बुद्धिजीवी की बुद्धि की भुर्जी: जब अपशब्दों के बुलबुले उठने लगें, तेल निकल कर अलग होने लगे तो…

बुद्धिजीवी का दिमाग हरा या लाल के अलावा कुछ देख-समझ नहीं पाता, अफसोस!

बुद्धिजीवी की बुद्धि का वैसे तो बहुत कुछ बनाया जा सकता है किन्तु आज हम भुर्जी बनाने की विधि देखेंगे। पहले एक बुद्धिजीवी लीजिए। सबसे पहले उसकी बुद्धिमत्ता नाप लीजिए। स्वयं को जितना ऊँचे स्तर का बुद्धिजीवी समझकर जितना अधिक मत्त हो, उसकी बुद्धि-मत्ता उतनी अधिक समझनी चाहिए। ऐसा बुद्धिजीवी भुर्जी बनाने के लिए उपयुक्त होता है।

यह आवश्यक है कि बुद्धिजीवी कम से कम राष्ट्रीय स्तर का हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर का बुद्धिजीवी मिल जाए तो बहुत बढ़िया रहता है, और न ही मिले तो कोई लोटा बुद्धिजीवी भी ले सकते हैं। लोटा अर्थात ‘लोकल टाइप’ बुद्धिजीवी कच्चे होते हैं, दिमाग छोटा और बुद्धि काफी ठोस होती है। लेकिन इसमें कुछ घुसाना कठिन होता है। इसमें ‘टीआरपी के लिए कुछ भी करेगा’ स्तर के पत्रकार, बी-ग्रेड फ़िल्मों के कलाकार और उनके फैन होते हैं। ये कब, कहाँ, किस बात पर कैसे लुढ़क जाएँ किसी को पता नहीं होता। ये लोटे में रहते हैं और लोटे को ही अथाह संसार मानते हैं और लोटे से कभी बाहर निकल ही नहीं पाते।

राष्ट्रीय स्तर के बुद्धिजीवी का दिमाग बड़ा, तर्क पिलपिले और जीभ बड़ी होती है। इनमें बड़बोले नेता, पत्रकार, वकील और लेखक-कवि आदि शामिल होते हैं। चिंता में डूबे रहना इनका प्रमुख लक्षण है। इनको लगभग हर बात की चिंता होती है और मीडिया को इनकी चिंता की बहुत चिंता होती है। ऐसे लोग, सुबह-सुबह शीशे में अपना मुँह देख लेते हैं, फिर चिंता करते है, और अगले दिन अखबार में छापते हैं – देश में बढ़ते प्रदूषण और गंदगी पर बुद्धिजीवियों ने चिंता जताई है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के बुद्धिजीवी का दिमाग और बुद्धि दोनों छोटे और पके हुए होते हैं, पर भुर्जी बनाने के लिए श्रेष्ठ होते हैं। इनमें अंग्रेजी कूट-कूट कर भरी होती है, लेकिन ‘घेरावइंग’ करने के लिए शब्द ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोष में भी नहीं ढूँढ पाते। ऑक्सफ़ोर्ड ब्रांड के छुट्टे सांड हों या टुच्चे इतिहासकार, जन्मभूमि के विवाद में जीसस को घसीटने वाले न्यायाधीश हों या नए नोट छापकर अर्थव्यवस्था को मजबूत कर देने वाले मैग्सेसे छाप पत्रकार। ये सब अंतरराष्ट्रीय स्तर के बुद्धिजीवी हैं। अपने दिमाग से बड़ी बात सोचकर फँसने की इनकी पुरानी आदत होती है।

आजकल बुद्धिजीवी जैसे दिखने वाले जीभी भी बहुतायत में पाए जाते हैं। इनके पास केवल जीभ होती है, दिमाग नहीं। क्या बोलते हैं, यह इनको भी पता नहीं होता। इनसे सावधान रहिए, इनका न दलिया बनता है न भुर्जी, इनका रायता ही बनता है।

चलिए हम भुर्जी बनाने की विधि पर वापस आते हैं। आप ऊपर बताए किसी एक बुद्धिजीवी को चुन लीजिए, यह ध्यान रहे बुद्धिजीवी की मात्रा बड़ी ई की हो, छोटी इ की मात्रा वाले बुद्धिजीवी की बुद्धि की भुर्जी नहीं बनती, दलिया बनता है।

भुर्जी बनाने के लिए पहले बुद्धिजीवी की किसी बात का एक छोर पकड़ लें। फिर उसको खींचना शुरू करें, उसे तब तक खींचें जब तक बात का बतंगड़ न बन जाए। बतंगड़ बन जाने पर उसे यथासंभव उछाल कर देखें, जब बतंगड़ के बीच बुद्धिजीवी के साथ उसके नाते-रिश्तेदार और खानदान भी उछलता दिखने लगे तब उसे एक तरफ सूखने, चटकने और सिकने के लिए रख दें। बीच बीच में एक दो ट्वीट छोड़ते हुए धीरे-धीरे बुद्धिजीवी को मद्धम आँच पर पकने दें, आप देखेंगे कि वह गर्म हो रहा है। उसकी बातों में आपको भाप उड़ती हुई साफ़ दिखने लगेगी।

हो सकता है कि वह कभी थोड़ा ज्यादा सुलग जाए और पलटकर उत्तर दे दे, तब उसे दंडवत कर आशीर्वाद माँग लें। उसके बाद उसे धीरे-धीरे सेंकते रहें। बुद्धिजीवी का धैर्य धीरे-धीरे सूखने लगेगा, उसके उत्तर अधिक रूखे होने लगेंगे। थोड़ी देर में उसकी बातों में अपशब्दों के बुलबुले उठने लगेंगे। ऐसे में बुलबुले बाहर भी उचट सकते हैं, आप चाहें तो कुछ देर के लिए ढक्कन लगा दें। जब बुलबुले फूटने बंद हो जाएँ, और बुद्धिजीवी की बुद्धि का तेल निकल कर अलग होने लगे तो आँच बढ़ा दें।

सभी मात्राओं का विशेष ध्यान रखें। मात्रा इधर-उधर होने पर आप भी जल सकते हैं। बुद्धिजीवी की बातों में जब धुआँ उठने लगे, तर्क और बात अलग-अलग दिखने लगे, कान लाल और मन काला दिखने लगे तो समझिए भुर्जी लगभग तैयार होने वाली है। जैसे ही आपको लगे कि अब आप ब्लॉक होने की कगार पर हैं, मुट्ठीभर चंद्रबिंदुओं से गार्निश कीजिए। बुद्धिजीवी के भेजे की भुर्जी तैयार है। ब्लॉक होने पर गर्मागर्म स्क्रीनशॉट के साथ पोस्ट करें।