बजरंगबली की हुई थी 3 शादी, एक खास मंदिर में पत्नी के साथ हैं विराजमान: हनुमान जयंती पर जानें पौराणिक कथा

बजरंगबली की पत्नी के साथ मंदिर

बाल हनुमान का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न के योग में हुआ था – मतलब हनुमान जयंती। मंगलमूर्ति हनुमान जी एक बाल ब्रह्मचारी और रामभक्त के रूप में पूजे जाते हैं, यह आप सभी को पता होगा। पर क्या वे अविवाहित थे? अगर नहीं तो उनकी पत्नी कौन थीं? हनुमान जयंती पर आज हम जानेंगे इसी रोचक जानकारी को और इसके पीछे के तर्क को।

आज पूरे विश्व में बजरंगबली के भक्त हनुमान जयंती मना रहे हैं। यह हर वर्ष चैत्र महीने की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है। इस बार चैत्र पूर्णिमा या हनुमान जयंती आज 16 अप्रैल 2022 को है। दिन शनिवार होने के कारण ये और भी खास हो गई है।

जिन पौराणिक कथाओं पर हम बात करने जा रहे हैं, वो आपको हैरत में डाल सकते हैं! जैसे एक तरफ जहाँ भगवान हनुमान बाल ब्रह्मचारी हैं, वहीं उनके 3 विवाह भी हुए थे। लेकिन इन तीनों की परिस्थितियाँ और काल बेहद रोचक रहे हैं। चौंक गए हैं तो धीरज धरिए, पूरी जानकारी नीचे है।

विवाहित बजरंगबली की पुष्टि आंध्र प्रदेश के उस मंदिर से भी होती है, जहाँ भगवान हनुमान की उनकी पत्नी सुर्वचला के साथ एक मंदिर है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो बजरंगबली के विवाह का प्रतीक भी माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर की इतनी मान्यता है कि कई जोड़े अपने वैवाहिक जीवन के सुखमय होने की कामना लिए यहाँ दर्शन को आते हैं।

चलिए आज हम बताते हैं कि बाल ब्रह्मचारी रहे भगवान हनुमान के तीन-तीन विवाह क्यों और कैसे हुए? पौराणिक ग्रंथों में कई जगहों पर उनके विवाह का वर्णन किया गया है।

सूर्य पुत्री सुर्वचला से विवाह

पहली पौराणिक कथा के अनुसार, पराशर संहिता में भगवान सूर्य की पुत्री सुर्वचला और हनुमान जी के विवाह का प्रसंग है। रुद्रावतार भगवान हनुमान ने सूर्य देवता को अपना गुरु बनाया था और उन्होंने सूर्य देव से 9 विद्याओं में पारंगत होने का निश्चय किया था। सूर्यदेव चाहते थे कि वो हनुमान को 9 विद्याओं का ज्ञान दें। इनमें से 5 विद्याएँ तो हनुमान जी ने सीख ली थीं। बाकी की 4 विद्याओं के लिए उनका विवाहित होना अनिवार्य था।

ऐसी स्थिति को देखते हुए सूर्यदेव ने अपनी पुत्री का विवाह हनुमान जी के साथ संपन्न करा दिया। लेकिन विवाह के बाद सुर्वचला सदा के लिए तपस्या में लीन हो गईं। इसके साथ ही हनुमान जी भी अपनी बाकी चार विद्याओं के ज्ञान को प्राप्त करने में लग गए। इस प्रकार विवाहित होने के बाद भी भगवान हनुमान का ब्रह्मचर्य व्रत नहीं टूटा।

सूर्यदेव ने हनुमान जी का ब्रह्मचर्य टूटने नहीं दिया

सूर्यदेव ने हनुमान जी को बताया था कि विवाह के बाद सुर्वचला फिर से तपस्या में लीन हो जाएगी और ऐसा हुआ भी। हनुमान जी भी अपनी बाकी चार विद्याओं का ज्ञान प्राप्त करने में लग गए।

सुर्वचला का जन्म किसी गर्भ से नहीं हुआ था, इसलिए कहते हैं कि उनसे शादी करने के बाद भी हनुमान जी के ब्रह्मचर्य में कोई बाधा नहीं आई और विशेष परिस्थितियों में विवाहित होने के कारण हनुमान जी ब्रह्मचारी ही कहलाए।

रावण पुत्री अनंगकुसुमा से विवाह

पउमचरित के एक प्रसंग अनुसार रावण और वरूण देव के बीच युद्ध के समय वरूण देव की ओर से वानरराज हनुमान रावण से लड़े और उसके सभी पुत्रों को बंधक बना लिया। ऐसी मान्यता है कि युद्ध में हार के बाद रावण ने अपनी पुत्री अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान जी से कर दिया था।

इस प्रसंग का उल्लेख पउम चरित शास्त्र में मिलता है। इस प्रसंग में सीता-हरण के संदर्भ में एक घटना का जिक्र है, अनंगकुसुमा के मूर्च्छित होने की बात है। हुआ यूँ कि जब खर-दूषण वध का समाचार लेकर राक्षस-दूत हनुमान की सभा में पहुँचा तो अंत:पुर में शोक छा गया और अनंगकुसुमा मूर्च्छित हो गईं। अनंगकुसुमा इसलिए मूर्च्छित हो गईं क्योंकि यह दुःखद समाचार उनके परिजनों की मृत्यु का था।

वरुण देव की पुत्री सत्यवती से विवाह

रावण और वरुण देव के बीच हुए युद्ध में हनुमान जी ने ही प्रतिनिधि के तौर पर लड़कर वरुण देव को अंतिम विजय दिलाई थी। इससे प्रसन्न होकर वरूण देव ने हनुमान जी का विवाह पुत्री सत्यवती से कर दिया था।

शास्त्रों में भले ही बजरंगबली के इन विवाहों का उल्लेख है, लेकिन ये तीनों विवाह विशेष परिस्थितियों में ही हुए थे। वहीं यह भी कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने कभी भी अपनी पत्नियों के साथ वैवाहिक संबंधों का निर्वाह नहीं किया। अतः वह आजीवन ब्रह्मचारी ही रहे।

तेलंगाना में है गृहस्थ हनुमान जी का मंदिर

तेलंगाना के खम्मम जिले में भगवान हनुमान का एक खास मंदिर है। यहाँ गृहस्थ रूप में पत्नी सुर्वचला संग हनुमान जी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में बजरंगबली का उनकी पत्नी के साथ दर्शन मात्र से ही वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं, दांपत्य जीवन सुखमय बनता है।

रवि अग्रहरि: अपने बारे में का बताएँ गुरु, बस बनारसी हूँ, इसी में महादेव की कृपा है! बाकी राजनीति, कला, इतिहास, संस्कृति, फ़िल्म, मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान-विज्ञान की किसी भी नामचीन परम्परा का विशेषज्ञ नहीं हूँ!