ESPN की क्रांति, धार्मिक-जातिगत पहचान खत्म: दिल्ली कैपिटल्स और राजस्थान रॉयल्स के मैच की कॉमेंट्री में रिकॉर्ड

ESPN ने उठाया लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए क्रांतिकारी कदम

15 अप्रैल को ESPN क्रिकइन्फो ने निर्णय लिया कि अब उसके द्वारा क्रिकेट कवरेज और मैच कॉमेंट्री में ‘लैंगिक असमानता’ को बढ़ावा देने वाले शब्दों का उपयोग नहीं किया जाएगा। उदाहरण के लिए ESPN के द्वारा ‘बैट्समैन’ के स्थान पर ‘बैटर’ और ‘मैन ऑफ द मैच’ के स्थान पर ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ जैसे शब्दों का उपयोग होगा।

ESPN के इस ‘क्रांतिकारी’ निर्णय के पीछे उद्देश्य है कि क्रिकेट के क्षेत्र में भी ‘लैंगिक समानता’ स्थापित हो। ESPN क्रिकइन्फो के श्रेष्ठ शाह ने अन्य ‘संगठनों’ से यह अपील की है कि वे भी ESPN के साथ क्रांति की राह पर चल निकलें।    

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अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह निर्णय कुछ दो-चार शब्दों को बदलने तक ही सीमित रहेगा अथवा यह ‘क्रांति की आग’ पूरे क्रिकेट समाज में व्याप्त असमानतावादी भावों को जला कर राख कर देगी। ऐसे में यह अंदाजा लगाया गया कि ‘बैट्समैन’ को ‘बैटर’ करने और ‘मैन ऑफ द मैच’ को ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ करने के अतिरिक्त और क्या-क्या बदलाव संभव हैं जो ESPN इस समाज को उपहार स्वरूप दे सकता है।

दिल्ली कैपिटल्स और राजस्थान रॉयल्स के आज (15 अप्रैल 2021) के मैच के विषय में ESPN क्या बदलाव कर सकता है, इसके विषय में कुछ चर्चा की जा सकती है।

शुरुआत में ही ‘इंडियन प्रीमियर लीग’ के स्थान पर ‘ग्लोबल प्रीमियर लीग’ का उपयोग किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आईपीएल में केवल भारतीय खिलाड़ी नहीं खेलते अपितु दुनिया भर के खिलाड़ी खेलते हैं। ‘इंडियन’ शब्द एक्सट्रीम राष्ट्रवाद का परिचायक न बन जाए, इसलिए ‘इंडियन’ शब्द की जगह ‘ग्लोबल’ शब्द का उपयोग ESPN द्वारा किया जाएगा।

ESPN ‘मा फलेषु कदाचन’ पर विश्वास करता है, अतः मैच का परिणाम मायने नहीं रखता। मैच में हर कोई विजेता ही है, भले ही मैच कोई भी जीते किन्तु पॉइंट टेबल में जो भेदभाव होगा, उसके विषय में ESPN की क्या राय है, यह अभी निश्चित नहीं है!  

‘कप्तान’ के स्थान पर ‘जन-प्रतिनिधि’ का उपयोग संभव है क्योंकि ‘कप्तान’ शब्द से ‘अधिनायकवाद’ अथवा ‘स्वघोषित नायकवाद’ की बदबू आती है। ‘कप्तान’ एक ऐसा शब्द लगता है, मानो कि टीम का कप्तान ही सब कुछ है और वर्तमान सरकार की भाँति वह भी निरंकुश हो गया है।

‘टॉस’ को भी बदल दिया जाएगा और कहा जाएगा कि ‘देखते हैं, सिक्का क्या चाहता है?’ भले ही सिक्का एक निर्जीव है लेकिन उसे ऊपर उछालना सही नहीं माना जा सकता है।  

‘जन-प्रतिनिधियों’ का केवल प्रारंभिक नाम ही लिया जाएगा। जैसे ऋषभ, संजू, आजिंक्य इत्यादि। ऐसा इसलिए क्योंकि सरनेम से ‘जातिगत’ और ‘धार्मिक’ पहचान को बढ़ावा मिल सकता है। अच्छा हुआ कि गौतम गंभीर क्रिकेट से रिटायर हो गए अन्यथा उनका तो पहला नाम ही ‘ब्राह्मणवादी’ है और सनातन धर्म के एक ऋषि से जुड़ा हुआ है। ऐसे में ESPN के समक्ष एक महान संकट आ खड़ा होता।  

हालाँकि ESPN के सामने कई और मुद्दे भी हैं। जैसे ‘सिक्का क्या चाहता है’ वाली परंपरा में भी सिक्का ही उपयोग किया जाता है, जो पूंजीवाद का प्रतीक है। उस पर जो ‘जन-प्रतिनिधि’ होता है, वह यदि ‘हेड्स’ कहता है तो इसका तात्पर्य यही हुआ कि वह ‘टेल’ जो कि ‘हेड’ की तुलना में नीचे होता है, उसे नकार रहा है और ‘हेड’ का चयन करके उच्च सत्तात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है। इस पर विचार मंथन किया जा रहा है और शीघ्र ही ‘सिक्का क्या चाहता है’ परंपरा को सकुशल बिना ऊँच-नीच के सम्पूर्ण करने के लिए नए शब्दों का आविष्कार किया जाएगा। 

हालाँकि राजस्थान रॉयल्स के जन-प्रतिनिधि संजू ने सिक्के की इच्छा जानने के लिए उसे यात्रा पर भेजा किन्तु दिल्ली कैपिटल्स के जन-प्रतिनिधि ने हेड्स ही चुना। सिक्के ने भी अपनी पूंजीवादी प्रवृत्ति के अनुसार हेड्स ही चुना। इस प्रकार संजू से पहले बल्लेबाजी करने का अवसर छीन लिया गया और यह अवसर ऋषभ को ही प्राप्त हुआ।

इसके बाद आगे की कॉमेंट्री मैच शुरू के बाद प्रारंभ की जाएगी।  

Sandeep Singh: Sports, Satire, Politics, Golgappa.