थप्पड़ से ही डर लगता है साहेब, प्यार तो राशन कार्ड से भी मिल जाता है!

आपके नहीं लगता कि अरविंद केजरीवाल 2010 से 2018 तक काफ़ी बदल गए हैं?

ख़बर आई है कि परमसम्माननीय, भारत की राजनीति में बदलाव का बवंडर लाने वाले, युवा दिलों की धड़कन, टेलिब्रांड्स के वज़न बढ़ाने वाली दवाओं के बिफ़ोर-आफ़्टर के अघोषित ब्रांड अंबेसेडर, चेहरे पर इंक से लेकर, अंडा, टमाटर और लाल मिर्च पाउडर तक फिंकवाने वाले (ताकि आमलेट में सिर्फ प्याज का खर्चा आए), श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने बनारस की पावन नगरी से चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला दिल पर पत्थर रखकर ले लिया है।

भक्तों में इस कारण से शोक की लहर फैल गई है। और भक्तों से तात्पर्य आम आदमी कार्यकर्ताओं से है? दुःख इसलिए हो रहा है कि बनारस जाते तो माला पहनकर दो-चार थप्पड़ ही खा लेते! इस बार गाल पर मांस भी तो ज़्यादा है! इससे पहले की मुझे ‘बॉडी शेमिंग’ करनेवाला कह दिया जाए, मैं ध्यान दिलाना चाहूँगा कि गाल पर ज़्यादा मांस से मतलब यह है कि पार्टी के लिए थप्पड़ खा लेंगे तो इस पर चोट कम लगेगी।

थप्पड़ खाकर मुँह फूल जाता है लोगों का, यहाँ पहले से ही फूला हुआ है। थप्पड़ का ज़िक्र बार-बार करते हुए मैं भटककर भूल ही गया कि आख़िर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में शोक की लहर क्यों है? दिल्ली के मालिक, दिल्ली राष्ट्र के सुप्रीम लीडर, दिल्ली की तीनों सेनाओं को चीफ़ कमांडर और राष्ट्रपति श्री अरविंद केजरीवाल जी पार्टी को पूरी तरह से समर्पित व्यक्ति रहे हैं। इसमें आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को कोई संदेह नहीं है। 

ख़ासकर उन कार्यकर्ताओं को तो बिलकुल नहीं जिन पर हर ‘दुर्घटना’ के बाद भाजपा का होने का आरोप लगता है, और पता चलता है कि थप्पड़ मारने से लेकर, इंक फेंकने से लेकर, मिर्ची पाउडर फेंकने तक होते वो आम आदमी पार्टी के ही हैं। जब किसी पार्टी को यह पता चल जाए कि ट्रैफ़िक कैसे बढ़ता है, तो वो ज़ाहिर-सी बात है कि तमाम वैसे काम, बार-बार करेंगे।

थप्पड़ खाने के बाद आम आदमी पार्टी के साइट पर चंदा देने वालों की भरमार लग जाती है। आधिकारिक सूत्रों के हवाले से मैं ये कह सकता हूँ कि जब-जब केजरीवाल जी ने पार्टी की खातिर अपने चेहरे को आगे किया है, पार्टी के खाते में पैसे बढ़े हैं। आप एक थप्पड़ मारिए, लोग 85 लाख रुपया दान कर देते हैं। अब आलम यह है कि सोने का अंडा देने वाले केजरीवाल ने यह फ़ैसला ले लिया कि वो बनारस से मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव नहीं लड़ेंगे, तो उनके भक्तों में ग़मगीनी छाई हुई है।

लेकिन, मैं भी सोचता हूँ कि आदमी की अपनी तो थोड़ी-बहुत इज़्ज़त होती ही है चाहे वो आम आदमी पार्टी से ही क्यों न जुड़ा हो। आदमी घर तो जाता ही होगा। घर का गेटकीपर ही कहीं पूछ दे कि ‘सर, आजकल कोई विडियो नहीं आ रहा?’ तो आदमी को कितना बुरा फ़ील होगा। 

अब जब सरकार के लोग, विधायक आदि पार्टी फ़ंड जुटाने के लिए राशन कार्ड आदि के माध्यम से, चुनाव के टिकटों के माध्यम से पार्टी के लिए चंदा इकट्ठा कर ही रहे हों तो किसी मुख्यमंत्री का माला पहनकर ‘चट देनी मार देली खींच के तमाचा’ खाना सही थोड़े ही लगता है!

वैसे भी शास्त्रों में कहा गया है कि बुद्धिमान इन्सान वो है जो अपनी ग़लतियों से सीखता है। फ़िल्म रीव्यू किया, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला, तो वो भी छोड़ दिया आदमी ने। मोदी को सायकोपाथ कहा, सुबह उठकर ताँबे वाले लोटे से पानी पिया और ट्वीट कर बताया कि उनकी कब्जियत से लेकर उनके मुख्यमंत्री होते हुए विभूतिनारायण मिश्रा टाइप के नल्लेपन का ज़िम्मेदार मोदी है, लेकिन बाद में सीधा गरियाना बंद कर दिया। ये सब बताता है कि आदमी उम्र के साथ समझदार हो जाता है। 

माननीय केजरीवाल जी ने काफ़ी अनुनय-विनय के बाद एक पोर्टफ़ोलियो अपने पास रखा

बाहरहाल, अब पता चला है कि माननीय मुख्यमंत्री जी दिल्ली की समस्याओं पर ही ध्यान देंगे। दिल्ली की प्रमुख समस्याओं में से एक है उनका ख़ाली होना। दूसरी समस्या है उन्हीं के कुछ विधायकों का ख़ाली होना जो आए दिन किसी बुजुर्ग को थप्पड़ मार देते हैं, तो किसी का राशन कार्ड बनाने लगते हैं, कभी किसी महिला से छेड़छाड़ करते हैं, तो कभी चीफ़ सेक्रेटरी से मारपीट करते हैं। ये सब अच्छा थोड़े ही लगता है!

अब आप कहेंगे कि ये सब तो बस आरोप हैं, इससे क्या साबित हो जाता है? फिर मैं कहूँगा कि साबित कुछ हो न हो, आदमी पेपर लहराकर ये कहता है कि उसके पास 370 पन्नों का सबूत है शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ तो लोग उसे मुख्यमंत्री चुनते हैं। बाद में उसके 370 पन्ने टॉयलेट रोल के ख़त्म होने के कारण पार्टी ऑफ़िस में इस्तेमाल हो जाते हैं और शीला दीक्षित पर एक भी केस फ़ाइल नहीं हो पाता। और हद तो तब हो जाती है जब वो भाजपा के लोगों से शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ सबूत माँगने लगता है! 

ख़ैर, हमारा क्या है, हम तो चंदा भी नहीं देते और ये वाला विडियो देखकर खुश रहते हैं। आप भी देखिए:

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अजीत भारती: पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी