व्यंग्य: गेहूँ काटते किसान को फोटो एडिट कर दिखाया बैरिकेड पर, शर्म करो गोदी मीडिया!

एनडीटीवी ने गोदी मीडिया को किया एक्सपोज

गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली की सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों के खिलाफ जो साजिश गोदी मीडिया ने रची है, उससे गोदी मीडिया ने अपने नाम को चरितार्थ कर लिया। बाकी कसर खेत में धान और गेहूँ काट रहे किसानों की तस्वीरों को फोटोशॉप के जरिए दंगा वाली जगहों पर लगा देने वाले आईटी सेल ने पूरी कर डाली।

हर 15 अगस्त और 26 जनवरी पर ‘क्या हम वास्तव में आजाद हैं?’ वाला निबंध लिखने वाले लिबरल फेसबुक स्तम्भकार किसानों के लिए नारे लिखते रह गए और गोदी मीडिया किसानों को दंगाई साबित करती रही। ऐसे में, एक NDTV ही था, जो सच्चाई को सामने रखकर तूफानों के बीच अपनी निजी सच्चाई पर अडिग रहा।

ऐसे ही एक ‘अन्नदाता’, जो अपने खेतों में गेहूँ की फसल काट रहा था, उसकी तस्वीर को बैरिकेड्स लाँघते और उजाड़ते लगा दी गई। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि चालाकी से गोदी मीडिया ने पीले रंग के गेहूँ की फसल को पीले रंग के बैरिकेड्स में बदल दिया। लेकिन NDTV हमेशा सत्य को बाहर ले आता है।

NDTV ने स्पष्ट कर दिया कि ‘किसान’ का चरित्र एक फोटोशॉप से नहीं बदला जा सकता

ऐसी ही एक तस्वीर हमारे सामने आई है, जिसमें एक पुलिसकर्मी शरबत पिलाने और लंगर खिलाने के बाद ‘अन्नदाताओं’ को धन्यवाद दे रहा है। लेकिन गोदी मीडिया को बागों में मोहब्बत नजर नहीं आई और इसे भी यह कहकर दिखाया गया कि किसान पुलिस वालों पर अत्याचार और बर्बरता कर रहे हैं।

थके हुए पुलिसकर्मी को किसानों ने शरबत पिलाया तो बदले में पुलिस ने उन्हें धन्यवाद कहा

अब इस किसान को ही देख लीजिए। महीनों की मेहनत के बाद फरसा लेकर अपनी फसल काटने जाता यह किसान उसी तरह खुश हो रहा है, जिस तरह अपने घोड़े को अपने अस्तबल में देखकर बाबा भारती खुश हुए थे। क्या इस किसान की गलती ये है कि वो भारत का पेट भरने के लिए अपनी फसल काटने निकला था और गोदी मीडिया की साजिश का शिकार हो गया? क्या अब अन्नदाता को आतंकी साबित किया जाना ही राष्ट्रवाद कहलाएगा?

एक पुलिसकर्मी को किसानों ने दिल्ली में जबरन बिठाकर उन पर फूल भी बरसाए लेकिन मीडिया को इसमें भी दंगा नजर आया।

अब इसी तस्वीर को अगर देखा जाए तो ये किसान किसी धार्मिक आयोजन में करतब कर रहे थे लेकिन गोदी मीडिया ने उनके पवित्र करतब को सड़क पर एडिट कर के दिखाया और पंजाब में चल रहे नुक्कड़ नाटक को दिल्ली पुलिस के बीच ले आए। जो दृश्य वस्तुतः मनोरंजन के लिए था, उसे चालाकी से हिंसा का बना दिया गया।

ये किसान सिर्फ अपनी कला ही नहीं दिखा रहे थे, बल्कि पुलिस वालों को गुलदस्ता भी भेंट कर रहे थे –

ट्रैक्टर पर बैठकर अपनी मस्ती में अपने खेत जोत रहे एक किसान को तो बैरिकेड्स तोड़कर चढ़ाई करते हुए इस तरह से दिखाया गया, मानो औरंगजेब अपने हाथी पर बैठकर दिल्ली पर चढ़ाई कर रहा हो। डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के तहत क्या यही होना था कि एक ट्रैक्टर से खेत जोत रहे अन्नदाता को फोटोशॉप से औरंगजेब साबित कर दिया जाए?

पूँजीवादी गोदी मीडिया एक घुड़सवार अन्नदाता से सिर्फ इस वजह से नाराज है क्योंकि वह घोड़े पर बैठकर अप्निफस्ल की रेकी कर रहा था। लेकिन सामंतशाही की यह हद है कि उसे भी दंगाई साबित किया जा रहा है। क्या यह साबित करने के लिए काफी नहीं है कि हम आज भी ब्रिटिश शासन जैसे ही किसी दौर में जी रहे हैं, जहाँ किसान घुड़सवारी नहीं कर सकता?

अपनी लाठी से पुलिसकर्मियों की पीठ पर मालिश करते हुए अन्नदाताओं को आप कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? लेकिन यहाँ भी पुलिस की पीठ की मालिश करते किसान को दंगाई बता जा रहा है।

इसा तस्वीर में किसान महिला पुलिस को बुला कर अपना ट्रैक्टर दिखा रहे थे, लेकिन हाथ में डंडा था तो बेचारों को गोदी मीडिया द्वारा गलत तरीके से दिखाया गया। अब इस देश में हाथ में कलम रखने वाले पत्रकार और हाथ में डंडा रखने वाले किसान को आतंकवादी घोषित किया जा रहा है।

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