व्यंग्य: विकास दुबे एनकाउंटर पर बकैत कुमार की प्राइमटाइम स्क्रिप्ट हुई लीक

विकास दुबे एनकाउंटर के बाद बकैत कुमार ने बदली स्क्रिप्ट

नमस्कार, मैं बकैत कुमार! आखिर करोड़ों अल्पसंख्यकों को एनकाउंटर में मरवाने वाले योगी ने आज एक ब्राह्मण को भी मरवा ही दिया। मैंने देखा मीडिया के भी कई लोग बेतहाशा खुश हैं, जबकि मुझे लगता है एक समाज के तौर पर हम हार गए हैं।

यह एनकाउंटर कई सवाल उठाता है। यह एनकाउंटर कई बातें छुपाता भी है। अब कोई सीएए विरोधी रैलियों में मारे गए अल्पसंख्यकों को याद नहीं करेगा। अब सब बाबा की बूटी पी कर नाचेंगे कि देखो-देखो योगी ब्राह्मणों को भी नहीं छोड़ता। जबकि सत्य इसके बिलकुल ही विपरीत है।

विकास दुबे ब्राह्मण था ही नहीं। वो तो अल्पसंख्यक समुदाय का एक व्यक्ति था जिसका असली नाम था वकार दाऊद कनपुरिया। पिछले कुछ सालों में डर का माहौल कुछ ऐसा रहा कि वकार दाऊद को मजहब त्याग कर गोबर खिला कर हिंदू बनाया गया। उसे कहा गया कि यूपी में रहना है, तो योगी-योगी कहना है। साथ ही, यह भी कहा गया कि योगी-योगी तो सिर्फ़ हिन्दुओं में होता है, अतः हिन्दू बनना पड़ेगा। लेकिन गोदी मीडिया आपको ये सब नहीं बताएगा। सब मैनेज किया जा चुका है। हम एक समाज के तौर पर हार चुके हैं।

इस पूरे प्रकरण में मैं देख पा रहा हूँ अपने कमरे से कि एक साजिश रची गई, पूरी तरह से फिल्मी पटकथा बनाई गई। आप सोचिए कि जिस योगी के प्रदेश में कानून का इतना बोलबाला है, अपराधी स्वयं सरेंडर करने आते थे, उसमें आठ पुलिस वालों की हत्या हो जाती है? मैं पूछता हूँ क्या आपने वो लाशें देखी हैं? मेरा मतलब है पर्सनली देखी है जा कर?

फिर आप कैसे मान रहे हैं कि 8 पुलिस वाले सच में मरे या गोदी मीडिया में वकार दाऊद उर्फ विकास दुबे को मारने का एक कारण खोजते हुए यह खबर फैला दी गई? आप कहेंगे कि परिवार वालों के बयान हैं, तो मैं पूछूँगा कि क्या आप जानते हैं कि वही असली परिवार वाले हैं? उन्हें दो किलो गेहूँ दे कर भी तो तैयार किया जा सकता है। मीडिया वाले तो ऐसा अक्सर करते हैं। हाल ही में राजदीप ने आदिवासी बच्चियों पर जो कार्यक्रम किया था, वो तो ऐसे ही मैनेज हुआ है।

दूसरी बात, चलो मार भी दिया सच में, तो आपको नहीं लगता कि ये फिल्मी है? फिल्मों में ही तो पुलिस वाले मरते हैं। वो जाते हैं, कोई बता देता है कि आ रहे हैं, और फिर ऊपर से फायरिंग होती है, आठ लोग बलिदान हो जाते हैं। सवाल कई हैं, लेकिन ये राज भी विकास के ही साथ चला जाएगा।

मैं सोच नहीं पा रहा हूँ कि मेरे सवालों के उत्तर कौन देगा? 7 दिनों में 5 लोगों को एनकाउंटर में मार गिराया ताकि यह साबित किया जा सके कि यह सरकार ब्राह्मणों को भी नहीं छोड़ती। वैसे भी अजय सिंह बिष्ट तो क्षत्रिय हैं, ब्राह्मणों से तो बस वोट लेते हैं। ब्राह्मण लोग भी नहीं समझ पा रहे ये खेल।

जब तक वो पकड़ा नहीं गया था, मैंने स्क्रिप्ट बना ली थी कि नमस्कार मैं बकैत कुमार, आखिर इतने दिन क्यों लग रहे हैं एक अपराधी को पकड़ने में जबकि हर जगह भाजपा की ही सरकार है? क्या विकास दुबे को दुबे होने के कारण बचाया जा रहा है? क्या विकास दुबे को गुप्त रास्ते से नेपाल भेज दिया गया? क्या विकास दुबे को राजनैतिक संरक्षण मिला हुआ है?

अमूमन जो सरकार पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक करने में समय नहीं गँवाती उसे एक गुंडा जी नहीं मिल रहे? कहाँ हैं वो तमाम सैटेलाइट जो आकाश में छोड़े गए कि भाई चार मीटर ऊपर से फोटो खींच लेता है? मोदी जी तो खुद खड़े रह कर लॉन्च करते थे। कुछ भक्त तो यह भी कहते हैं मोदी जी ने स्वयं ही हाथों से कार्टोसैट कक्षा में स्थापित किया था। तो बोलो न मोदी जी को कि सैटेलाइट को फोन करें और विकास दुबे का पता लगा लें?

विकास दुबे को मारा नहीं जाएगा, जैसे कि बिजनौर के किसी सलमान को मार दिया जाता है। उसे जेल में रखने के नाम पर योगी सरकार उसे जेल से ही सत्ता चलाने का सुख देगी और एवज में ब्राह्मणों का वोट पाएगी। आप खेल समझिए सारा। जैसा कि कपिल देव जी कहते हैं कि ये थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन मुश्किल नहीं।

अब आज सुबह खबर आई कि एनकाउंटर हो गया। स्क्रिप्ट बदलनी पड़ी। जज्बात बदल गए, हालात बदल गए, दिन बदल गया, शाम बदल गई! एनकाउंटर का एक ही मतलब होता है कि सत्ता में जो लोग हैं उनको बचाना। ये मैं नहीं जानता कि विकास दुबे के पास किसके संपर्क थे। मेरे सूत्रों ने मुझे तीन तस्वीरें दिखाई जिससे साबित हो जाता है कि इसके तार अमेरिका तक जुड़े हुए हैं।

मैंने तो देखा है कि एक फोटो में विकास दुबे अखिलेश यादव के साथ पोस्टर में है। वही अखिलेश यादव मोदी से मिल रहे हैं, और मोदी ट्रम्प से गले मिल रहे हैं। आप समझ रहे हैं बात को? एक आदमी, तीन तस्वीरें और एक अंतरराष्ट्रीय एंगल। आखिर ट्रम्प उस व्यक्ति से क्यों मिलेगा जो उस व्यक्ति से मिल चुका हो जिसका पोस्टर विकास दुबे के साथ है। उनका तो सीक्रेट सर्विस सब पता रखता है!

इसीलिए, उत्तर प्रदेश पुलिस ने डॉलर ले कर, ट्रम्प का नाम न आए, ऐसा सोच कर उसे निपटा दिया। आपको पता ही है कि इसी साल नवंबर में अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में यूपी के किसी अपराधी से तार जुड़े होना, ब्लैक लाइव्स मैटर के दौर में, अमेरिकी राष्ट्रपति की छवि बर्बाद कर सकती है।

मैं आपको कुछ नहीं कह रहा, मैं बस तथ्य सामने रख रहा हूँ। अगर एनकाउंटर न होता, उससे पूछताछ होती तो बहुत नाम बाहर आ जाते। ये कोई नहीं जानता कि विकास दुबे के पीछे के असली अपराधी कौन थे। लेकिन जिस तरह से ‘असली अपराधी’ तो बच गया कहा जा रहा है, मुझे ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति का नाम ही ‘असली अपराधी’ है। लोग समझ रहे हैं कि ये जातिवाचक संज्ञा हैं, जबकि ये तो व्यक्तिवाचक भी हो सकता है।

ख़ैर जो भी हो, मेरे ख्याल से जो हुआ है, वो लोकतंत्र की हत्या है। न कोई न्यायिक प्रक्रिया, न कोई वकील, न जज… पुलिस की गाड़ी पलट गई, उसने पिस्तौल निकाली और भागने लगा, पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई और बात खत्म! ये सब फिल्मी कथानक जैसा है। लेकिन दिल है कि मानता नहीं।

आप कहेंगे कि बकैत जी, आपने तो स्वयं ही कहा कि जेल में रहता तो राज चलाता, अब एनकाउंटर हो गया तो भी आपको दिक्कत है, आखिर चाहते क्या हैं आप? देखिए, हम पत्रकार हैं, हमारा काम है सवाल करना। फिर भी आप जवाब माँग रहे हैं तो सुनिए, ध्यान से:

विकास दुबे को जेल में डालने पर वो संरक्षण में अपराध करवाता, रंगदारी करता। उसको मार दिया तो असली अपराधी बच गए हैं। इसलिए उत्तम रास्ता तो यही होता कि उससे पूछताछ कर के छोड़ देते। न जेल में रहता, न भीतर से राज करता और जिंदा भी रहता तो असली अपराधी भी नहीं बचते। पूछताछ में कुछ बता देता तो भी ठीक, नहीं बताता तो कहते कि जेल में रखने पर तो भीतर से राज करने लगेगा…

हें हें हें… नमस्कार!

अजीत भारती: पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी