कितना बर्बर था औरंगजेब, कैसे मंदिरों को ध्वस्त कर रही थी मुगलिया फौज: प्रतापगढ़ के अष्टभुजा मंदिर में आज भी मौजूद हैं निशान

प्रतापगढ़ के गोंडे गाँव का अष्टभुजा देवी मंदिर (साभार: पंजाब केसरी)

देश में कुछ ऐसे मंदिर हैं जहाँ खंडित मूर्तियाँ मंदिरों में स्थापित हैं। ऐसा नहीं है कि इन खंडित मूर्तियों की पूजा किसी परंपरा की वजह से होती है, बल्कि यह उस इस्लामिक कट्टरपंथ की निशानी है जिसे भारत ने सदियों तक झेला है। हमने आपको मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित गैवीनाथ मंदिर के बारे में बताया था जहाँ मुगल आक्रांता औरंगजेब ने शिवलिंग पर तलवार से प्रहार किया था, लेकिन उसे तोड़ने में असफल रहा था। इसके बाद से गैवीनाथ मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा ही की जा रही है। ऐसा ही 900 साल पुराना अष्टभुजा मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के गोंडे गाँव में है, जहाँ विराजमान हैं बिना सिर वाली मूर्तियाँ और यहाँ भी मूर्तियों को खंडित करने वाला कोई और नहीं बल्कि औरंगजेब ही था।

इतिहास

लखनऊ से लगभग 160 किमी दूर प्रतापगढ़ के गोंडे गाँव में स्थित है अष्टभुजा धाम, जहाँ स्थापित है अष्टभुजा देवी की प्रतिमा। इस क्षेत्र का इतिहास रामायण और महाभारत काल के समय का है इसलिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इस मंदिर और यहाँ स्थापित मूर्तियों की स्थापना किसने की थी। वर्तमान मंदिर के विषय में भी पुरातत्वविदों में मतभेद देखने को मिलता है। कुछ इसे 11वीं शताब्दी का बना हुआ मानते हैं और यह संभावना प्रकट करते हैं कि मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजाओं ने करवाया होगा। यही तथ्य पुरातत्व विभाग के गजेटियर में दर्ज है। मंदिर की कुछ नक्काशी और शिल्पकलाएँ मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित प्राचीन मंदिरों से मिलती-जुलती है।

इतिहासकारों का एक वर्ग यह भी मानता है कि इस मंदिर का अस्तित्व सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी था। ऐसा इसलिए क्योंकि मंदिर की दीवारों के कई हिस्सों पर की गई नक्काशियाँ, सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान की जाने वाली नक्काशियों और मूर्ति की बनावट से मिलती-जुलती है। इसके अलावा मंदिर के मुख्य द्वार पर किसी विशेष लिपि में कुछ लिखा गया है। इतिहासकार इसे ब्राह्मी लिपि बताते हैं तो कुछ इसे उससे भी पुराना मानते हैं। इस तरह आज भी मंदिर के इतिहास के विषय में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है।

मस्जिद जैसा द्वार

यह उस समय की बात है जब मुगल आक्रांता अपनी इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा के अहंकार में हिंदुओं के धर्म स्थलों को नष्ट कर रहे थे। एशियानेट न्यूज से चर्चा के दौरान अष्टभुजा धाम मंदिर के मुख्य पुजारी राम सजीवन गिरी ने बताया था कि इस क्षेत्र के मंदिरों को भी तोड़ने के लिए औरंगजेब की मुगल सेना आई हुई थी। मंदिर को बचाने के लिए तत्कालीन पुजारी ने एक उपाय सोचा। उन्होंने मंदिर के मुख्य द्वार और मार्ग का निर्माण इस प्रकार करवाया कि यह एक मस्जिद की तरह दिखाई दे। लगभग पूरी मुगल फौज मंदिर के सामने से गुजर गई, लेकिन अंत में एक की नजर मंदिर में लगे घंटे पर पड़ गई। इसके बाद औरंगजेब की फौज ने मंदिर के भीतर प्रवेश किया और प्रतिमाओं के सिर, धड़ से अलग कर दिए। तब से ही मंदिर में बिना सिर वाली मूर्तियों की पूजा की जाती है। सभी मूर्तियों के सिर मंदिर में ही रखे गए हैं।

मंदिर में देवी अष्टभुजा की एक अष्टधातु से निर्मित प्रतिमा स्थापित की गई थी, लेकिन लगभग 17 साल पहले वह मूर्ति भी चोरी हो गई थी। हालाँकि ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से यहाँ देवी अष्टभुजा की एक पत्थर की प्रतिमा स्थापित करवाई।

कैसे पहुँचे?

यह मंदिर प्रतापगढ़ में स्थित है जो यूपी की राजधानी लखनऊ से लगभग 160 किमी दूर है। गोंडे गाँव का नजदीकी हवाईअड्डा प्रयागराज में स्थित है जो यहाँ से लगभग 80 किमी दूरी पर है। इसके अलावा इस स्थान की अयोध्या से दूरी लगभग 100 किमी है, जहाँ आगामी समय में एक शानदार एयरपोर्ट का निर्माण किया जाना है। प्रतापगढ़ रेलमार्ग से भी कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। यहाँ मुख्य जंक्शन के अलावा चिबिला और भूपिया मऊ जैसे रेलवे स्टेशन हैं। इसके अलावा प्रतापगढ़ सड़क मार्ग से पहुँचना बहुत आसान है। प्रतापगढ़, राष्ट्रीय राजमार्ग 96 (प्रयागराज-अयोध्या के बीच), राष्ट्रीय राजमार्ग 31 (लखनऊ-वाराणसी के बीच) पर स्थित है। इसके अलावा यह उत्तर प्रदेश सरकार के महत्वाकांक्षी गंगा एक्सप्रेसवे पर भी स्थित है।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.