भगवान नरसिंह का निवास स्थान जो सदियों तक धरती में दबा रहा: आंध्र प्रदेश का सिंहाचलम मंदिर और मान्यताएँ

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में स्थित सिंहाचलम मंदिर (फोटो : विशाखापट्टनम पर्यटन)

भगवान विष्णु के सबसे उग्र अवतारों में से एक हैं नरसिंह अवतार। जैसा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का प्रभाव बढ़ता है, तब वो इस धरती पर अधर्म के नाश के लिए अवतार लेते हैं। भगवान ने नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप रूपी अधर्म के नाश के लिए और धर्म रूप प्रह्लाद की रक्षा के लिए लिया था। श्री हरि के इन्हीं चौथे अवतार भगवान नरसिंह को समर्पित है आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में स्थित सिंहाचलम मंदिर। वैसे तो भगवान नरसिंह के कई मंदिर भारत में हैं। लेकिन इस मंदिर को उनका निवास स्थान माना जाता है और यह कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं प्रह्लाद ने करवाया था।

इतिहास

सिंहाचलम मंदिर, सिंहाचल पर्वत पर स्थित है। सिंहाचल का अर्थ है, सिंह (शेर) का पर्वत। जब प्रह्लाद की नारायण भक्ति से महाशक्तिशाली राक्षस उसके पिता हिरण्यकश्यप के अहंकार को ठेस पहुँची तो उसने अपने ही बेटे को बहुत कष्ट दिए और उसे मारने के लिए कई उपाय किए। लेकिन प्रभु की कृपया से प्रह्लाद पूरी तरह से सुरक्षित रह गया। अंततः जब हिरण्यकश्यप का अत्याचार हद से अधिक बढ़ गया तो भगवान विष्णु ने उसका संहार करने के लिए नरसिंह अवतार लिया। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया और अपने अनन्य भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। इसके बाद ही सिंहाचल पर्वत पर प्रह्लाद ने ही भगवान नरसिंह को समर्पित मंदिर की स्थापना की। यह युगों पुरानी घटना है इसलिए मंदिर की स्थापना के संबंध में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है।

समय बीतता गया और अंततः यह मंदिर मानवीय लापरवाही का शिकार हो गया। रखरखाव के अभाव में मंदिर अपनी स्थापना के सदियों बाद धरती में समा गया। इस मंदिर के दोबारा अस्तित्व में आने की घटना का वर्णन स्थल पुराण में है। लुनार वंश के राजा पुरुरवा अपनी पत्नी उर्वशी के साथ अपने विमान में बैठकर कहीं जा रहे थे। लेकिन किसी अदृश्य शक्ति के प्रभाव में आकर उनका विमान सिंहाचल पर्वत पर पहुँच गया और देववाणी से प्रेरित होकर उन्होंने धरती के अंदर से भगवान नरसिंह की यह प्रतिमा बाहर निकाली और देववाणी के आदेशानुसार उस प्रतिमा को चंदन के लेप से ढँक कर पुनःस्थापित कराया। उसी देववाणी के द्वारा यह आदेश दिया गया कि साल में एक ही बार यह चंदन का लेप भगवान नरसिंह की प्रतिमा से हटाया जाएगा।

इसके बाद वर्तमान मंदिर से प्राप्त कई शिलालेखों से मंदिर के निर्माण और जीर्णोद्धार कराने वालों की जानकारी प्राप्त होती है। इन शिलालेखों में सबसे पहले सन् 1098-99 के दौरान चोल राजा कुलोत्तुंगा प्रथम के द्वारा मंदिर में निर्माण की जानकारी सामने आती है। इसके बाद सन् 1137-1156 के दौरान वेलानंदू की महारानी के द्वारा मंदिर में स्थापित प्रतिमा को सोने से ढँकने की जानकारी प्राप्त होती है। इसके अलावा एक अन्य शिलालेख में विजयनगर साम्राज्य के राजा श्री कृष्ण देवराय और उनकी रानी के द्वारा मंदिर में 991 मोतियों की एक माला और अन्य बहुमूल्य रत्न समर्पित किए जाने के बारे में बताया गया है।

संरचना

मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुकला के अनुसार हुआ है। मंदिर में एक गोपुरम है और उसके बाद एक 16 स्तंभों वाला एक मंडप है जिसे मुखमंडपन कहा जाता है। इसे जुड़ा हुआ एक बरामदा है जो काले ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस बरामदे में पत्थर पर पुराणों की घटनाओं पर आधारित नक्काशी की गई है और यह नक्काशी अपने आप में अद्वितीय है जो सिर्फ सिंहाचलम मंदिर में ही देखने को मिलती है। इसके बाद मंदिर के उत्तरी हिस्से में नाट्यमंडपम है जो 96 स्तंभों से मिलकर बना है।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान वाराह-नरसिंह की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा भगवान विष्णु के वाराह अवतार और नरसिंह अवतार से मिलकर बनी है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ भगवान नरसिंह के साथ माता लक्ष्मी भी विराजमान हैं। राजा पुरुरवा को जो आदेश हुआ था, उसका पालन आज भी मंदिर में होता है। मुख्य प्रतिमा चंदन के लेप से ढँकी हुई है और साल में एक बार ही अक्षय तृतीया के दिन यह चंदन का लेप हटाया जाता है। यही वह दिन है जब भक्त अपने भगवान की मूल प्रतिमा का दर्शन प्राप्त कर पाते हैं। जिस दिन चंदन का लेप प्रतिमा से हटाया जाता है उसे चंदनोत्सवम के रूप में मनाया जाता है।

मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। इस पूरे मार्ग में छायादार वृक्षों की उपस्थिति है और भक्तों के विश्राम के लिए इन वृक्षों के नीचे विशाल पत्थर हैं। मंदिर तक पहुँचने का पूरा मार्ग अनन्नास और आम के पेड़ों से सजा हुआ है। मार्ग पर बीच-बीच में तोरण द्वार बने हुए हैं। शनिवार और रविवार को मंदिर में भक्तों की अच्छी-खासी भीड़ देखी जाती है।

कैसे पहुँचे?

भगवान नरसिंह का सिंहाचलम मंदिर विशाखापट्टनम से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। विशाखापट्टनम सभी प्रकार से यातायात के साधनों से परिपूर्ण है। यहाँ सुसंचालित अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा भी है जो मंदिर से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा विशाखापट्टनम जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 14 किमी है। विशाखापट्टनम रेलमार्ग से भारत के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से भी विशाखापट्टनम न केवल आंध्र प्रदेश बल्कि तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से जुड़ा हुआ है।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.