‘ये तो सुतली बम है’ पर है। अभी ये इस्लामी आतंक नहीं है क्योंकि शायद आईसिस के झंडे पर ‘अल्लाहु अकबर’ दूसरी भाषा में होने के कारण ये पहचान नहीं पा रहे। हनुमान तो खैर हर जगह दिखते हैं, तो उनका पोस्टर लगाना हिन्दू आतंक है। तो ऐसा है लम्पटो, सुतली बम के सिरे जोड़ लो, आग लगाकर बैठ जाओ, उसी से तुम्हारी जलन मिटेगी क्योंकि न रहेगा वो, न होगी जलन।

अजीत भारती: पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी