खजराना मंदिर की स्वयंभू गणेश प्रतिमा: औरंगजेब के हमले में भी सुरक्षित, जानिए श्रद्धालु आज भी क्यों बनाते हैं उल्टा स्वास्तिक

इंदौर का खजराना गणेश मंदिर (फोटो : इंदौर प्रशासन)

ऑपइंडिया की मंदिर श्रृंखला में हमने आपको पुडुचेरी में स्थित मनाकुला विनायगर मंदिर के बारे में बताया था जहाँ विराजमान गणेश जी प्रतिमा को पुर्तगालियों ने कई बार समुद्र में डुबोने का प्रयास किया था, लेकिन हर बार प्रतिमा अपने स्थान पर वापस आ जाती थी। अब हम आपको मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में स्थित खजराना गणेश मंदिर के बारे में बता रहे जहाँ भगवान गणेश की स्वयंभू मूर्ति है, जिसे औरंगजेब के हमले से बचाने के लिए एक कुएँ में छिपा दिया गया था। बाद में गणेश जी ने स्वयं ही बाहर आने का प्रबंध किया था।

इतिहास

इस्लामिक आक्रांता और मुगल शासक औरंगजेब अपनी कट्टर प्रवृत्ति के चलते हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने का प्रण ले चुका था। इसी क्रम में जब वह अपनी सेना के साथ इंदौर क्षेत्र में पहुँचा तब भगवान गणेश की प्रतिमा को उससे बचाने के लिए एक कुएँ में छिपा दिया गया था। खजराना गणेश मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा कहाँ से उत्पन्न हुई और किसने स्थापित की इसका कोई प्रामाणिक साक्ष्य मौजूद नहीं है। मान्यता है कि यह प्रतिमा स्वयंभू है जो उसी स्थान पर स्थापित हुई थी, जहाँ आज वर्तमान मंदिर स्थित है।

भगवान गणेश की यह प्रतिमा कई सालों तक कुएँ में ही रही। फिर इंदौर में देवी अहिल्याबाई होल्कर का शासन प्रारंभ हुआ। माता अहिल्याबाई अपनी ईश्वर भक्ति के लिए पूरे देश में जानी जाती थीं। उन्होंने देश के कई प्रसिद्ध मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। उन्हीं के शासनकाल के दौरान एक बार पंडित मंगल भट्ट को स्वप्न हुआ और उसे कुएँ में भगवान गणेश के होने का पता चला। उसने यह बात माता अहिल्याबाई तक पहुँचाई। उन्होंने न केवल कुएँ से भगवान गणेश की उस दिव्य प्रतिमा को निकाला, बल्कि उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। उसी मंदिर को आज हम खजराना गणेश मंदिर के नाम से जानते हैं।

मान्यताएँ

भगवान गणेश सुख और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। उनका ही आशीर्वाद है कि इंदौर आज मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी बना हुआ है और देश के प्रमुख आर्थिक शहरों में से प्रमुख है। इंदौर में स्थित खजराना गणेश मंदिर में लोगों की आस्था बहुत पुरानी है। भक्त अक्सर ही इस मंदिर को सोना, चाँदी और बहुमूल्य रत्न दान में देते रहते हैं। भगवान गणेश की दोनों आँखे हीरे की हैं जो इंदौर के ही स्थानीय व्यापारी द्वारा दान में दी गई थीं। गर्भगृह की दीवारें और छत चाँदी से मढ़ी हुई हैं। खजराना गणेश मंदिर के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इंदौर के निवासियों द्वारा कोई भी शुभ कार्य किए जाने से पहले इस मंदिर में भगवान गणेश से ही आशीर्वाद लिया जाता है और यह परंपरा सालों पुरानी है।

खजराना गणेश मंदिर एक चमत्कारी मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ भक्तों द्वारा माँगी गई हर इच्छा पूरी होती है। इससे जुड़ी हुई मंदिर की एक अनूठी प्रथा है। भगवान गणेश जी की पीठ की ओर बनी दीवार पर बाहरी तरफ उल्टा स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाता है। भक्त अपनी इच्छा की पूर्ति का आशीर्वाद माँगते समय ऐसा करते हैं। जब उनकी इच्छा की पूर्ति हो जाती है तब उनके द्वारा मंदिर में आकर सीधा स्वास्तिक बनाया जाता है। इसके अलावा मंदिर में तीन बार परिक्रमा करके धागा बाँधकर इच्छा पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने की प्राचीन परंपरा भी है। मंदिर में तुलादान की प्रथा भी है। यहाँ अक्सर नवजात शिशुओं के वजन के बराबर लड्डू भगवान गणेश को चढ़ाया जाता है।

गणेश चतुर्थी यहाँ का प्रमुख त्योहार। इस दिन मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। इसके अलावा दीपावली पर मंदिर प्रांगण में स्थित कई फुट ऊँची दीपमालिका में सैकड़ों की संख्या में दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं, साथ ही मंदिर को भी हजारों की संख्या में दीपों से सजाया जाता है।

कैसे पहुँचे?

इंदौर में ही देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाईअड्डा स्थित है जो मंदिर से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है। देश के महानगरों में शुमार इंदौर में के लिए देश के कई हिस्से से ट्रेनें चलती हैं। इंदौर जंक्शन से खजराना गणेश मंदिर की दूरी लगभग 5.4 किमी है। इसके अलावा इंदौर में सड़कों का जाल है। देश के कई राजमार्ग इंदौर से होकर गुजरते हैं।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.